शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

अब बड़ा भाई भी नहीं !

राजनीति भी बहुत अजीब है, समझने की कोशिश करो, तो उलझन बढ़ती जाती है. अगर उलझनों को सुलझाने की कोशिश करो, तो सिरा मिलता ही नहीं है. कुछ चीजों के मकसद और मायने बहुत साफ होते हैं और दिखते हैं, लेकिन जो होता है, कहते वो दिखता है और जो दिखता है. वो होता नहीं है. शायद यही राजनीति है. राजनीति में कब कौन सा दल, कौन सा दांव चलेगा, जिससे कितने लोग चित होंगे. इस सबका अंदाजा लगाकर ही दांव चला जाता है, लेकिन कुछ लोग समझ पाते हैं, ज्यादा लोग समझने में अनाड़ी ही साबित होते हैं. अगर अपनी बात करूं, तो अनाड़ी कह सकते हैं.
बात ज्यादा पुरानी नहीं है...बिहार में जदयू के नेताओं में 2019 के सीट बंटवारे को लेकर अजीब सी बेचैनी थी. लगता है कि अब फैसला हो ही जाना है. धमकी से लेकर क्या-क्या हो रहा था. भाजपा के नेता बचाव की मुद्रा में थे और कह रहे थे कि समय आने पर सब तय हो जायेगा. जदयू के साथ रिश्ता पुराना है, लेकिन जदयू के नेता मानने को तैयार नहीं. कभी कहें कि बड़े भाई तो हमी हैं. हमारी ही चलेगी, यह दुहाई चल ही थी. इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का बिहार दौरा हुआ और सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात हुई.
बाद में पता चला कि एक महीने में सबकुछ फाइनल हो जायेगा. इसके बाच नेताओं की बयान रूपी तलवारें फिर से म्यान में वापस चली गयीं. अब महीना बीत गया है. दूसरा महीना भी आधा बीत चुका है, लेकिन अभी तक स्थिति साफ नहीं हुई है. ऐसे में सीटों को लेकर बेचैनी बढ़ी है, लेकिन इस बार जाहिर करने का इरादा नहीं है. अब तो जदयू के नेता खुद को बड़ा भाई मानने को भी तैयार नहीं है. कहते हैं कि इन बातों का कोई मायने नहीं है. सीट का बंटवारा समय पर हो जायेगा. अभी बहुत समय है. आखिर इसका क्या मतलब निकाला जाना चाहिये. कौन दल क्या दांव चल रहा है. भाजपा नेता अब भी पुराना बयान ही दुहरा रहे हैं. क्या अब जल्दी नहीं है.

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