सोमवार, 14 सितंबर 2020

ऊपर मोटी नार, नीचे पतरे कक्का

प्रसंग है एक नवयुवती छज्जे पर बैठी है, वह उदास है, उसकी मुख मुद्रा देखकर लग रहा है कि जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है। विभिन्न कवियों से अगर इस पर लिखने को कहा जाता तो वो कैसे लिखते- 
 
गुलजार....
वो बरसों पुरानी ईमारत
शायद
आज कुछ गुफ्तगू करना चाहती थी
कई सदियों से उसकी छत से
कोई कूदा नहीं था.
और आज
उस तंग हालात
परेशां
स्याह आँखों वाली
उस
लड़की ने
ईमारत के सफ़े
जैसे खोल ही दिए
आज फिर कुछ बात होगी
सुना है ईमारत खुश बहुत है।
 
हरिवंश राय बच्चन...
किस उलझन से क्षुब्ध आज
निश्चय यह तुमने कर डाला
घर चौखट को छोड़ त्याग
चड़ बैढीं तुम चौथा माला
अभी समय है, जीवन सुरभित
पान करो इस का बाला
ऐसे कूद के मरने पर तो
नहीं मिलेगी मधुशाला
 
प्रसून जोशी...
जिंदगी की तोड़ कर
मरोड़ कर
गुल्लकों को फोड़ कर
क्या हुआ जो जा रही हो
सोहबतों को छोड़ कर।
 
हन्नी सिंह....
कूद जा डार्लिंग क्या रखा है
जिंजर चाय बनाने में
यो यो की तो सीडी बज री
डिस्को में हरयाणे में
रोना धोना बंद!
तू कर ले डांस हनी के गाने में
रॉक एंड रोल करेंगे कुड़िये
फार्म हाउस के तहखाने में !!
 
रहीम...
रहिमन कभउँ न फांदिये छत ऊपर दीवार
हल छूटे जो जन गिरें फूटै और कपार
तुलसी...
छत चढ़ नारी उदासी कोप व्रत धारी
कूद ना जा री दुखारी
सैन्य समेत अबहिन आवत होइहैं रघुरारी
कबीर....
कबीरा देखि दुःख आपने कूदिंह छत से नार
तापे संकट ना कटे , खुले नरक का द्वार''
 
मैथिली शरण गुप्त-
अट्टालिका पर एक रमिणी अनमनी सी है अहो
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो?
धीरज धरो संसार में, किसके नही है दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।
 
काका हाथरसी-
गोरी बैठी छत पर, कूदन को तैयार
नीचे पक्का फर्श है, भली करे करतार
भली करे करतार,न दे दे कोई धक्का
ऊपर मोटी नार, नीचे पतरे कक्का
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढना
उधर कूदना मेरे ऊपर मत गिर पडना।
 
श्याम नारायण पांडे
ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी
सिंहनी की ठान से, आन बान शान से
मान से, गुमान से, तुम गिरो मकान से
तुम डगर-डगर गिरो, तुम नगर-नगर गिरो
तुम गिरो अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।
 
गोपाल दास नीरज
हो न उदास रूपसी, तू मुस्काती जा
मौत में भी जिन्दगी के कुछ फूल खिलाती जा
जाना तो हर एक को है, एक दिन जहान से
जाते जाते मेरा, एक गीत गुनगुनाती जा।
 
राम कुमार वर्मा
हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बॉट मत जोहो।
जानता हूँ इस जगत का
खो चुकि हो चाव अब तुम
और चढ़ के छत पे भरसक
खा चुकि हो ताव अब तुम
उसके उर के भार को समझो।
जीवन के उपहार को तुम ज़ाया ना खोहो,
हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाँट मत जोहो।


गुरुवार, 4 जून 2020

मुनादी- कविता- महान संपादक- धर्मवीर भारती की कलम से. जेपी पर लिखी थी.


खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का
हुकुम शहर कोतवाल का...
हर खासो-आम को आगह किया जाता है
कि खबरदार रहें
और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से
कुंडी चढा़कर बन्द कर लें
गिरा लें खिड़कियों के परदे
और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें
क्योंकि
एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी कांपती कमजोर आवाज में
सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है !
शहर का हर बशर वाकिफ है
कि पच्चीस साल से मुजिर है यह
कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाए
कि चोर को चोर और हत्यारे को हत्यारा कहा जाए
कि मार खाते भले आदमी को
और असमत लुटती औरत को
और भूख से पेट दबाये ढांचे को
और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को
बचाने की बेअदबी की जाय !
जीप अगर बाश्शा की है तो
उसे बच्चे के पेट पर से गुजरने का हक क्यों नहीं ?
आखिर सड़क भी तो बाश्शा ने बनवायी है !
बुड्ढे के पीछे दौड़ पड़ने वाले
अहसान फरामोशों ! क्या तुम भूल गये कि बाश्शा ने
एक खूबसूरत माहौल दिया है जहां
भूख से ही सही, दिन में तुम्हें तारे नजर आते हैं
और फुटपाथों पर फरिश्तों के पंख रात भर
तुम पर छांह किये रहते हैं
और हूरें हर लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी
मोटर वालों की ओर लपकती हैं
कि जन्नत तारी हो गयी है जमीं पर;
तुम्हें इस बुड्ढे के पीछे दौड़कर
भला और क्या हासिल होने वाला है ?
आखिर क्या दुश्मनी है तुम्हारी उन लोगों से
जो भलेमानुसों की तरह अपनी कुरसी पर चुपचाप
बैठे-बैठे मुल्क की भलाई के लिए
रात-रात जागते हैं;
और गांव की नाली की मरम्मत के लिए
मास्को, न्यूयार्क, टोकियो, लन्दन की खाक
छानते फकीरों की तरह भटकते रहते हैं...
तोड़ दिये जाएंगे पैर
और फोड़ दी जाएंगी आंखें
अगर तुमने अपने पांव चल कर
महल-सरा की चहारदीवारी फलांग कर
अन्दर झांकने की कोशिश की !
क्या तुमने नहीं देखी वह लाठी
जिससे हमारे एक कद्दावर जवान ने इस निहत्थे
कांपते बुड्ढे को ढेर कर दिया ?
वह लाठी हमने समय मंजूषा के साथ
गहराइयों में गाड़ दी है
कि आने वाली नस्लें उसे देखें और
हमारी जवांमर्दी की दाद दें
अब पूछो कहां है वह सच जो
इस बुड्ढे ने सड़कों पर बकना शुरू किया था ?
हमने अपने रेडियो के स्वर ऊंचे करा दिये हैं
और कहा है कि जोर-जोर से फिल्मी गीत बजायें
ताकि थिरकती धुनों की दिलकश बलन्दी में
इस बुड्ढे की बकवास दब जाए !
नासमझ बच्चों ने पटक दिये पोथियां और बस्ते
फेंक दी है खड़िया और स्लेट
इस नामाकूल जादूगर के पीछे चूहों की तरह
फदर-फदर भागते चले आ रहे हैं
और जिसका बच्चा परसों मारा गया
वह औरत आंचल परचम की तरह लहराती हुई
सड़क पर निकल आयी है।
ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है
पर जहां हो वहीं रहो
यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि
तुम फासले तय करो और
मंजिल तक पहुंचो
इस बार रेलों के चक्के हम खुद जाम कर देंगे
नावें मंझधार में रोक दी जाएंगी
बैलगाड़ियां सड़क-किनारे नीमतले खड़ी कर दी जाएंगी
ट्रकों को नुक्कड़ से लौटा दिया जाएगा
सब अपनी-अपनी जगह ठप !
क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है
और उसके लिए जरूरी है कि जो जहाँ है
वहीं ठप कर दिया जाए !
बेताब मत हो
तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गूल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है
बाश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से
तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए
बाश्शा के खास हुक्म से
उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा
दर्शन करो !
वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएंगी
बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी
ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा
नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा
और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा
लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में
और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो
ताकि, वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से
बहा, वह पूंछा जाए !
बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं !

बुधवार, 3 जून 2020

जीवन में आनंद तब तक रहता है, जब तक हम उसे भोगने की स्थिति में रहते हैं

सिकंदर उस जल की तलाश में था, जिसे पीने से मानव अमर हो जाते हैं.!
काफी दिनों तक दुनिया में भटकने के पश्चात आखिरकार उस ने वह जगह पा ही ली, जहां उसे अमृत की प्राप्ति हो। उसके सामने ही अमृत जल बह रहा था, वह अंजलि में अमृत को लेकर पीने के लिए झुका ही था कि तभी एक बुढा व्यक्ति जो उस गुफा के भीतर बैठा था, जोर से बोला, रुक जा, यह भूल मत करना...!’
बड़ी दुर्गति की अवस्था में था वह बूढा ! सिकंदर ने कहा, ‘तू रोकने वाला कौन...?’
बूढे ने उत्तर दिया, ..मैं अमृत की तलाश में था और यह गुफा मुझे भी मिल गई थी !, मैंने यह अमृत पी लिया !
अब मैं मर नहीं सकता, पर मैं अब मरना चाहता हूँ... ! देख लो मेरी हालत...अंधा हो गया हूँ, पैर गल गए हैं, देखो...अब मैं चिल्ला रहा हूं...चीख रहा हूं...कि कोई मुझे मार डाले, लेकिन मुझे मारा भी नहीं जा सकता !
अब प्रार्थना कर रहा हूं, परमात्मा से कि प्रभु मुझे मौत दे !
सिकंदर चुपचाप गुफा से बाहर वापस लौट आया, बिना अमृत पिए !
सिकंदर समझ चुका था कि जीवन का आनंद, उस समय तक ही रहता है, जब तक हम उसे भोगने की स्थिति में होते हैं! इसलिए स्वास्थ्य की रक्षा कीजिये ! जितना जीवन मिला है,उस जीवन का भरपूर आनंद लीजिये ! हमेशा खुश रहिये। दुनिया में सिकंदर कोई नहीं, वक्त ही सिकंदर है।

ज़िन्दगी के सफ़र में कौन भला साथ निभाता है

ज़िन्दगी के सफ़र में कौन भला साथ निभाता है
कल तुम भी चले जाओगे साथ छोड़ कर
पर रह जाओगे थोड़ा-थोड़ा मेरी यादों में
एल्बम की तस्वीरों में
उड़ते पंक्षियों की उड़ानों में
खिलते फूलों की मुस्कुराहट में

ज़िन्दगी के सफ़र में तुमसे बिछड़ना नियति है
लेकिन रह जाओगे तुम मेरी सांसों में
सुने-अनसुने गीतों की धुन में
रुनझुन करती बारिश की बूंदों में
मंदिर मस्जिद से आती पाक आवाज़ों में
हाथ की आड़ी-तिरछी रेखाओं में
माना ज़िन्दगी है बेबस, उसके अख्तियार में कुछ नहीं है,
लेकिन तेरे मेरे प्यार की उम्र ज़िन्दगी से परे है, खूबसूरत है...

मंगलवार, 12 नवंबर 2019

हे मुरलीधर, छलिया मोहन....हमतो तुमको दिल दे बैठे

हे मुरलीधर, छलिया मोहन.... हम भी तुमको दिल दे बैठे।
 गम पहले से ही कम तो न थे, इक और मुसीबत ले बैठे।।
 दिल कहता है तुम सुंदर हो, आंखें कहतीं है दिखलाओ।
 तुम मिलते नहीं हो आकर के, हम कैसे कहें देखो ये बैठे।।
हे मुरलीधर, छलिया मोहन, हम तुमको दिल दे बैठे।।

 महिमा सुन के हैरान हैं हम, तुम मिल जाओ तो चैन मिले।

मन खोजके भी तुम्हे पाता नहीं, तुम हो की उसी मन में बैठे।।
राजेश्वर राजा राम तुम्ही,  प्रभु योगेश्वर घनश्याम तुम्ही।
 धनुधारी बने कभी मुरली बजा, जमुना तट निर्जन में बैठे।।
 गम पहले ही क्या कम थे, इक और मुसीबत ले बैठे।
हे मुरलीधर छलिया मोहन, हम भी तुमको दिल दे बैठे।।

रविवार, 27 अक्टूबर 2019

भूख के खिलाफ रिषिकेश का जंग

अगर मन में विश्वास हो और काम करने का हौसला हो, तो मुश्किलें भी रास्ता छोड़ देती हैं. कुछ ऐसा ही हुआ है पटना के युवा रिषेकेश कुमार सिंह के साथ, जो कम उम्र में ही समाज सेवा में लग गये हैं. ज्ञानशाला के नाम से ऐसे बच्चों का स्कूल चलाते हैं, जिनका कोई सहारा नहीं है. साथ ही रोटी बैंक, जिसके सहारे हर रात राजधानी पटना की सड़कों पर उतरते हैं और उन लोगों को भोजन पहुंचाते हैं, जिन्हें रिषिकेश और उनकी टीम खाना नहीं पहुंचाये, तो उन्हें भूखे ही रात काटनी पड़े. ये सिलसिला लगभग दो साल से ज्यादा से बदस्तूर जारी है.
रिषिकेश लोगों के बीच जाते हैं और उन्हें अपने अभियान के बारे में बताते हैं, तो लोग खुशी-खुशी उससे जुड़ जाते हैं. कुछ लोग ऐसे हैं, जो नियमित रिषिकेश की मदद करते हैं. घर में खाना बनवाते हैं और उन्हें देते हैं, जबकि कुछ ऐसे हैं, जो पैसे देकर होटल से खाना पैक करवा कर रिषिकेश को देते हैं, जबकि कई ऐसे लोग हैं, जो अपने जन्मदिन या किसी परिजन के जन्मदिन पर रोटी बैंक को खाना देते हैं. ऐसे लोग भी हैं, जो अपने पूर्वजों की की जयंती और पुण्यतिथि पर भूखों का खाना खिलाते हैं. रिषिकेश को जैसे ही फोन आता है, वो और उनकी टीम खाना कलेक्ट करने पहुंच जाते हैं. पटना के मोस्ट वीआईपी इलाके गांधी मैदान और इसके आसपास के इलाके में जाते हैं, जहां ऐसे लोगों की खोज करते हैं, जो बेसहारा सड़क पर रात बिताते हैं. ऐसे लोगों को चिह्नित करने के बाद रिषिकेश और उनकी टीम उन्हें खाना देती है.
ठंडक हो या बारिश. गर्मी हो या तूफान...रिषिकेश और उनके साथियों का अभियान नहीं रुकता है. हाल में जब पटना में जल जमाव हुआ, तब भी पानी जमा होने के बाद भी रिषिकेश अपनी टीम के सदस्यों के साथ बेसहारा लोगों का पेट भरते रहे. बारिश के बीच निकलते और खुद की परवाह किये बिना ऐसे लोगों को खाना पहुंचाते. रिषिकेश के पास पटना के बेसहारा लोगों के बारे में पूरी जानकारी है. कौन और कहां रहता है. कैसे चलता है. उसके साथ किस तरह की समस्या है. वो सब रिषिकेश जानते हैं. ऐसे लोग रात के समय रिषिकेश का इंतजार करते रहते हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास है, कुछ भी हो जाये, उनके लिए खाना लानेवाला नहीं रुकेगा. वो उनके लिए खाना लेकर किसी भी हालत में पहुंचेगा.
 

शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

आओ मिलकर रोशन करें सबकी जिंदगी

सदियों से या यूं कहें पीढ़ी दर पीढ़ी, ये जद्दोजहद चल रही है, सब सुखी हों, संपन्न हों, ताकि सामाज रामराज्य की परिकल्पना की ओर आगे बढ़े, लेकिन जैसे हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती हैं, वैसे ही समाज में सबकी स्थिति एक जैसी नहीं रहती है. कभी कोई अभाव में, तो कोई प्रभाव में, तो कभी इसका उल्टा दिखता है. मुझे लगता है कि ये सिलसिला चलता जा रहा है और पीढ़ियां खपती जा रही हैं. रोशनी का महापर्व दीपावली में फिर से सारा जग रोशन है, लेकिन मुझे याद उस वृद्ध की आ रही है, जिनसे दो दिन पहले एक चौराहे पर भेंट हुई थी. अपने एक साथी के साथ पार्क में शाम की सैर करने के बाद लौट रहा था, तभी डिवाइटर पार करते समय एक आवाज आयी. प्लीज, इनकी मदद करिये, ताकि इनको सड़के के पार ले जाया जा सके.
नजरें, जैसे ही आवाज की ओर गयीं. पूरी शरीर सिहरन से कांप उठा. एक व्यक्ति पटना की व्यस्ततम सड़क पर घिसटता हुआ, चल रहा था. दो लोग उठाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. इसके बीच मोटर-गाड़ियों के गुजरने का सिलसिला बदरस्तूर जारी था, लेकिन किसी के पास इतना वक्त नहीं, जो ऐसे व्यक्ति के बारे में जाने, जो खुद चल नहीं सकता, लेकिन हांड़-मांस का बना, हम लोगों जैसा ही है. लगभग 5 मिनट की जद्दोजहद के बाद घिटते हुये वो व्यक्ति सड़क के किनारे आये, तो एक जिस युवती ने मदद की आवाज लगायी थी, उसने कुछ कहा और हाथ में कुछ दिया, जिसके बाद वो निकल गयी. इसके बाद उस व्यक्ति ने अपनी जेब से सुर्ती का पैकेट निकाला और मुंह में सुर्ती रखते हुये बगल में रखे बैग से प्लास्टिक का बोरा निकाला और उसे पैर से ओढ़ लिया और सिर के नीचे झोला रख कर लेट गये.
ये पूरी स्थिति देख कर मैं हथप्रभ था. मन में तरह-तरह के सवाल चल रहे थे. हमारे साथी का कहना था कि हम लोग आगे बढ़ते हैं, लेकिन हमारे कदम एक कदम आगे और दो कदम पीछे हो रहे थे. मैं समझ नहीं पा रहा था कि कैसे सड़क के किनारे इनकी रात कटेगी. इसी उधेड़ बुन में लगा हुआ था. तभी देवदूत की तरह एक युवक आया, जिसके हाथ में खाने के पैकेट और पानी की बोतल थी, जिसमें उस व्यक्ति को खाने का पैकेज पकड़ाया और पानी की बोतल थमा दी. मैं खुद को नहीं रोक पाया और उससे पूछ लिया, कैसे आपको इनके बारे में जानकारी है, तो उसने बताया, हम लंबे समय में इनके लिए रात का खाना लेकर आते हैं और ये घिसट कर चलते हैं. जिस स्थान पर हैं, इसी के आसपास ही रहते हैं.
युवक कहने लगा कि मरता, क्या न करता वाली स्थिति है. अगर कुछ व्यवस्था होती, तो ये ऐसे थोड़े ही रहते. सड़क के किनारे, अब तो दिनोंदिन इनकी स्थिति खराब हो रही है, लेकिन सबका मालिक एक ही है, भगवान, जिनकी कृपा बनी रहे. मुझे युवक की बातें देवदूत की तरह लग रही थीं. इसके साथ थोड़ा ढांढस भी मिला. कोई तो देखनेवाला है. अब जब दिवाली की तैयारी चल रही है, तो हमारे दिमाग में उस व्यक्ति की तस्वीर ही लगातार घूम रही है, उसका आज का दिन कैसे कट रहा होगा. रोशनी से नहाई सड़क के किनारे किस तरह से उसकी आवाज कोई सुन रहा होगा, या फिर वही फरिस्ता युवक उनके लिए रात का खाना लेकर आया होगा और पानी की बोतल- खाने का डिब्बा पकड़ा कर गया होगा. ये सब ऐसे सवाल हैं, जो दिमाग से निकल नहीं रहे हैं. मन बार-बार यही कह रहा है कि काश किसी के साथ ऐसा नहीं होता या फिर हम ऐसी स्थिति में पहुंच जाते, तो ऐसे लोगों के लिए कुछ कर सकते. ईश्वर ऐसा दिन लाये, जब इन जैसे लाचारों को सोचने की जरूरत नहीं पड़े. इनकी जिंदगी में रंग खुद- ब- खुद घुल जाएं. जिंदगी बदरंग नहीं रहे. अपनी बात मशहूर शायर मुनव्वर राना के एक शेर से खत्म करना चाहूंगा.

दुनिया तेरी रौनक से मैं ऊब रहा हूं.
तू चांद मुझे कहती थीं, मैं डूब रहा हूं.


मंगलवार, 20 नवंबर 2018

सर्दी से बचने का देसी और घरेलू नुस्खा

सर्दियों की शुरुआत हो गयी है. ऐसे में बहुत सारे लोगों को सर्दी की समस्या हो जाती है. नाक जाम हो जाती है. नाक जाम ही नहीं हो, इसके लिए सीधा और सरल इलाज है, जो हमारे गांव में अाजमाया जाता था और हमने भी आजमाया है. शुद्ध सरसों का तेल लें और सुबह उठने के बाद हथेली में सरसों (कड़ुआ तेल) तेल लेकर नाक में एक तरफ उंगली से बंद करें और दूसरी ओर से तेज सांस लेकर तेल नाक में सुड़क लें और ऐसा ही दूसरी तरफ से करें. इसे गांव की भाषा में नाक में तेल डालना कहते हैं. इससे किसी भी तरह की सर्दी होगी. कितनी भी नाक जमी होगी, तुरंत राहत मिलेगी. ऐसा आप दो-तीन दिन तक कर लेते हैं, तो आपको सर्दी से पूरी तरह से राहत मिल जायेगी. इससे होठों और चेहरे का रुखापन भी दूर होता है. बिना सर्दी के भी ये नुस्खा आप आजमा सकते हैं. इससे आपको सर्दी नहीं होगी.


शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

धन-मन का करीब का रिश्ता होता है

जैसा अन्न...वैसा मन...ये कहावत भारतीय समाज में आम है, ये पढ़ने और समझने में जितनी सरल है. इसके अर्थ उतने ही व्यापक हैं. इसे समझने के लिए एक उदाहरण महाभारत काल से....महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था...पितामह भीष्म वाणों की शैय्या पर लेटे हुये थे...वो सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे, ताकि अपने प्राण त्याग सकें. इस दौरान रोज पांडव उनके पास जाते थे और पितामह उन्हें नीति की बातें बताते थे, लेकिन इस दौरान द्रौपदी पितामह के नीति वचन सुनने के लिए नहीं जाती थीं. इससे श्रीकृष्ण को चिंता हुई, तो उन्होंने एक दिन द्रौपदी से कहा कि पितामह के पास वो भी चलें. द्रौपदी श्रीकृष्ण की बात कैसे काट सकती थीं, वो तैयार हो गयीं. पांडवों के साथ द्रौपदी पितामह भीष्म के पास पहुंच गयीं.
पितामह ने उस दिन पांडवों को राज्य चलाने की नियम और नीतियां बता रहे थे. इसी दौरान उन्होंने कहा कि जो राजा अपने राज्य में अन्याय होता देखता है, उसका पौरुष क्षीर्ण हो जाता है. इसलिए राजा को अन्याय न करना चाहिये और न होते हुये देखना चाहिये. इस पर द्रौपदी ने पितामह से सवाल किया. कहा- पितामह जिस दिन मेरा चीर हरण हो रहा था, उस दिन आपने क्या किया था? विशेष बात ये थी कि पितामह से कोई सवाल नहीं करता था, वो जो कहते थे, पांडव उसे चुपचाप सुनते थे, लेकिन द्रौपदी का सवाल सुनकर सब लोग सन्न रह गये, लेकिन पितामह ने उन्हें जो उत्तर दिया, वो अपने आप में गौर करनेवाला है. पितामह भीष्म ने कहा कि बेटी द्रौपदी उस समय मैं पाप का अन्य खाता था, इस वजह से मेरा मन भी गंदा हो गया था...इससे साफ है कि जो इंसान गलत तरीके से कमाये धन का उपयोग खुद पर और अपने बच्चों के लिए करता है. उसका गलत असर उसके और उसके बच्चों पर पड़ता है. ऐसे उदाहरण अगर आप अपने आसपास देखेंगे, तो जरूर मिल जायेंगे. इसलिए धन और मन का बहुत करीब का रिश्ता होता है. खुद के श्रम से कमाये हुए धन पर ही विश्वास करें, गलत तरीके से अगर आप धन कमायेंगे और उसे अपने और परिवार के प्रयोग में लायेंगे, तो उसका नतीजा भी वैसा ही होगा और इसके लिए पूरे तौर पर उत्तरदायी आप ही होंगे.

शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

अब बड़ा भाई भी नहीं !

राजनीति भी बहुत अजीब है, समझने की कोशिश करो, तो उलझन बढ़ती जाती है. अगर उलझनों को सुलझाने की कोशिश करो, तो सिरा मिलता ही नहीं है. कुछ चीजों के मकसद और मायने बहुत साफ होते हैं और दिखते हैं, लेकिन जो होता है, कहते वो दिखता है और जो दिखता है. वो होता नहीं है. शायद यही राजनीति है. राजनीति में कब कौन सा दल, कौन सा दांव चलेगा, जिससे कितने लोग चित होंगे. इस सबका अंदाजा लगाकर ही दांव चला जाता है, लेकिन कुछ लोग समझ पाते हैं, ज्यादा लोग समझने में अनाड़ी ही साबित होते हैं. अगर अपनी बात करूं, तो अनाड़ी कह सकते हैं.
बात ज्यादा पुरानी नहीं है...बिहार में जदयू के नेताओं में 2019 के सीट बंटवारे को लेकर अजीब सी बेचैनी थी. लगता है कि अब फैसला हो ही जाना है. धमकी से लेकर क्या-क्या हो रहा था. भाजपा के नेता बचाव की मुद्रा में थे और कह रहे थे कि समय आने पर सब तय हो जायेगा. जदयू के साथ रिश्ता पुराना है, लेकिन जदयू के नेता मानने को तैयार नहीं. कभी कहें कि बड़े भाई तो हमी हैं. हमारी ही चलेगी, यह दुहाई चल ही थी. इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का बिहार दौरा हुआ और सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात हुई.
बाद में पता चला कि एक महीने में सबकुछ फाइनल हो जायेगा. इसके बाच नेताओं की बयान रूपी तलवारें फिर से म्यान में वापस चली गयीं. अब महीना बीत गया है. दूसरा महीना भी आधा बीत चुका है, लेकिन अभी तक स्थिति साफ नहीं हुई है. ऐसे में सीटों को लेकर बेचैनी बढ़ी है, लेकिन इस बार जाहिर करने का इरादा नहीं है. अब तो जदयू के नेता खुद को बड़ा भाई मानने को भी तैयार नहीं है. कहते हैं कि इन बातों का कोई मायने नहीं है. सीट का बंटवारा समय पर हो जायेगा. अभी बहुत समय है. आखिर इसका क्या मतलब निकाला जाना चाहिये. कौन दल क्या दांव चल रहा है. भाजपा नेता अब भी पुराना बयान ही दुहरा रहे हैं. क्या अब जल्दी नहीं है.

मंगलवार, 1 मई 2018

लहसुलन खाएं, खुद को सेहतमंद बनाएं

लहसुन का प्रयोग अमूमन हर रसोईघर में होता है. छौक लगाने और ग्रेवी बनाने में अक्सर इसका इस्तेमाल होता है, तेल और मसाले में जब लहसुन पकता है, तो अपने कई मूल गुण खो देता है, लेकिन लहसुन का प्रयोग अगर खाली पेट किया जाये, तो हमारे शरीर के लिए इसके फायदे ही फायदे हैं. नुकसान कुछ भी नहीं. इसलिए, ये सलाह है कि कई बीमारियों से बचने या फिर उनके असर को कम करने के लिए लहसुन का प्रयोग करें.
लहसुन औषधीय और पोषक तत्वों से भरपूर है. इसमें बिटामिन बी 1, बी 6 और सी होती है. साथ ही मैगनीसिय और कैल्शियम जैसे कई खनिज भी पाये जाते हैं, जो हमारे शरीर के लिए फायदेमंद हैं. अगर आप सुबह खाली पेट लहसुन का खाते हैं, तो यह आपकी सेहत के लिए रामबाण जैसा है. आपको लहसुन के कुछ ऐसे फायदों के बारे में बताते हैं, जो कॉमन हैं, लेकिन लगातार इनके बारे में जानते रहना चाहिये और खाली पेट लहसुन का इस्तेमाल करते रहना चाहिये.

लहसुन हमारे दिल की रक्षा के लिए एक अच्छा आहार है, जो स्ट्रोक की संभावनाओं को कम करता है. धमनियों में रक्त जमा होने को रोकने में मददगार होता है. खून को पतला करना है, जिससे उसका सर्कुलेशन अच्छा बना रहता है. कोलेस्ट्राल को कंट्रोल करता है. साथ ही दिल की बीमारियों से भी हम लोगों को बचाता है.

लहसुन खाने से उच्च रक्तचाप नियंत्रण में रहता है. इसीलिए जो लोग उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं. उनको रोज सुबह खाली पेट लहसुन खाने की सलाह दी जाती है. इसकी वजह यह है कि लहसुन ब्लड सर्कुलेशन को सही रखने में काफी मददगार होता है.

पानी उबालकर उसमें कुछ लहसुन की कलियां डाल दें. गुनगुना रहने पर ये पानी पीयें, काफी फायदा होगा. कब्ज और डायरिया से आराम मिलेगा. साथ ही इससे अापके शरीर में जहरीले तत्व भी निकल जायेंगे.

खाली पेट लहसुन खाने से हाजमा भी ठीक रहता है. इससे भूख भी खुलकर लगती है. ये गठिया और उसके लक्षणवाले लोगों को भी फायदा करता है. इसलिए अगर आपको जोड़ों का दर्द है, तो खाली पेट नियमित रूप से लहसुन खाने की आदत डालिये. ये आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा.

खाली पेट लहसुन खाने से टेंशन भी दूर रहता है. ऐसा माना जाता है कि जिस तरह का जीवन हम लोग जी रहे हैं. उसमें व्यक्ति अक्सर मानसिक टेंशन से गुजरता है, जिससे हमारे पेट में ऐसे कुछ एसिड बनने लगते हैं, जिनसे हमें घबराहट होने लगती है, जिसे लहसुन दूर कर देता है.

लहसुन एंटीबैक्टीरियल और दर्द निवारक भी माना जाता है. अगर किसी के दांत में दर्द है, तो उसमें एक दो कली लहसुन को पीस कर उसी दांत पर रखना चाहिये, जो दर्द हो रहा है. इससे राहत मिलेगी. खाली पेट लहसुन खाने से नसों की झनझनाहट में भी आराम मिलता है.

लहसुन श्वांस संबंधी बीमारियों में फायदा करता है. यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है. लहसुन में एंटी फंगल तत्व पाये जाते हैं, जो हमें फायदा करते हैं. इसके अलावा और भी तमाम फायदे सुबह के समय लहसुन खाने से होते हैं. मैं, तो यही कहूंगा पर व्यक्ति अपने किचेन में रहनेवाले लहसुन के बारे में जाने और निरोग रहे.


गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

डिजिटल इंडिया की महाबस यात्रा

इंडिया में जब सब कुछ डिजिटल हुआ जा रहा है। सरकार से लेकर आम आदमी तक। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। 12 करोड़ आबादी में 6.50 करोड़ मोबाइल। दुहाई पर दुहाई। बलिहारी पर बलिहारी। मोबाइल से पंखा, बिजली और एसी चलाने और बुझाने की तकनीकि का गुणगान। बलिहारी जा रहे हैं। तरक्की हो रही है। पकौड़ा छानने की तकनीकि पर भी बहस जारी है। ई पकौड़ा वाले कभी पटना से मुजफ्फरपुर तक बिहार सरकार की बस का सफर कर लें। सब भूत उतर जायेगा। सड़क फोर लेन और बस बिना लेनवाली। चढ़ते ही लगेगा कहां आ गये। डिजिटल का भूत, स्वच्छता की सौगंध, न्यू इंडिया का सपना बसवा की हालत तोड़ के रख देती है। धूल में सनी फ़टी हुई गद्दी। खिड़कियों को मात देते शीशे। ठंडी में शीशों के बीच बदन को चीरनेवाली हवा। सबका आंनद मन को मदमस्त कर देता है। टिकट का नंबर आयेगा, तो सुविधा के मुताबिक रिचार्ज करनेवाला मामला आ जाता है। 70 रुपये सरकारी किराया है। सो बात उससे शुरू हो और जितने में पट जाये। रोज जानेवालों का काम 30 में भी चल जाता है। कोई 50, कोई 40 और कोई 60 देकर इस बात में मगन रहता है कि हमने 30, हमने 40 रुपये बचा लिये। प्राइवेट में जाते तो 90 रुपये लग जाते। कुछ लोग ऐसे भी रहते हैं, जो पूरा टिकट का दाम इस आशा में देते हैं कि सरकार के पास पैसा जायेगा, तो बस का दिन सुधरेगा, वो रास्ते भर टिकट मांगते रह जाते हैं। जैसे पैसा लेनेवाला दिखता है टिकट की गुहार लगाते है। वो आश्वासन देकर ओझल हो जाता है। कहता है कि पैसा लिये हैं, तो टिकट जरूर देंगे। ओरिजनल टिकट मिलेगा। बस कुछ देर इंतजार करिये। यह इंतजार यात्रा खत्म होने तक का होता है, जो लोग जिद करके टिकट मांगते हैं, उनको उतरते समय पुरानी तारीख का टिकट पकड़ा कर जल्दी उतरने को कह दिया जाता है। ऐसा डिजिटल प्रयोग कि आप दिनभर सोचते रहिये। यह आज से नहीं सालों से जारी है।
एक सच्ची घटना बताते हैं। 2013 की बात है। रांची से एक गुरु जी आये और अपनी बहन से मिलने सीतामढ़ी चले गये। लौटने लगे, यो सरकारी बस दिखी। उसी में बैठ लिये। वामपंथी गुरु जी ने सोचा कि सरकार का कुछ फायदा करा देते हैं। पैसा दिया और टिकट की जिद पर अड़ गये। बार-बार टिकट की जिद, लेकिन टिकट नहीं मिला। मुजफ्फरपुर में उतरे, तो वही पुरानी डेटवाला टिकट थमा दिया गया। कहा गया ले लीजिये टिकट, रास्ते भर जान खा लिया। गुरुजी भी ज़िद्दी, तारीख पढ़ते ही फिर पलट कर लौटे शिकायत करने लगे, पुराना डेट है। सरकार को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। नया टिकट दो, लेकिन इस बार गुरुजी को सरिया के उत्तर मिल गया, तो वह तिलमिला गये। इसी बीच मे अगवानी के लिए हम बस स्टैंड पहुंचे, तो गुरुजी ने बड़े कूल अंदाज में कहा कि एरिया मैनेजर का ऑफिस जानते हो। मैंने कहा कि हां। कहने लगे, चलो मिलना है, जरूरी बात करनी है। मुझको लगा कि गुरुजी के पुराने परिचित होंगे, लेकिन एरिया मैनेजर के सामने जाते ही गुरुजी फट पड़े। मैनेजर साहब हंस रहे थे, लेकिन गुरुजी का दर्द सुनकर सीरियस होने का नाटक करने लगे। घंटी बजी, आदेशपाल आया। कुछ देर बस का स्टॉप सामने था। देखते ही गुरुजी ने पहचान लिया। गुरुजी कुछ कहते, उससे पहले ही वो दुखड़ा रोने लगा। मौका ही नहीं मिलता टिकट काटने का। बस चलायें की टिकट काटें। मैनेजर साहब ने बात सुनी और सजा के रूप में एक के बदले पांच टिकट गुरुजी को खुश करने के लिए कटवा दिये। हम चुपचाप पूरी कहानी देख रहे थे। टिकट काटने के बाद स्टाप ने कहा कि अब तो ठीक है, हम जाएं। वो फ़टे हुए टिकट लेकर वापस जाने लगा, तो गुरुजी जोर से चिल्लाये, अरे ये फिर यही टिकट सवारियों को दे देगा। एरिया मैनेजर ने टिकट लेकर फाड़ दिया, तो बस कर्मचारी पूरे फार्म में आ गया। चाबी फेंक दी और चिल्लाते हुए बाहर निकल गया। मैनेजर साहब मनाने की मुद्रा में आ गये, लेकिन सामने गुरुजी थे, सो कहने लगे कि गलती पर मैं किसी को माफ नहीं करता। मुझे लगा कि एपिसोड पूरा हो चुका है अब चलना चाहिए। गुरुजी को लेकर वहां से डिजिटल सोच की तरह आगे बढ़ गया।

शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

300 सौ बीमारियों को रोकता है सहजन

बचपन में घर में सहजन की सब्जी बनती, तो मैं खाने से मना कर देता था. लोगों को खाते देख अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि उसका रेसा अच्छा नहीं लगता था. घर के लोग कहते बहुत फायदा करता है, तो लगता कि ऐसे ही कह रहे होंगे. इसके बाद जब पढ़ाई के दौरान कभी ऐेसा मौका नहीं आया. चूंकि सहजन अच्छा नहीं लगता था, इसलिए बाद के दिनों में भी मैंने इसे अपनी सब्जी में शामिल नहीं किया, लेकिन कुछ साल पहले बंदरा में पूसा विवि के पूर्व कुलपति डॉ गोपाल जी त्रिवेदी के यहां जाना हुआ. बिहार सरकार के कृषि सलाहकार डॉ मंगला राय का दौरा था. ाह बंदरा में डॉ त्रिवेदी के निर्देशन में बने मछली तालाबों को देखने आये थे. साथ ही उन्हें धान की पैदावार देखने भी जाना था.
इस दौरान सैकड़ों किसानों से उन्हें रू-ब-रू होते देखा. वह किसानों के सवालों का जवाब बहुत सहज होकर दे रहे थे. इसी दौरान उन्होंने कहा, हमने बिहार सरकार को दो प्रस्ताव दिये हैं. पहला, जहां सालों भर पानी भरा रहता है. वहां मछली का जीरा डाला जाये. दूसरा, सरकारी जमीन और सड़कों के किनारे सहजन के पौधे लगाये जायें. इन्हें किसी के हाथों नीलाम नहीं किया जाये. आसपास जो लोग रहते हैं. वह इनका उपयोग करें. इससे कुपोषण की समस्या तेजी से दूर होगी. इसी दौरान मैंने उनसे सहजन के फायदों के बारे में जानना चाहा, तो उन्होंने कहा कि कोई एक फायदा हो, तो बतायें. सहजन तो हम लोगों के लिए भगवान का वरदान है.
डॉ मंगला राय की बातों का सिलसिला लगातार चलता रहा. इसी दौरान सहजन के पत्ताें की पकौड़ी खाने को मिली. बाद के दिनों में डॉ त्रिवेदी ने सहजन के गुणों के संबंधित बिहार सरकार की पुस्तिका भी पढ़ने के लिए दी, जिससे सहजन के गुणों की चर्चा की गयी थी. पुस्तिका पढ़ कर लगा कि हम सहजन के बारे में कुछ नहीं जानते थे. इसके बाद इंटरनेट व अन्य माध्यमों से सहजन के गुणों के बारे में पढ़ा, तो लगा कि सचमुच यह हम लोगों के लिए भगवान का वरदान है. हाल में फिर डॉ त्रिवेदी से मुलाकात हुई, तो उन्होंने सहजन के फायदों की बात बतायी. हालांकि अभी तक मेरी आदत नहीं बदल पायी है. मेरे सब्जी के थैले में सहजन अभी तक कम ही जगह बना पाया है, लेकिन इसके जो फायदे हैं. उससे लगता है कि इसे अपने खाने में शामिल करना जरूरी है, ताकि कई तरह के रोगों से बचा जा सके.
बिहार और उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक स्थानों पर बड़ी संख्या में सहजन के पेड़ लगे मिल जाते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में सरकार इसकी खेती को बढ़ावा दे रही है. वहां के किसान सहजन की खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं. एक एकड़ में सालाना एक लाख तक का फायदा होता है. एक बार खेती के बाद चार साल तक इसकी फसल होती है. सहजन के अंगरेजी में ड्रमस्टिक कहते हैं. अपने यहां इसे मुनगा, सेंजन आदि नामों से जाना जाता है.
सहजन में 92 तरह के मल्टीविटामिन, 46 तरह के एंटी ऑक्सीडेंट, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड होते हैं, जो कुपोषण से लड़ने में सबसे ज्यादा कारगर होते हैं. इसके फल के साथ फूल, पत्तियां, छाल व जड़ में भी औषधीय गुण होते हैं. इसके नियमित सेवन से दिल, लीवर, ट्यूमर, डायबिटीज जैसी बीमारियों में फायदा होता है. गर्भवती महिलाओं को सहजन के प्रयोग की सलाह दी जाती है. इससे प्रसव के दौरान होनेवाली परेशानियां कम होती हैं.
सहिजन के नियमित इस्तेमाल से विटामिन-सी की कमी नहीं होती है. तमाम तरह की छोटी-मोटी बीमारियों से बचाव होता है. इसका सूप बना कर भी पिया जाता है. पत्ताें को उबाल कर उसका पानी भी पी सकते हैं. जुकाम होने पर इसके पत्ताें को पानी में उबाल कर भाप लेने से फायदा मिलता है. इसमें जिंक, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीसिमय व सीलियम होता है. दक्षिण भारत के व्यंजनों में इसका खूब इस्तेमाल होता है. साथ ही आयुव्रेदिक दवाइयां भी बनती हैं.

शनिवार, 30 सितंबर 2017

वो अस्सी के हैं, तो आप भी...

पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सरकार की अर्थनीत को लेकर सवाल उठाये और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को निशाने पर लिया, तो भाजपा के अंदर ही बड़ी बहस शुरू हो गयी. हालांकि ये सवाल पहले से विपक्ष व व्यापारिक प्रतिष्ठानों की ओर से उठाये जाते रहे हैं, लेकिन तब सरकार अपने बचाव में अलग-अलग तर्क पेश करती रही है. अब जब अपने घर के अंदर से ही आवाज आयी, तो सामने आये देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह, जिन्होंने ऑल इज वेल कह कर चीजों को संभालने की कोशिश की, लेकिन तीर कमान से निकल चुका था, सो अरुण जेटली ने नाम तो नहीं लिया, लेकिन पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा पर निशाना साध डाला. कहने लगे कि अस्सी साल की उम्र में काम ढूंढ रहे हैं. और तमाम बातें वित्त मंत्री ने कहीं. वित्त मंत्री जब यह बातें कह रहे थे, तब शायद उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि वह अभी भले की किसी उम्र के हों, लेकिन बढ़ तो अस्सी की ओर ही रहे हैं. एक न एक दिन वह भी अस्सी के होंगे और अस्सी के उम्र के काम मांगना क्या गुनाह है क्या? इससे पहले पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने को लेकर जो बयान वित्त मंत्री का आया था, वो भी आपने सुना ही होगा.
भाजपा के घर के अंदर से उठी इस आावाज के शांत होने की जगह बढ़ते जाने की आशंका है, क्योंकि वित्त मंत्री अरुण जेटली के सवाल का जबाव बड़े जोरदार ढंग से यशवंत सिन्हा ने दे दिया है. कहा है कि अगर हम काम मांगते, तो आप वहां नहीं होते. भाजपा के पूर्व और वर्तमान वित्त मंत्री के बीच इस तल्खी का क्या देश के लोगों को फायदा हो रहा है? व्यक्तिगत तौर पर सवाल उठाने से क्या समस्याओं को समाधान हो जायेगा? क्या जीएसटी का रिटर्न भरने के लिए परेशान रहनेवाले व्यापारियों की समस्या सुलझ जायेगी? क्या पेट्रोल-डीजल के दामों में इन बयानों का असर पड़ेगा? शायद नहीं, तो फिर इस बयानबाजी के क्या मायने निकालने चाहिये. आज कुछ लोगों से बात हो रही थी, तो उनका कहना था कि हर सेक्टर से निराशा का माहौल है. इसका असर अपने लोक उत्सवों तक पर पड़ रहा है. इस बार की पूजा में वैसी भीड़ नहीं देखने को मिली, जो पिछले सालों में होती रही है.
सोशल मीडिया पर जीएसटी को ब्लू ह्वेल गेम का भारतीय वजर्न कहा जा रहा है. ऐसे भी मैसेज देखने को मिल रहे हैं, जिसमें हाल-चाल की जगह लोग जीएसटी रिटर्न की बात करते दिखते हैं. अभी दुर्गा पूजा में एक मैसेज आया, जिसमें मां से जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की बुद्धि देने की बात कही गयी है. अगर ऐसे मैसेज और बातें आम लोगों के बीच हो रही हैं, तो संकेत अच्छे नहीं हैं.

सोमवार, 25 सितंबर 2017

समाज को बनानेवाली खबरें

बेतिया व बेगूसराय से समाज को राह दिखानेवाली ऐसी दो खबरें पांच दिनों में आयी हैं, जिनकी इस समय समाज को बड़ी जरूरत है. 20 सितंबर को बेतिया के साठी प्रखंड के धमौरा गांव से समाचार आया कि  वहां की पूजा कमेटी में 10 सदस्य हिंदू हैं, तो दस मुस्लिम भी शामिल हैं. यही नहीं एक तारीख को मोहर्रम के दौरान निकलनेवाली जुलूस की तैयारियों में हिंदू समाज के लोग जुड़े हैं. यानी मुस्लिम दुर्गापूजा का इंतजाम कर रहे हैं. कैसे पूजा होगी, कहां पंडाल बनेगा. मां को क्या भोग लगेगा. पूजा के बाद कितने लोगों को प्रसाद खिलाया जायेगा भंडारा में, तो हिंदू समाज के लिए मोहर्रम में मातम मनाते नजर आयेंगे. यह गंगा जमुनी तहजीब का ऐसा नमूना है, जिसे हमारी पीढ़ियां सीचती आयी हैं और इसे अब हमारी पीढ़ी आागे बढ़ा रही है.
यहां सुबह होते ही धमौरा पंचायत के पूर्व मुखिया जाकिर गुलाब यह चिंता करना शुरू कर देते हैं कि माईस्थान की सफाई कैसे होगी. पंडाल कब तैयार हो जायेगा. वहीं, पूजा समिति के अध्यक्ष देवेंद्र कुमार झा की चिंता इस बात की है कि मोहर्रम के दौरान निकलनेवाले जुलूस में किसी तरह की कोर-कसर नहीं रह जाये.
हाल के सालों में जिस तरह से धार्मिक असहिष्णुता की बात होती रही है. वैसे में धमौरा के लोगों का प्रयास भले ही छोटा हो, लेकिन इसका संदेश बहुत बड़ा है. धमौरा की तरह ही बेगूसराय की किरोड़ीमल गजानंद दुर्गा पूजा समिति के 24 सदस्यों में 17 मुस्लिम समुदाय के लोग हैं यानी समिति में इन लोगों का बहुमत है. किरोड़ीमल में बीते 97 साल से पूजा हो रही है. यहां मंदिर से पचास मीटर की दूरी पर मस्जिद है, जहां पांचों वक्त की नमाज होती है, जब नवाज का समय होता है, तो मंदिर में होनेवाली पूजा का लाउडस्पीकर बंद कर दिया जाता है. यह भाईचारे और आपसी एकता की मिसाल है. इसके लिए किसी सरकारी या प्रशासनिक आदेश की जरूरत नहीं है. यह यहां के लोग खुद कर रहे हैं.

जब जिसे चाहिये बुरा कहिये, इससे आसान कोई काम नहीं

आज जब चारों ओर सच और झूठ को लेकर ऐसी हवा बनी हुई है कि इसमें अंतर कर पाना मुश्किल हो रहा है. आप किसी चीज को समझने की कोशिश करते हैं, तब तक उसके पक्ष में दो-चार ऐसी बातें आ जाती हैं, जो आपको परेशान करने लगती हैं. सोशल मीडिया के इस जमाने में जब एक-दूसरे को बुरा साबित करने की होड़ लगी हुई है. ऐसे में असलम साबरी को सुनना सुहाना लगता है. वह कहते हैं, जब जिसे चाहिये बुरा कहिये, इससे आसान कोई काम नहीं. सचमुच, किसी को बुरा कहने से आसान कोई काम नहीं है. ऐसा उन लोगों के लिए है, जो झूठ की खेती करते हैं. उसी को जीते हैं. आज हमारे आसपास ये आम हो चला है.
हर सक्षम हाथ में स्मार्ट फोन है. न्यू मीडिया का जमाना है. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसी सोशल साइट्स हैं, जो आपके संदेश को देश-दुनिया तक पलक झपकते ही पहुंचाती हैं. अब हर आदमी पत्रकार है. अपनी मनमर्जी का पत्रकार, जो चाहे वो कहे और जो चाहे वो लिखे. हां, सोशल साइट्स के कुछ पाबंदियां लगानी जरूर शुरू की हैं, लेकिन हम जिस चीज की बात कर रहे हैं, अभी शायद वह उनके दायरे में नहीं आयी है और लगता है कि आयेगी भी नहीं.
बचपन में एक कहावत सुनता था कि दूसरे के बारे में उतना ही बोलना चाहिये, जितना आप सुन सकें, लेकिन यहां मामला उसका पूरा उल्टा है. यहां आप दूसरे के बारे में चाहे जितना बोल दें. मनगढंत चीजें ही तो कहनी हैं. आपकी कल्पना की उड़ान जितनी ज्यादा है, आप उतना सामनेवाले को धिक्कार सकते हैं. उसकी बुराई कर सकते हैं. यह हो रहा है, ऐसा करने में हम सब ये भूल जाते हैं कि हम कहां खड़े हैं. अगर मान लीजिये कि कोई गलत कह रहा है और कर रहा है, तो हमारा क्या काम है, क्या हम भी वैसे ही बन जायें या फिर हम अपने आपको उससे दूर रखें.
अगर मान लीजिये, किसी ने आपको भला-बुरा कहा, तो आप भी उसके बारे में वही कहेंगे, तो ऐसे में आपमें और उसमें अंतर क्या रह जायेगा. अगर हम ऐसी बातों में पड़ेंगे, तो शायद वह लक्ष्य हमसे दूर हो जायेगा, जिसके लिए हम काम कर रहे हैं. हमें पिछले एक-डेढ़ दशक पहले की महान क्रिकेटर भारत रत्न सचिन तेंदुलकर के बयान याद आते हैं, जब भी उनके खेल को लेकर आलोचना की जाती थी, तो वह उसका जबाव अपने कर्म (बल्ले) से देते थे, जब शतक जड़ देते थे, तो आलोचक अपने आप उनके फैन हो जाते थे. मुङो लगता है कि हमको किसी को बुरा कहने से अच्छा होगा कि हम अपने कर्म से यह साबित करें कि हमारी स्थिति क्या है? इससे माकूल और कोई जबाव नहीं होगा.

रविवार, 24 सितंबर 2017

स्वच्छता का अपमान नहीं करें जनाब!

प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता को अभियान और जीवनचर्या में ढालने की मुहिम शुरू की, लेकिन यह मुहिम चंद ऐसे लोगों के कारण कभी-कभी हास्यास्पद बन जाती है, जो स्वच्छता के नाम पर दिखावा करने लगते हैं. भले ही यह फोटो खिचवाने के लिए किया जाता हो, लेकिन इसका संदेश सही नहीं जाता है. यह क्यों होता है, इस पर विचार किये जाने की जरूरत है, क्योंकि स्वच्छता का अपमान नहीं होना चाहिये.
हाल में एक तस्वीर देखने को मिली, जिसमें स्वच्छता अभियान चला रहे 25 से 30 में से पांच लोगों के हाथ में झाड़ थी और साफ करने के लिए फर्श पर केवल दो पत्तियां थीं, लेकिन लग रहा था कि सभी लोग कठिन परिश्रम कर रहे हैं, क्योंकि ऐसा पोज उन्होंने बना रखा था. यह करके समाज को आखिर हम क्या संदेश देना चाहते हैं? अगर आपको सही में स्वच्छता अभियान चलाना है, तो ऐसी जगहों का चुनाव करना चाहिये, जहां सही में गंदगी है. वहां अगर काम हो, तो लोगों को फायदा होगा और अगर कूड़े की वजह से कोई सार्वजनिक स्थान गंदा हो गया था, तो वह साफ हो जायेगा. इससे होगा ये कि लोग वहां पर गंदगी करने से पहले सोचेंगे.
दूसरी बात. सुबह के समय जब शहर में निकलिये, तो सफाई कर्मचारी कई स्थानों पर झाडू़ लगाते मिलते हैं. इनमें से कई लोग ऐसे होते हैं, जो कूड़ा उठाने के डर से झाड़ से सफाई तो करते हैं, लेकिन सड़क का कूड़ा धीरे से नाली में गिरा देते हैं और यह करते हुये आगे बढ़ते जाते हैं. सवाल है, क्या ऐसे सफाई कर्मी स्वच्छता को मुहिम के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं.
हम उत्तर बिहार में रहते हैं. यहां के ज्यादातर जिलों में कूड़ा डंपिंग का स्थान नहीं है. शहरों से जो कूड़ा निकलता है. वह जैसे-तैसे सड़कों के किनारे डाला जाता है, जहां पर स्थान चयनित है. वहां पर कूड़ा पहुंच नहीं पाता है. ऐसे में हो क्या रहा है. इस पर विचार होना चाहिये. हम एक जगह के कूड़े से दूसरी जगह पर गंदगी कर रहे हैं. ऐसे और तमाम उदाहरण हैं, जिनके बारे में हम बात कर सकते हैं, लेकिन इस सबके के बीच महत्वपूर्ण ये है कि अगर हम स्वच्छता की बात करते हैं, तो हमको इसका भागीदार होना होगा. अपने घर से ही सही स्वच्छता को बढ़ाना होगा. अगर यह हम करते हैं, तो हम स्वच्छता के सपने को साकार कर सकेंगे, क्योंकि कोई भी सरकार बिना जन सहयोग के ऐसा नहीं कर सकती है.

शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

केबीसी विनर सुशील बनेंगे शिक्षक!

केबीसी-पांच में पांच करोड़ का जैकपॉट जीत कर देश ही नहीं दुनिया में नाम करनेवाले सुशील कुमार ऐसे संवेदनशील इंसान हैं, जो दूसरे के दर्द को नहीं देख सकते. वह बिना बताये कितने लोगों की मदद करते रहते हैं. इसका अंदाजा शायद हम और आप नहीं लगा सकते हैं. इसके बारे में वह ज्यादा बात भी नहीं करना चाहते, जब कोई बात होती है, तो अपनी तारीफ पर वह चुप्पी साध लेते हैं और फिर बात बदल देते हैं. इससे वह कैसे इंसान हैं, इसका अंदाजा लग जाता है. सुशील भाई को टीइटी में सफलता मिली है. इसकी बधाई संबंधी पोस्ट मैं सुबह ही सोशल मीडिया पर लिख चुका हूं, लेकिन मुङो लगा कि उनकी इस सफलता पर इससे इतर भी कुछ लिखना चाहिये, क्योंकि वह जिस तरह से इंसान हैं. वैसा होना साधरण बात नहीं है. कहा जाता है कि साधरण बने रहना बहुत मुश्किल है, लेकिन सुशील भाई ने साधरण को साध रखा है. वह लगातार साधारण बने हुये हैं.
टीइटी में सफलता पर उन्हें चारों ओर से बधाई मिल रही है. ज्यादातर लोग उनसे शिक्षक बनने की बात कह रहे हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि सुशील भाई ने अभी तक तय नहीं किया है कि वह नौकरी ज्वाइन करेंगे या नहीं, लेकिन मुङो लगता है कि लोगों के आग्रह पर वह जरूर विचार कर रहे होंगे और कोई बेहतर फैसला लेंगे.
मेरा जब भी मोतिहारी जाना होता है. अक्सर सुशील भाई से मुलाकात होती है. इस दौरान वह जिस आत्मीयता से मिलते हैं और बात करते हैं. वह अपने आप में अलग होती है. कुछ माह पहले मैं एक बैठक के सिलसिले में मोतिहारी गया था, तब उनसे मुलाकात हुई थी. काफी देर तक बातें होती रहीं. हम चाहते थे वह हमारे साथ थोड़ी देर और रहें, लेकिन उन्होंने विनम्र अनुरोध किया कि हमें जाना है. कुछ जरूरी काम है. मैंने पूछा, तो कहने लगे कि पत्नी ने कहा है, इसलिए मैंने टीइटी परीक्षा देने का फैसला लिया है. उसी की तैयारी कर रहा हूं. अब परीक्षा देना है, तो पढ़ना होगा. उन्होंने जिस सलीके से यह बात कही, मैं उन्हें रोक नहीं सका. उसके बाद दो बार और मुलाकात हुई. एक दिन मैं उनकी सितार क्लास में भी गया था, उनके गुरु के घर जहां, वह सीखते हैं. वह बेहतर सितार बजाने की चाहत भी रखते हैं. हालांकि मेरे हिसाब से वह अभी भी बेहतर प्रस्तुति देने लगे हैं.
सामाजिक बदलाव के लिए तो वह लगातार काम करते रहते हैं, जहां भी जरूरत होती है. वहां मौजूद रहते हैं. हाल में बाढ़ आयी, तो प्रभावितों की मदद में वह आगे आये. खुद प्रभावित इलाके में जाकर लोगों की मदद की. ऐसे कितने ही उदाहरण हैं, जिन्हें गिनाने में लंबा समय लगेगा. हां, एक बात और. सुशील कुमार ने समाज के आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के एक सौ से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा उठा रखा है, जिनकी पढ़ाई का पूरा इंतजाम वह कर रहे हैं. 

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

बात साधारण, लेकिन नतीजा असाधारण

बचपन में गांव में रामायण की कथा होती थी. एक महराज जी आते थे. लकदक कपड़े पहनते और बड़े नियम और संयम से रहते थे. पूरे नवरात्र कथा होती थी. दशहरा के दिन कथा का समापन होता था. बड़ी भीड़ उमड़ती थी. कथा सुननेवालों में महिलाओं व बच्चों की संख्या ज्यादा होती थी. मां की वजह से मुङो भी जाना पड़ता, क्योंकि तब तक मुझमे रामायण पढ़ने और कथा सुनने की ललक जग चुकी थी. गांव में कहीं भी रामायण का पाठ होता, तो वहां मैं जरूर जाता. अपने नंबर का इंतजार करता और रामायण का पाठ करने के बाद ही घर लौटता था. कई बार देर-रात हो जाती थी, जिसकी वजह से घर में डांट भी पड़ती, लेकिन वह मंजूर था.
हां, तो बात पंडित जी और रामयण की कथा की हो रही थी. रामायण के प्रसंग सुनाने के साथ वह हारमोनियम के साथ सुंदर भक्ति गीत भी सुनाते थे और किस्से-कहानियां भी बीच-बीच में कहते थे. उनके किस्से कहानियां कहने का अंदाज निराला था. एकता में शक्ति की कहानी, जो हम लोगों को स्कूल में पढ़ाई गयी, वह पंडित जी से भी सुनने को मिलती. वह बताते कि कैसे एक गांव में बड़ा व्यापारी रहता था, जिसने पूरे जीवन भर मेहनत करके बड़ा व्यापार करना शुरू किया, लेकिन इसी बीच वह बूढ़ा हो गया. उसका पूरा जीवन व्यापार को बढ़ाने में लग गया, लेकिन व्यापारी इस बात से परेशान था कि उसके पांच पुत्रों में से किसी की आपस में नहीं बनती थी. सब एक-दूसरे की खिलाफत करते. इससे व्यापारी की चिंता बढ़ती गयी, उसे यह लगता कि हमारी मृत्यु के बाद इतने बड़े व्यापार का क्या होगा?
व्यापारी लगातार परेशान रहने लगा, जिससे बीमार हो गया. उसे लगा कि वह अब नहीं बचेगा, तो उसने अपने पांचों बच्चों को एक दिन अपने पास बुलाया. पांचों बच्चे आये, लेकिन किसी की एक-दूसरे से बात नहीं हुई. बीमारी व्यापारी की चिंता और बढ़ गयी. इसी बीच उसने अपने पलंग (बेड) के पास से एक मोटी रस्सी निकाली और पांचों बच्चों की ओर बढ़ाते हुये कहा कि इस रस्सी को तोड़ सकते हो. इस पर उसके बच्चों ने कहा कि इसमें क्या है? अभी तोड़ देते हैं. एक-एक कर पांचों बच्चों ने प्रयास किया. पूरी ताकत लगायी, लेकिन रस्सी नहीं टूटी. इसके बाद व्यापारी ने कहा कि अब पांचों लोग मिल कर रस्सी को तोड़ दो. इसके बाद मन न होने के बाद भी पांचों ने मिल कर रस्सी को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हुये.
बच्चों की हालत देख, व्यापारी ने कहा कि रुक जाओ, तुम लोग इसे तोड़ नहीं सकते हो. इसके बाद उसने रस्सी ली और उसकी पांच लड़ियां अलग कर दीं और हर बेटे को एक-एक लड़ी दे दी. फिर क्या था. सभी बेटों ने कुछ ही सेकेंड में रस्सी को कई जगहों से तोड़ दिया. यह देखते ही व्यापारी ने कहा कि तुम लोगों को यहां बुलाने का मकसद पूरा हो गया. अब मेरी बात ध्यान से सुनो. जैसे रस्सी की पांचों लड़ियां एक में पिरोई हुई थीं, तो तुम में से पांचों लोग मिल कर उसे नहीं तोड़ सके, लेकिन उन्हें अलग कर दिया गया, तो तुम सबने कुछ ही देर में उन्हें तोड़ दिया. ऐसे ही अपना परिवार भी है. अगर तुम लोग मिल कर रहोगे, तो तुम्हें कोई पराजित नहीं कर सकता. तुम्हे आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता. तुम अडिग लगातार आगे बढ़ते जाओगे, लेकिन फूट पड़ी, तो सब लोग कमजोर हो जाओगे.
पिता की बात सुन कर व्यापारी के पांचों बेटों को अपने किये पर पछतावा हुआ और उन्होंने उसी समय से साथ रहने का फैसला कर लिया, ताकि पिता के व्यापार को नयी उचाइंयों तक ले जा सकें. इस कहानी का मकसद ये है कि अगर हम किसी परिवार या संस्थान में एकता के साथ रहते हैं, तो हमें कोई भी डिगा नहीं सकता, लेकिन एकता में अगर दरार पड़ने लगी, तो फिर परेशानी से कोई बचा नहीं सकता. इस कहानी को सुनने के बहुत दिनों के बाद जब उच्च शिक्षा को प्राप्त कर रहा था, तो वैशाली का का इतिहास पढ़ने को मिला, जिसमें यह था कि किस तरह से यहां के लोग एकमत होकर फैसले करते थे. यही वजह थी कि वैशाली उस समय अजेय राज्य बन गया था, लेकिन जैसे ही एकता में ददार पड़ी, स्थितियां बदल गयीं.