जैसा अन्न...वैसा मन...ये कहावत भारतीय समाज में आम है, ये पढ़ने और समझने में जितनी सरल है. इसके अर्थ उतने ही व्यापक हैं. इसे समझने के लिए एक उदाहरण महाभारत काल से....महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था...पितामह भीष्म वाणों की शैय्या पर लेटे हुये थे...वो सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे, ताकि अपने प्राण त्याग सकें. इस दौरान रोज पांडव उनके पास जाते थे और पितामह उन्हें नीति की बातें बताते थे, लेकिन इस दौरान द्रौपदी पितामह के नीति वचन सुनने के लिए नहीं जाती थीं. इससे श्रीकृष्ण को चिंता हुई, तो उन्होंने एक दिन द्रौपदी से कहा कि पितामह के पास वो भी चलें. द्रौपदी श्रीकृष्ण की बात कैसे काट सकती थीं, वो तैयार हो गयीं. पांडवों के साथ द्रौपदी पितामह भीष्म के पास पहुंच गयीं.
पितामह ने उस दिन पांडवों को राज्य चलाने की नियम और नीतियां बता रहे थे. इसी दौरान उन्होंने कहा कि जो राजा अपने राज्य में अन्याय होता देखता है, उसका पौरुष क्षीर्ण हो जाता है. इसलिए राजा को अन्याय न करना चाहिये और न होते हुये देखना चाहिये. इस पर द्रौपदी ने पितामह से सवाल किया. कहा- पितामह जिस दिन मेरा चीर हरण हो रहा था, उस दिन आपने क्या किया था? विशेष बात ये थी कि पितामह से कोई सवाल नहीं करता था, वो जो कहते थे, पांडव उसे चुपचाप सुनते थे, लेकिन द्रौपदी का सवाल सुनकर सब लोग सन्न रह गये, लेकिन पितामह ने उन्हें जो उत्तर दिया, वो अपने आप में गौर करनेवाला है. पितामह भीष्म ने कहा कि बेटी द्रौपदी उस समय मैं पाप का अन्य खाता था, इस वजह से मेरा मन भी गंदा हो गया था...इससे साफ है कि जो इंसान गलत तरीके से कमाये धन का उपयोग खुद पर और अपने बच्चों के लिए करता है. उसका गलत असर उसके और उसके बच्चों पर पड़ता है. ऐसे उदाहरण अगर आप अपने आसपास देखेंगे, तो जरूर मिल जायेंगे. इसलिए धन और मन का बहुत करीब का रिश्ता होता है. खुद के श्रम से कमाये हुए धन पर ही विश्वास करें, गलत तरीके से अगर आप धन कमायेंगे और उसे अपने और परिवार के प्रयोग में लायेंगे, तो उसका नतीजा भी वैसा ही होगा और इसके लिए पूरे तौर पर उत्तरदायी आप ही होंगे.
पितामह ने उस दिन पांडवों को राज्य चलाने की नियम और नीतियां बता रहे थे. इसी दौरान उन्होंने कहा कि जो राजा अपने राज्य में अन्याय होता देखता है, उसका पौरुष क्षीर्ण हो जाता है. इसलिए राजा को अन्याय न करना चाहिये और न होते हुये देखना चाहिये. इस पर द्रौपदी ने पितामह से सवाल किया. कहा- पितामह जिस दिन मेरा चीर हरण हो रहा था, उस दिन आपने क्या किया था? विशेष बात ये थी कि पितामह से कोई सवाल नहीं करता था, वो जो कहते थे, पांडव उसे चुपचाप सुनते थे, लेकिन द्रौपदी का सवाल सुनकर सब लोग सन्न रह गये, लेकिन पितामह ने उन्हें जो उत्तर दिया, वो अपने आप में गौर करनेवाला है. पितामह भीष्म ने कहा कि बेटी द्रौपदी उस समय मैं पाप का अन्य खाता था, इस वजह से मेरा मन भी गंदा हो गया था...इससे साफ है कि जो इंसान गलत तरीके से कमाये धन का उपयोग खुद पर और अपने बच्चों के लिए करता है. उसका गलत असर उसके और उसके बच्चों पर पड़ता है. ऐसे उदाहरण अगर आप अपने आसपास देखेंगे, तो जरूर मिल जायेंगे. इसलिए धन और मन का बहुत करीब का रिश्ता होता है. खुद के श्रम से कमाये हुए धन पर ही विश्वास करें, गलत तरीके से अगर आप धन कमायेंगे और उसे अपने और परिवार के प्रयोग में लायेंगे, तो उसका नतीजा भी वैसा ही होगा और इसके लिए पूरे तौर पर उत्तरदायी आप ही होंगे.