प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता को अभियान और जीवनचर्या में ढालने की मुहिम शुरू की, लेकिन यह मुहिम चंद ऐसे लोगों के कारण कभी-कभी हास्यास्पद बन जाती है, जो स्वच्छता के नाम पर दिखावा करने लगते हैं. भले ही यह फोटो खिचवाने के लिए किया जाता हो, लेकिन इसका संदेश सही नहीं जाता है. यह क्यों होता है, इस पर विचार किये जाने की जरूरत है, क्योंकि स्वच्छता का अपमान नहीं होना चाहिये.
हाल में एक तस्वीर देखने को मिली, जिसमें स्वच्छता अभियान चला रहे 25 से 30 में से पांच लोगों के हाथ में झाड़ थी और साफ करने के लिए फर्श पर केवल दो पत्तियां थीं, लेकिन लग रहा था कि सभी लोग कठिन परिश्रम कर रहे हैं, क्योंकि ऐसा पोज उन्होंने बना रखा था. यह करके समाज को आखिर हम क्या संदेश देना चाहते हैं? अगर आपको सही में स्वच्छता अभियान चलाना है, तो ऐसी जगहों का चुनाव करना चाहिये, जहां सही में गंदगी है. वहां अगर काम हो, तो लोगों को फायदा होगा और अगर कूड़े की वजह से कोई सार्वजनिक स्थान गंदा हो गया था, तो वह साफ हो जायेगा. इससे होगा ये कि लोग वहां पर गंदगी करने से पहले सोचेंगे.
दूसरी बात. सुबह के समय जब शहर में निकलिये, तो सफाई कर्मचारी कई स्थानों पर झाडू़ लगाते मिलते हैं. इनमें से कई लोग ऐसे होते हैं, जो कूड़ा उठाने के डर से झाड़ से सफाई तो करते हैं, लेकिन सड़क का कूड़ा धीरे से नाली में गिरा देते हैं और यह करते हुये आगे बढ़ते जाते हैं. सवाल है, क्या ऐसे सफाई कर्मी स्वच्छता को मुहिम के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं.
हम उत्तर बिहार में रहते हैं. यहां के ज्यादातर जिलों में कूड़ा डंपिंग का स्थान नहीं है. शहरों से जो कूड़ा निकलता है. वह जैसे-तैसे सड़कों के किनारे डाला जाता है, जहां पर स्थान चयनित है. वहां पर कूड़ा पहुंच नहीं पाता है. ऐसे में हो क्या रहा है. इस पर विचार होना चाहिये. हम एक जगह के कूड़े से दूसरी जगह पर गंदगी कर रहे हैं. ऐसे और तमाम उदाहरण हैं, जिनके बारे में हम बात कर सकते हैं, लेकिन इस सबके के बीच महत्वपूर्ण ये है कि अगर हम स्वच्छता की बात करते हैं, तो हमको इसका भागीदार होना होगा. अपने घर से ही सही स्वच्छता को बढ़ाना होगा. अगर यह हम करते हैं, तो हम स्वच्छता के सपने को साकार कर सकेंगे, क्योंकि कोई भी सरकार बिना जन सहयोग के ऐसा नहीं कर सकती है.
हाल में एक तस्वीर देखने को मिली, जिसमें स्वच्छता अभियान चला रहे 25 से 30 में से पांच लोगों के हाथ में झाड़ थी और साफ करने के लिए फर्श पर केवल दो पत्तियां थीं, लेकिन लग रहा था कि सभी लोग कठिन परिश्रम कर रहे हैं, क्योंकि ऐसा पोज उन्होंने बना रखा था. यह करके समाज को आखिर हम क्या संदेश देना चाहते हैं? अगर आपको सही में स्वच्छता अभियान चलाना है, तो ऐसी जगहों का चुनाव करना चाहिये, जहां सही में गंदगी है. वहां अगर काम हो, तो लोगों को फायदा होगा और अगर कूड़े की वजह से कोई सार्वजनिक स्थान गंदा हो गया था, तो वह साफ हो जायेगा. इससे होगा ये कि लोग वहां पर गंदगी करने से पहले सोचेंगे.
दूसरी बात. सुबह के समय जब शहर में निकलिये, तो सफाई कर्मचारी कई स्थानों पर झाडू़ लगाते मिलते हैं. इनमें से कई लोग ऐसे होते हैं, जो कूड़ा उठाने के डर से झाड़ से सफाई तो करते हैं, लेकिन सड़क का कूड़ा धीरे से नाली में गिरा देते हैं और यह करते हुये आगे बढ़ते जाते हैं. सवाल है, क्या ऐसे सफाई कर्मी स्वच्छता को मुहिम के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं.
हम उत्तर बिहार में रहते हैं. यहां के ज्यादातर जिलों में कूड़ा डंपिंग का स्थान नहीं है. शहरों से जो कूड़ा निकलता है. वह जैसे-तैसे सड़कों के किनारे डाला जाता है, जहां पर स्थान चयनित है. वहां पर कूड़ा पहुंच नहीं पाता है. ऐसे में हो क्या रहा है. इस पर विचार होना चाहिये. हम एक जगह के कूड़े से दूसरी जगह पर गंदगी कर रहे हैं. ऐसे और तमाम उदाहरण हैं, जिनके बारे में हम बात कर सकते हैं, लेकिन इस सबके के बीच महत्वपूर्ण ये है कि अगर हम स्वच्छता की बात करते हैं, तो हमको इसका भागीदार होना होगा. अपने घर से ही सही स्वच्छता को बढ़ाना होगा. अगर यह हम करते हैं, तो हम स्वच्छता के सपने को साकार कर सकेंगे, क्योंकि कोई भी सरकार बिना जन सहयोग के ऐसा नहीं कर सकती है.
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