गुरुवार, 18 मई 2017

सच्चा और अच्छा चुनें, चैन से रहें

मुजफ्फरपुर नगर निगम के चुनाव में अब दो दिन शेष बचे हैं. 21 मई को चुनाव है, उसी दिन नयी नगर सरकार को चुन लिया जायेगा. इस सरकार में कौन लोग शामिल होंगे. कौन हमारे 49 वाडरे का प्रतिनिधित्व करेंगे. यह 23 मई को मतगणना के साथ पता चल जायेगा, लेकिन इससे पहले चुनाव में अपनी जीत को लेकर प्रत्याशी दिन-रात एक किये हैं. चुनाव प्रचार का मुख्य साधन टेंपो (ठेले) बने हुये हैं. मुजफ्फरपुर शहर (निगम क्षेत्र) कोई सौ मीटर ऐसा नहीं होगा, जहां आपको प्रचार का ठेला नहीं मिल जाये. ठेलों पर देशभक्ति के गीत से लेकर वार्ड को चमकाने तक की बात हो रही है. विरोधी पर निशाना भी साध रहे हैं. यह सिलसिला पिछले लगभग 15 दिनों से चल रहा है, जो 19 की शाम पांच बजे पूरा हो जायेगा. उसके बाद 20 को दिन भर प्रत्याशी लोगों से मिलकर अपने पक्ष में प्रचार करने को कहेंगे. यह आखिरी मौका होगा, जब वह वोट मांगेंगे. इसके बाद 21 को सुबह से मतदान शुरू हो जायेगा.
22 को एक तरह से प्रत्याशियों के लिए रेस्ट डे रहेगा, क्योंकि 23 को फिर वोटों की गिनती का दिन होगा. इससे इतर नगर निगम मुजफ्फरपुर की बात करें, तो मेरी समझ से यह शहर के लिए प्रतिनिधि संस्था अभी तक नहीं बन पायी है. इसको लेकर किंगमेकर से लेकर तरह-तरह की उपाधियां प्रचलित हैं. लोग कमरों में बैठ कर शहर की किस्मत लिखते हैं, लेकिन शहर में जो काम होता है, उसमें समन्वय का घोर अभाव दिखता है. अगर निगम क्षेत्र में किसी तरह का काम होता है, तो उसमें निगम को पूरी तरह से शामिल होना चाहिये, लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता है. यह अभी की नहीं सालों से यही हालात हैं. मुजफ्फरपुर के प्रमुख चौराहों में शामिल सरैयागंज की बात करें, तो इसकी दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है, लेकिन निगम चुनाव में यह मुद्दा नहीं है. हमारी आन-बान और शान का प्रतीक टावर अब अपनी खूबसूरती खो रहा है. टाइल्स उखड़ रही हैं. घड़ी सालों से बंद है. गांधी की प्रतिमा के चारों ओर लगे कांच टूट चुके हैं, लेकिन इनका क्या होगा, कभी कोई बात नहीं करता?
टावर की ओर आनेवाली सड़क की बात करें, तो यह लगभग दो साल पहले बनी है, लेकिन बनने के समय इसमें जो गड्ढे पड़े. वह अभी तक हैं ही, लेकिन कभी कोई विरोध नहीं हुआ. बच्चों के खेलने का पार्क शहर में अभी तक नहीं बन पाया. अपने शहर में शायद ही ऐसा मोहल्ला हो, जहां पार्क हो. नगर आयुक्त आवास के बगल में दो पार्क हैं, लेकिन कोई भी नागरिक उपयोग में नहीं है. ऐेसे में क्या कहा जा सकता है. यहां रजाई धुननेवालों को अड्डा है. उन्हीं के कब्जे में यह सड़क है. पार्किग स्थल को लेकर केवल बात होती है, लेकिन अभी तक किसी तरह का काम नहीं हो सका है. कोई कहता है कि यहां पार्किग बना देंगे. कोई कुछ और कहता है, लेकिन हो कुछ नहीं पाया.
सार्वजनिक शौचालय का अभाव है. पहले कभी जो व्यवस्था हुई. वह समाप्त हो गयी. नयी सुविधा पर बात नहीं होती है. अतिक्रमण का क्या हाल है. यह किसी से छुपा नहीं हुआ है. तीन से पांच फुट सड़क घेरना दुकानदारों का अधिकार जैसा हो गया है. शहर में हर जगह पर यह नजारा देखा जा सकता है. ऐसी तमाम समस्याएं हैं, जो निगम के कार्यक्षेत्र में आती हैं, जिनके समाधान की केवल बात होती है, लेकिन उन पर काम नहीं होता है, जो व्यवस्थाएं बनी हैं. वह भी सही तरीके से नहीं चल रही हैं. यही स्थिति निगम क्षेत्र की बनी हुई है. इन सबसे इतर एक बात और. मुजफ्फरपुर को प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है, लेकिन यहां के निगम के पास एक भी अपना सांस्कृतिक आयोजन नहीं है और न ही इस तरह का कोई प्रस्ताव ही निगम के पास है, जो पिछले कुछ सालों में मैंने सुना व देखा है. क्या निगम के पास एक बड़ा आयोजन नहीं होना चाहिये. अपने शहर की प्रतिभाओं के लिए. स्मार्ट सिटी में किस तरह का हाल बना यह हम लोग देख चुके हैं. सफाई के सव्रे में हम कहां खड़े हैं. यह भी आइने की तरह साफ है.





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