सोमवार, 15 मई 2017

समृद्धि की प्रतीक भी है वैशाली

वैशाली के अतीत में केवल पानी की सुदृढ़ व्यवस्था नहीं मिलती है. अपनी व्यवस्थाओं के चलते वैशाली उस कहावत को भी पारिभाषित करती है, जिसमें भारत को सोने की चिड़िया कहा गया है. इतिहासविद् रामशरण अग्रवाल तालाब व कुओं की संरचना व इतिहास बताते हुये हमें अभिषेक पुष्करिणी के पास स्थित संग्रहालय में ले गये. इस संग्रहालय में इससे पहले मैं चार बार आ चुका था. तमाम चीजें देख चुका था. कैसे आज से ढाई हजार साल पहले शौचालय आदि की व्यवस्था थी. उस समय की जीवनशैली कैसी थी, लेकिन जीवन शैली की क्या विशेषता थी. इसे समझ नहीं सका था. संग्रहालय में घुसते ही अग्रवाल जी ने कहा कि खुदाई से प्राप्त ईंटों को बारीकी से देखने. इसमें कुछ जड़ा हुआ दिखेगा आपको. देखने पर पारदर्शी पत्थरनुमा कई चीजें पत्थरों में जड़ी हुईं दिखीं. इसे समझाते हुये अग्रवाल साहब ने बताया कि यही विशेषता है. उस समय लोग अपने घरों के पत्थरों में भी कुछ न कुछ जड़वा देते थे. इससे उस समय की समृद्धि का पता चलता है.
इसके बाद उन्होंने उन तमाम चीजों को दिखाया, जो खुदाई के दौरान मिली हैं. इनमें महिलाओं की कुछ मूर्तियां भी हैं. अग्रवाल साहब ने कहा कि आपको किसी भी महिला की मूर्ति में समानता नहीं मिलेगी. सबका केश विन्यास अलग है. सबका चेहरा एक-दूसरे से अलग है. उस समय महिलाओं को लेकर समाज में क्या सोच थी. किस तरह से उन्हें आजादी रही होगी, यह इन मूर्तियों से झलकता है. संग्रहालय में कई और बारीकियों को भी अग्रवाल साहब ने बताया और फिर वह वहां से निकल कर अभिषेक पुष्करिणी पर आ गये. उसके वैभवशाली इतिहास को बताने लगे, साथ ही वर्तमान में सूखते पानी और तरह -तरह की गंदगी पर अफसोस भी जता रहे थे. उन्होंने बताया कि यह पुष्करिणी लगभग साढ़े चार हजार साल पुरानी है. जैसा कि नाम से ही मालूम है. इसके पानी से राज परिवार में अभिषेक होता था.
अग्रवाल साहब कहने लगे कि यह सही है कि पुष्करिणी की व्यवस्था ऐसी थी कि इसमें परिंदा भी चोंच नहीं मार सकता था. इसके लिए इसे पूरी तरह से सोने व चांदी के तारों से घेरा गया था और जहां पर तारों का जोड़ था. वहां पर हीरे-जवाहरात लगे थे. ऐसा वैभव वैशाली और यहां के लोगों का था. अग्रवाल साहब राजा विशाल का किला भी दिखाते हैं. खुदाई में जो कुछ प्राप्त हुआ है. उसे ध्यान से देखने को कहते हैं. कहते हैं कि जो भी निर्माण उस समय हुआ था. उसमें अभी तक कोई दरार नहीं पड़ी है, जबकि कितने ही भूकंप अब तक आये होंगे. इसकी वजह क्या हो सकती है. वह बताते हैं कि उस समय चौड़ी दीवाल बनायी जाती थी, जिनकी चौड़ाई कम से कम दो फुट होती थी. इससे ईंट एक सीध में नहीं रहती थी, जो निर्माण को मजबूती प्रदान करती थी. इसी तरह से कई और चीजें वह वैशाली में दिखाते हैं, जो उस समय की दिव्य व्यवस्था की ओर इशारा करती हैं. जारी...

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