दरभंगा जिला मुख्यालय से बेनीपट्टी जानेवाली रोड लगभग 15 किलोमीटर दूर पिंचारूच गांव हैं. देश के अन्य गांवों की तरह यह भी है, लेकिन यहां जो मुहिम चल रही है. वह इसे अन्य गांवों से अलग करती है. गांव में प्राथमिक विद्यालय में पढ़नेवाले छात्रों को हिंदी और अंगरेजी बोलना सिखाया जाता है. इसके उत्साहजनक परिणाम सामने आ रहे हैं. वह बच्चे जो पहले मिड-डे मील के लिए स्कूल आते थे. अब पढ़ने के लिए स्कूल में आते हैं. छोटे-छोटे बच्चे हिंदी और अंगरेजी में फर्राटे से बोलते हैं. कविताएं सुनाते हैं, कहानियां पढ़ते हैं. गीत गाते हैं. यह बच्चे समाज के उस वर्ग से आते हैं, जिसे हम पिछड़ा के नाम से जानते हैं. गांव में यह प्रयोग शुरू हुआ मद्रास आइआइटी में प्रोफेसर रहे श्रीश चौधरी की पहल पर, जो सेवानिवृत्ति के बाद मथुरा की जीएलए यूनिवर्सिटी में सलाहकार के पद पर काम कर रहे हैं, लेकिन गांव से उनका संपर्क लगातार बना हुआ है.
श्रीश चौधरी की पहल पर गांव में अस्पताल बनाने का काम चल रहा है. वह कहते हैं कि जब मैं गांव आता था, तो यहां की पढ़ाई की स्थिति देख कर सोच में पड़ जाता था. इस दौरान मेरे मन में लगातार यह चलता रहता था कि क्या किया जाये, ताकि बच्चों में कम से कम हिंदी और अंगरेजी बोलने की क्षमता आए. इसी दौरान मेरे मन में यह विचार आया, जिसके बारे में मैंने गांव के बड़े-बुजुर्गो से बात की. इसके बाद प्लान तैयार हुआ.
प्लान बनने के बाद ग्रामीणों ने जिला प्रशासन के अधिकारियों के मुलाकात की. ग्रामीणों ने जब अपनी बात जिलाधिकारी के सामने रखी, तो उन्होंने सहर्ष गांव के स्कूल में छुट्टी के बाद एक घंटे और पढ़ाई का आदेश् दे दिया. इसी एक घंटे में प्राइमरी के बच्चों को हिंदी और अंगरेजी सिखाने का काम शुरू हुआ, वह भी बिना किसी फीस के. इसमें मदद गांव के लोगों और मद्रास आाइआइटी ने की.
बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा गांव के सेवानिवृत्त बुजुर्गो, उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र-छात्रओं और ऐसी बहुओं को दिया गया, जो उच्च शिक्षा प्राप्त हैं. इन्हें पढ़ाने की एवज में एक घंटे का सौ रुपये दिया जाता है. इससे पढ़ाई करनेवाले छात्रों की आर्थिक मदद भी हो जाती है. साथ ही पढ़ाने से उनका ज्ञान भी बढ़ रहा है.
24 अक्तूबर 2016 को इस प्रयोग के दस महीने पूरे होने पर एक समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें कई नामचीन हस्तियां आयीं. इनमें दरभंगा के तत्कालीन कमिश्नर, एसडीओ व पटना से कई अधिकारी शामिल हुए. 70 मिनट के समारोह के दौरान प्राइमरी के इन बच्चों ने ऐसे कार्यक्रम पेश किये, जिसने देखा, वह देखता रह गया. हिंदी, अंगरेजी और संस्कृत में ड्रामा से लेकर कविता व कहानी पाठ तक शामिल था. गांव में इस प्रयोग के डेढ़ साल हो गये हैं. पिंडारूच के लोग आसपास के गांवों के स्कूलों में भी यह प्रयोग करना चाहते हैं.
पिंचारूड में जो प्रयोग हो रहा है. आनेवाले दिनों में इसका असर देखने को मिलेगा, जब यह बच्चे प्राइमरी के बाद उच्च कक्षाओं में जायेंगे. ऐेसे ही प्रयोग अन्य स्कूलों में हों, तो इससे गांव में शिक्षा की स्थिति बदल सकती है, हिंदी और अंगरेजी में बोलनेवाले से बच्चों की ङिाझक खुलेगी और उनके लिए सफलता की राह खुलेगी.
श्रीश चौधरी की पहल पर गांव में अस्पताल बनाने का काम चल रहा है. वह कहते हैं कि जब मैं गांव आता था, तो यहां की पढ़ाई की स्थिति देख कर सोच में पड़ जाता था. इस दौरान मेरे मन में लगातार यह चलता रहता था कि क्या किया जाये, ताकि बच्चों में कम से कम हिंदी और अंगरेजी बोलने की क्षमता आए. इसी दौरान मेरे मन में यह विचार आया, जिसके बारे में मैंने गांव के बड़े-बुजुर्गो से बात की. इसके बाद प्लान तैयार हुआ.
प्लान बनने के बाद ग्रामीणों ने जिला प्रशासन के अधिकारियों के मुलाकात की. ग्रामीणों ने जब अपनी बात जिलाधिकारी के सामने रखी, तो उन्होंने सहर्ष गांव के स्कूल में छुट्टी के बाद एक घंटे और पढ़ाई का आदेश् दे दिया. इसी एक घंटे में प्राइमरी के बच्चों को हिंदी और अंगरेजी सिखाने का काम शुरू हुआ, वह भी बिना किसी फीस के. इसमें मदद गांव के लोगों और मद्रास आाइआइटी ने की.
बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा गांव के सेवानिवृत्त बुजुर्गो, उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र-छात्रओं और ऐसी बहुओं को दिया गया, जो उच्च शिक्षा प्राप्त हैं. इन्हें पढ़ाने की एवज में एक घंटे का सौ रुपये दिया जाता है. इससे पढ़ाई करनेवाले छात्रों की आर्थिक मदद भी हो जाती है. साथ ही पढ़ाने से उनका ज्ञान भी बढ़ रहा है.
24 अक्तूबर 2016 को इस प्रयोग के दस महीने पूरे होने पर एक समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें कई नामचीन हस्तियां आयीं. इनमें दरभंगा के तत्कालीन कमिश्नर, एसडीओ व पटना से कई अधिकारी शामिल हुए. 70 मिनट के समारोह के दौरान प्राइमरी के इन बच्चों ने ऐसे कार्यक्रम पेश किये, जिसने देखा, वह देखता रह गया. हिंदी, अंगरेजी और संस्कृत में ड्रामा से लेकर कविता व कहानी पाठ तक शामिल था. गांव में इस प्रयोग के डेढ़ साल हो गये हैं. पिंडारूच के लोग आसपास के गांवों के स्कूलों में भी यह प्रयोग करना चाहते हैं.
पिंचारूड में जो प्रयोग हो रहा है. आनेवाले दिनों में इसका असर देखने को मिलेगा, जब यह बच्चे प्राइमरी के बाद उच्च कक्षाओं में जायेंगे. ऐेसे ही प्रयोग अन्य स्कूलों में हों, तो इससे गांव में शिक्षा की स्थिति बदल सकती है, हिंदी और अंगरेजी में बोलनेवाले से बच्चों की ङिाझक खुलेगी और उनके लिए सफलता की राह खुलेगी.
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