रविवार, 10 सितंबर 2017

स्वामी विवेकानंद का ऐतिहासिक भाषण, जिसके 125 साल पूरे

अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद का ऐतिहासिक भाषण, जिसके 11 सितंबर 2017 को 125 साल पूरे हो रहे हैं.
अमेरिका के बहनों और भाइयों
आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय प्रसन्नता से भर गया है. मैं आपको दुनिया की सबसे प्रचीन संत परंपरा की ओर से धन्यवाद देता हूं. मैं आपको सभी धर्मो की जननी की तरफ से धन्यवाद कहूंगा और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों-करोड़ों हिन्दुओं की तरफ के आपके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं.
मेरा धन्यवाद उन वक्ताओं के लिए भी है, जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है. मुङो गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिकता ग्रहण करने का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मो को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. मुङो बेहद गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मो के अस्वस्थ और अत्याचारित लोगों को शरण दी है.
मुङो यह बताते हुये बहुत गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय से उन इजराइलियों की स्मृतियां संभाल कर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़ कर नष्ट कर दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी. मुङो गर्व इस बात का है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें प्यार से पाल-पोस रहा है.
भाइयों, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है.
रुचीनां वैचित्र्याटृजुकुटिलनानापथजुषाम्
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामवर्ण इव.
(जैसे विभिन्न नदियां अलग-अलग �ोतों से निकल कर समुद्र में मिल जाती हैं. ठीक उसी प्रकार अलग-अलग रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़-मेढ़ अथवा सीधे रास्ते जानेवाले लोग अंत में भगवान में ही आकर मिल जाते हैं)
यह सभी जो अभी तक के सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है. स्वत: ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा करती है.
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्
मम वत्र्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश:
(जो कोई मेरी ओर आता है, वह चाहे किसी प्रकार का हो. मैं उसको प्राप्त होता हूं. लोग अलग-अलग रास्तों द्वारा प्रयत्न करते हुए अंत में मेरी ओर आते हैं.)
सांप्रदायिकता, हठधर्मिता और इसके भयानक वंशज लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजे में जकड़े हुये हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी ही बार यह भूमि खून से लाल हुई है. कितनी ही सभ्यताओं को विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुये हैं. अगर ये भयानक दैत्य नहीं होते, तो आज मानव सभ्यता कहीं ज्यादा उन्नत होती, लेकिन अब समय पूरा हो चुका है.
मुङो पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वो तलवार से हों या कलम से. सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा.

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