गुरुवार, 21 सितंबर 2017

बात साधारण, लेकिन नतीजा असाधारण

बचपन में गांव में रामायण की कथा होती थी. एक महराज जी आते थे. लकदक कपड़े पहनते और बड़े नियम और संयम से रहते थे. पूरे नवरात्र कथा होती थी. दशहरा के दिन कथा का समापन होता था. बड़ी भीड़ उमड़ती थी. कथा सुननेवालों में महिलाओं व बच्चों की संख्या ज्यादा होती थी. मां की वजह से मुङो भी जाना पड़ता, क्योंकि तब तक मुझमे रामायण पढ़ने और कथा सुनने की ललक जग चुकी थी. गांव में कहीं भी रामायण का पाठ होता, तो वहां मैं जरूर जाता. अपने नंबर का इंतजार करता और रामायण का पाठ करने के बाद ही घर लौटता था. कई बार देर-रात हो जाती थी, जिसकी वजह से घर में डांट भी पड़ती, लेकिन वह मंजूर था.
हां, तो बात पंडित जी और रामयण की कथा की हो रही थी. रामायण के प्रसंग सुनाने के साथ वह हारमोनियम के साथ सुंदर भक्ति गीत भी सुनाते थे और किस्से-कहानियां भी बीच-बीच में कहते थे. उनके किस्से कहानियां कहने का अंदाज निराला था. एकता में शक्ति की कहानी, जो हम लोगों को स्कूल में पढ़ाई गयी, वह पंडित जी से भी सुनने को मिलती. वह बताते कि कैसे एक गांव में बड़ा व्यापारी रहता था, जिसने पूरे जीवन भर मेहनत करके बड़ा व्यापार करना शुरू किया, लेकिन इसी बीच वह बूढ़ा हो गया. उसका पूरा जीवन व्यापार को बढ़ाने में लग गया, लेकिन व्यापारी इस बात से परेशान था कि उसके पांच पुत्रों में से किसी की आपस में नहीं बनती थी. सब एक-दूसरे की खिलाफत करते. इससे व्यापारी की चिंता बढ़ती गयी, उसे यह लगता कि हमारी मृत्यु के बाद इतने बड़े व्यापार का क्या होगा?
व्यापारी लगातार परेशान रहने लगा, जिससे बीमार हो गया. उसे लगा कि वह अब नहीं बचेगा, तो उसने अपने पांचों बच्चों को एक दिन अपने पास बुलाया. पांचों बच्चे आये, लेकिन किसी की एक-दूसरे से बात नहीं हुई. बीमारी व्यापारी की चिंता और बढ़ गयी. इसी बीच उसने अपने पलंग (बेड) के पास से एक मोटी रस्सी निकाली और पांचों बच्चों की ओर बढ़ाते हुये कहा कि इस रस्सी को तोड़ सकते हो. इस पर उसके बच्चों ने कहा कि इसमें क्या है? अभी तोड़ देते हैं. एक-एक कर पांचों बच्चों ने प्रयास किया. पूरी ताकत लगायी, लेकिन रस्सी नहीं टूटी. इसके बाद व्यापारी ने कहा कि अब पांचों लोग मिल कर रस्सी को तोड़ दो. इसके बाद मन न होने के बाद भी पांचों ने मिल कर रस्सी को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हुये.
बच्चों की हालत देख, व्यापारी ने कहा कि रुक जाओ, तुम लोग इसे तोड़ नहीं सकते हो. इसके बाद उसने रस्सी ली और उसकी पांच लड़ियां अलग कर दीं और हर बेटे को एक-एक लड़ी दे दी. फिर क्या था. सभी बेटों ने कुछ ही सेकेंड में रस्सी को कई जगहों से तोड़ दिया. यह देखते ही व्यापारी ने कहा कि तुम लोगों को यहां बुलाने का मकसद पूरा हो गया. अब मेरी बात ध्यान से सुनो. जैसे रस्सी की पांचों लड़ियां एक में पिरोई हुई थीं, तो तुम में से पांचों लोग मिल कर उसे नहीं तोड़ सके, लेकिन उन्हें अलग कर दिया गया, तो तुम सबने कुछ ही देर में उन्हें तोड़ दिया. ऐसे ही अपना परिवार भी है. अगर तुम लोग मिल कर रहोगे, तो तुम्हें कोई पराजित नहीं कर सकता. तुम्हे आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता. तुम अडिग लगातार आगे बढ़ते जाओगे, लेकिन फूट पड़ी, तो सब लोग कमजोर हो जाओगे.
पिता की बात सुन कर व्यापारी के पांचों बेटों को अपने किये पर पछतावा हुआ और उन्होंने उसी समय से साथ रहने का फैसला कर लिया, ताकि पिता के व्यापार को नयी उचाइंयों तक ले जा सकें. इस कहानी का मकसद ये है कि अगर हम किसी परिवार या संस्थान में एकता के साथ रहते हैं, तो हमें कोई भी डिगा नहीं सकता, लेकिन एकता में अगर दरार पड़ने लगी, तो फिर परेशानी से कोई बचा नहीं सकता. इस कहानी को सुनने के बहुत दिनों के बाद जब उच्च शिक्षा को प्राप्त कर रहा था, तो वैशाली का का इतिहास पढ़ने को मिला, जिसमें यह था कि किस तरह से यहां के लोग एकमत होकर फैसले करते थे. यही वजह थी कि वैशाली उस समय अजेय राज्य बन गया था, लेकिन जैसे ही एकता में ददार पड़ी, स्थितियां बदल गयीं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें