आज जब चारों ओर सच और झूठ को लेकर ऐसी हवा बनी हुई है कि इसमें अंतर कर पाना मुश्किल हो रहा है. आप किसी चीज को समझने की कोशिश करते हैं, तब तक उसके पक्ष में दो-चार ऐसी बातें आ जाती हैं, जो आपको परेशान करने लगती हैं. सोशल मीडिया के इस जमाने में जब एक-दूसरे को बुरा साबित करने की होड़ लगी हुई है. ऐसे में असलम साबरी को सुनना सुहाना लगता है. वह कहते हैं, जब जिसे चाहिये बुरा कहिये, इससे आसान कोई काम नहीं. सचमुच, किसी को बुरा कहने से आसान कोई काम नहीं है. ऐसा उन लोगों के लिए है, जो झूठ की खेती करते हैं. उसी को जीते हैं. आज हमारे आसपास ये आम हो चला है.
हर सक्षम हाथ में स्मार्ट फोन है. न्यू मीडिया का जमाना है. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसी सोशल साइट्स हैं, जो आपके संदेश को देश-दुनिया तक पलक झपकते ही पहुंचाती हैं. अब हर आदमी पत्रकार है. अपनी मनमर्जी का पत्रकार, जो चाहे वो कहे और जो चाहे वो लिखे. हां, सोशल साइट्स के कुछ पाबंदियां लगानी जरूर शुरू की हैं, लेकिन हम जिस चीज की बात कर रहे हैं, अभी शायद वह उनके दायरे में नहीं आयी है और लगता है कि आयेगी भी नहीं.
बचपन में एक कहावत सुनता था कि दूसरे के बारे में उतना ही बोलना चाहिये, जितना आप सुन सकें, लेकिन यहां मामला उसका पूरा उल्टा है. यहां आप दूसरे के बारे में चाहे जितना बोल दें. मनगढंत चीजें ही तो कहनी हैं. आपकी कल्पना की उड़ान जितनी ज्यादा है, आप उतना सामनेवाले को धिक्कार सकते हैं. उसकी बुराई कर सकते हैं. यह हो रहा है, ऐसा करने में हम सब ये भूल जाते हैं कि हम कहां खड़े हैं. अगर मान लीजिये कि कोई गलत कह रहा है और कर रहा है, तो हमारा क्या काम है, क्या हम भी वैसे ही बन जायें या फिर हम अपने आपको उससे दूर रखें.
अगर मान लीजिये, किसी ने आपको भला-बुरा कहा, तो आप भी उसके बारे में वही कहेंगे, तो ऐसे में आपमें और उसमें अंतर क्या रह जायेगा. अगर हम ऐसी बातों में पड़ेंगे, तो शायद वह लक्ष्य हमसे दूर हो जायेगा, जिसके लिए हम काम कर रहे हैं. हमें पिछले एक-डेढ़ दशक पहले की महान क्रिकेटर भारत रत्न सचिन तेंदुलकर के बयान याद आते हैं, जब भी उनके खेल को लेकर आलोचना की जाती थी, तो वह उसका जबाव अपने कर्म (बल्ले) से देते थे, जब शतक जड़ देते थे, तो आलोचक अपने आप उनके फैन हो जाते थे. मुङो लगता है कि हमको किसी को बुरा कहने से अच्छा होगा कि हम अपने कर्म से यह साबित करें कि हमारी स्थिति क्या है? इससे माकूल और कोई जबाव नहीं होगा.
हर सक्षम हाथ में स्मार्ट फोन है. न्यू मीडिया का जमाना है. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसी सोशल साइट्स हैं, जो आपके संदेश को देश-दुनिया तक पलक झपकते ही पहुंचाती हैं. अब हर आदमी पत्रकार है. अपनी मनमर्जी का पत्रकार, जो चाहे वो कहे और जो चाहे वो लिखे. हां, सोशल साइट्स के कुछ पाबंदियां लगानी जरूर शुरू की हैं, लेकिन हम जिस चीज की बात कर रहे हैं, अभी शायद वह उनके दायरे में नहीं आयी है और लगता है कि आयेगी भी नहीं.
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