सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

जब गवाही देने के लिए कठघरे में खड़े हुये भगवान....और जज साहब बन गये बाबा

चपरासी बोला, वही बताओ.
मंदिर पर चपरासी पहुंचा, तो पुजारी बाहर बैठे थे. चापरासी ने पूछा, रघुनाथ जी का मंदिर यही है.
पुजारी ने कहा- हां.
चपरासी ने सम्मन आगे बढ़ा दिया, लो ये. पुजारी जी समझ गये. मन ही मन सोचने लगे कि जब भगवान ने मंगा ही लिया है, तो हम क्यों मना करें. हस्ताक्षर, पुजारी ने कर दिये.
चपरासी समझा, यही रघुनाथ जी होंगे.
पुजारी जी ने सम्मन रघुनाथ जी के चरणों में रख दिया और आंखों में आंसू भर कर बोले प्रभु. आपको पोशाक कई बार आयी होगी. भोग लगाने के लिए तरह-तरह के पदार्थ आये होंगे. अभूषण कई बार भक्त लेकर आये होंगे, लेकिन सम्मन पहली बार आया होगा. पर भक्त जो न करें, सो थोड़ा है.
प्रभु उस दीन का आपके अलावा और कोई नहीं है. वो आपके अलावा किसी को जानता ही नहीं है. उसकी लाज आपके हाथ में है.
पुजारी ने केवट से कहा- तुमने क्यों लिखा दिया, रघुनाथ जी का नाम? केवट बोला कोई झूठ लिखा दिया है. हमारे रघुनाथ जी सदा हमारे साथ थे.
केवट तो यही कहे..हरि बिन संकट कौन निवारे..साधन हीन मलीन, दीन मैं.
 जाऊं केहि के द्वारे. या अनाथ की लाज आज, रघुनाथ जी हाथ तुम्हारे.
हरि बिन संकट कौन निवारे.
दीन दयाल सुनी जब ते, तब ते मन में कछु ऐसी बसी है. देऊ कहां और जाऊं कहा, बस तेरी ही नाम की फेट कसी है. तेरो ही आसरो, बस एक मलूक. नहीं प्रभु सो कोई औरो जसी है.
ये हो मुरारी पुकारी कहौं, अब मेरी हंसी में, तेरी हंसी है. हरि बिन संकट कौन..हरि बिन संकट कौन निवारे.
कहीं नहीं गया केवट, किसी को जानता ही नहीं रामजी के अलावा. तारीख के एक दिन पहले ही केवट से बोले, तुम आ ही जाओ, ताकि समय से पहुंच जाओ.
रघुनाथ जी की, तो रघुनाथ जी ही जानें.
केवट रघुनाथ जी के चरणों प्रणाम करके चला गया.
दूसरे दिन पुजारी जी सुबह जल्दी जगे. भगवान की आरती पूजा की और नया व पहनाया. भोग लगाया. उनको लग रहा था कि आज भगवान पहली बार बाहर जा रहे हैं. कपड़े अच्छे पहनावें. रोन लगे पुजारी जी. भाव की तो बात है.
प्रभु आपको, जो पोशाक अच्छी लगे, वही पहनकर जाना, लेकिन जाना जरूर. उसका कोई नहीं आपके अलावा.
उधर, केवट पहुंचा, सेठ जी भी पहुंच गये.
जज साहब ने पूछा- केवट तुम्हारे गवाह रघुनाथ जी कहां हैं?
केवट ने कहा- साहब, यहीं कहीं होंगे. वह तो सब जगह रहते हैं.
जज साहब फिर केवट की बात समझ नहीं पाये.
चपरासी को आदेश दिया- आवाज लगाओ.
चपरासी ने आवाज लगाना शुरू किया- रघुनाथ हाजिर हों, रघुनाथ हाजिर हों..रघुनाथ हाजिर हों.
तीन बार चपरासी ने ऐसे जो आवाज लगायी, तो उसने देखा कि एक बूढ़ा आदमी हाथ में लकड़ी पकड़े, कमर झुकी हुई. हाथ से इशारा किया.
रघुनाथ हाजिर है, ऐसे तीन नारे जो लगाये हैं.
चाल लटपटी सी एक वृद्ध की झुकी सी देह.
दुपटी फटी सी शीश बांधे, धर धाये हैं.
हाथ माहे छड़ी पड़ी, तुलसी की हिये माल.
माथे पर रोली चारू, चंदन चढ़ाये हैं.
साहब के सामने विनीत चपरासी साथ.
आज रघुनाथ जी गवाह बन आये हैं.
भगवान गवाह बन कर आ गये. जज साहब ने देखा. सेठ जी देख कर चौक गये. ये कौन आ गया.
जज साहब ने पूछा- आप थे वहां.
रघुनाथ जी ने कहा- हां, केवट ने रुपया दिया है.
जज ने पूछा- इसका प्रमाण.
रघुनाथ जी बोले- हां, इन्होंने रसीद भी लिख ली थी. सेठ जी को यहीं रखा जाये. इनके मकान की सामनेवाली बैठक के सामनेवाली दीवार पर तीन आलमारियां हैं. उसकी बीच वाली अलमारी में बही रखी है, 32 नंबर की. उसी में रसीद अभी तक सुरक्षित रखी है.
सर्वातरयामी भगवान से क्या छुप सकता है? सिपाही भेजे गये. बही और रसीद मिल गयी. सेठ जी को दंडित होना पड़ा.
केवट, बाइज्जत बरी हुआ. रघुनाथ जी गायब हो गये, क्योंकि काम तो हो ही गया था.
अब जज साबह ने सोचा, इतने दिन हो गये फैसला सुनाते. पर ऐसा गवाह आज तक नहीं पहुंचा.
केवट से अकेले में पूछा- ये रघुनाथ जी कहां रहते हैं.
केवट बोला- जहां हम रहते हैं.
जज बोले- तुम कहां रहते हो.
केवट बोला- जहां रघुनाथ जी रहते हैं.
जज साहब बोले- हम समङो नहीं, तुम लोग एक ही जगह, एक ही गांव के रहनेवाले हो.
केवट बोला- हां, हुजूर, आपको कैसे समझायें. आप तो पढ़े-लिखे हो. पढ़े-लिखों को समझाना. बहुत कठिन है. भक्ति और भगवान की बात.
जज साहब बोले- ये हैं कौन?
केवट बोला- हुजूर ये वो हैं, जिनका मंदिर है.
जज साहब बोले- इन्होंने मंदिर बनवाया है. देखने से तो नहीं लग रहे थे कि कोई इतने बड़े संपन्न आदमी होंगे, जिन्होंने मंदिर बनवाया होगा. पुजारी भी नहीं लग रहे थे.
केवट बोला- हुजूर, ये वही हैं, जो मंदिर में बैठे हुये हैं.
अब तो जज साहब ने चपरासी को बुलाया- चपरासी कांपने लगा. कहने लगा- हुजूर ये वो आदमी नहीं था, जिसने हस्ताक्षर किये थे.
इसके बाद जज साहब ने गांव में पता लगाया, तो भाव विह्वल हो गये. अपने बंगले पर आये और रोने लगे.
लोगों ने रोने का कारण पूछा- तो जज साहब रोते हुये बोले-
शिव सारद, नारद, शेष गणोश, के नहीं ध्यान में आते रहे. सोइ आज विनीत अदालत में केवटा के गवाह कहाते रहे.
लोग बोले- अरे तो इसमें, रोने की क्या बात है. खुश होना चाहिये कि दर्शन हो गये. चले गये, तो वे, तो जाते ही.
जज साहब साहब बोले- सुख धो के उतर्स दिये को भयो. दुख नाहिंन, जो तज जाते रहे.
लोग बोले- तो, ये रो क्यों रहे हो?
तो जज साहब ने बड़ी भाव भरी बात कही. बोले- आज बड़ी गलती हो गयी.
कुरसी पर बना जज बैठा रहा. जगदीश खड़े समझाते रहे.
कुरसी पर जज बना बैठा रहा, जिनकी अदालत में सबको उपस्थित होना पड़ता है. वे भगवान खड़े-खड़े गवाही देते रहे. ऐसा वैराग्य हुआ. उसी दिन पद से इस्तीफा दे दिया. वृंदावन आ गये. साधु जीवन बिताया. अक्सर खड़े रहते. कहते, भगवान, खड़े रहे और मैं बैठा रहा. अब तो खड़े रहना ही अच्छा है. मंदिर में जाते, तो अंदर नहीं. बाहर से ही दरवाजे की धूल सिर पर चढ़ा लेते. कोई कहता - अंदर क्यों नहीं जाते, तो कहते, मैं उन्हें मुंह दिखाने लायक नहीं हूं. मुझसे जो अपराध हुआ.
केवट के कारण भगवान गवाह बने. क्या था केवट में?
सबकै ममता ताग बटोरी, मम पद मनहि बांध बर डोरी. अस सज्जन मम उर बस कैसे. लोभी हृदय बसै धन जैसे.
ये सज्जन की दूसरी परिभाषा है.
राजेश्वरानंद जी के प्रवचन से

 

जब गवाही देने के लिए कठघरे में खड़े हुये भगवान

भगवान हमारे हैं और हमारे का, हमें भरोसा है. राम जी हैं. एक बात सुनाऊं मैं, ममता की बात सुनाऊं.
वृंदावन में एक महत्मा घूमते थे, जिन्हें देख कर लोग कहते थे कि जज साहब आ रहे हैं. जज साहब आ रहे हैं. तीस साल पुरानी घटना है. एक संत से किसी पूछा कि इन्हें जज साहब क्यों कहते हैं?
तो संत ने कहा कि अब साधु हो गये हैं. पहले जज थे. पुराना नाम अभी भी चल रहा है.
उसने पूछा, साधु क्यों हुये?
संत ने कहा,दक्षिण भारत में एक छोटी सी जगह थी. लोक अदालत की तरह, वहां ये जज थे. वहां एक गांव में बड़ा सीधा सरल आदमी रहता था. नाम था भोला. भोला नाम तो लोगों ने रख दिया था, लेकिन वो था भी बिल्कुल भोला. वो राम जी के अलावा किसी को जानता ही नहीं था. गांव में रघुनाथ जी का मंदिर था. भोला केवट जाति का था. सामान्य परिस्थिति थी. गांव का कोई भी व्यक्ति उससे पूछता, भोले वो बात कैसी है, तो भोला बोलता था कि रघुनाथ जी जानें, मैं तो कुछ नहीं जानता.
भोला के दो बेटे और एक बेटी. बेटी विवाह के योग्य हुई, तो बेटों ने कहा कि पिता जी यहां के जो धनी सेठ हैं, उनसे रुपया ले लिया जाय. विवाह के बाद हम लोग कमा कर रुपया चुका देंगे.
केवट गया, सेठ जी ने ब्याज की सामान्य दर तय की. लिखा-पढ़ी हुई, रुपया ले आये. बेटी का विवाह हुआ. बेटी विदा हुई ससुराल को. केवट ने घर छोड़ दिया और गांव में ही रघुनाथ के मंदिर में रहने लगा. सबकै ममता ताग बटोरी. मम पद मनहि बांधि बर डोरी.
इधर, केवट के बेटों ने काम करना शुरू किया और रुपया कमाया. पिता को दिया. भोला रुपया लेकर सेठ जी को वापस करने पहुंच गया. सेठ ने रुपया ले लिया. रसीद बना दी कि पाइ-पाइ से पैसा मिला. केवट को रसीद दे दी और कहा कि केवट पढ़ो, क्या लिखा है?
केवट बोला, सेठ जी, रघुनाथ जी जाने मैं तो कुछ नहीं जानता. क्या लिखा है. इस पर सेठ जी के मन में पाप आया कि इससे दुबारा पैसा लिया जा सकता है. सेठ जी ने कहा कि ये कागज हमें दे दो और तुम जाकर पानी ले आओ.
केवट पानी लेने गया, तो सेठ जी ने वो रसीद अपने पास रख ली. फाड़ते तो शक होता. एक कागज पर कुछ ऐसे ही लिख कर केवट को दे दिया. केवट कागज लेकर मंदिर आ गया. उसने रसीद रघुनाथ जी चरणों में चढ़ाकर, अपने कमरे में रख दी.
इधर, सेठ जी ने मुकदमा कर दिया कि भोला ने रुपया लिया. वापस नहीं दे रहा है. मांगने पर कहता है कि मैंने रुपया चुका दिया है. अदालत में केवट को जाना पड़ा, वही जज जो महत्मा हो गये थे. उन्होंने सुनवाई शुरू की. केवट से पूछा, तुमने सेठ से रुपया लिया था?
केवट ने कहा- हां.
चुका दिया- हां.
इसका प्रमाण- केवट ने वही कागज जज साहब के आगे बढ़ा दिया, जो सेठ जी ने दिया था.
जज बोले- ये कोई सबूत नहीं है. इसमें कुछ लिखा ही नहीं.
केवट रोने लगा. दयालु हृदय जज साहब ने कहा कि रोओ मत. तुमने जब सेठ जी को रुपया रुपया दिया था, तो तुम्हारे और सेठ जी के बीच में कोई तीसरा था?
केवट की जो आदत थी. स्वभाव था. उसी भाव से बोला. सत्य कहता हूं जज साहब. मैंने जब सेठ जी को रुपया दिया था, तो मेरे और सेठ के बीच में रघुनाथ जी के अलावा और कोई तीसरा नहीं था.
केवट की बात सुन कर जज साहब बोले- ठीक है. तुम जाओ. अगली तारीख पर
आना.
जज साहब ने सोचा कि रघुनाथ कोई केवट के गांव का रहनेवाला आदमी होगा. उन्होंने अपने खर्चे से रघुनाथ के नाम पर सम्मन जारी कर दिया.
चपरासी पूरे गांव में सम्मन लिये घूमे. उस गांव में रघुनाथ नाम का कोई आदमी ही नहीं थी. चपरासी परेशान हो गया. इसी दौरान एक व्यक्ति ने कहा कि गांव में रघुनाथ नाम का कोई नहीं है, लेकिन रघुनाथ जी का एक मंदिर जरूर है. जारी.. 
(राजेश्वरानंद जी के प्रवचन से)

रविवार, 26 फ़रवरी 2017

सत्य ही शिव है

महाशिवरात्रि के पर्व पर देवाधिदेव महादेव की बारात निकली. उनकी बारात में कौन-कौन शामिल होता है, ये बताने की बात नहीं है. लोक जीवन में रह कर हम सब जानते हैं, लेकिन कई बार होता ये है कि लोग शिव भगवान के बारातियों की आड़ लेकर अपने दुगरुणों का बचाव करने की कोशिश करते हैं, इसको लेकर तरह-तरह के तर्क देते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि सत्य का दूसरा नाम ही शिव है. शिव तत्व की जरूरत हम लोगों को हमेशा होती है. रोजमर्रा से लेकर लोक जीवन तक में, लेकिन अभी समाज में जो स्थिति देखने को मिलती है. वह इसके ठीक विपरीत है.
हम शिव की पूजा करते हैं. उन्हें खुश करने के लिए लाख जतन करते हैं, लेकिन जिस सत्य को उनका रूप माना गया है. उसी का साथ छोड़ देते हैं. ऐसे में हमें समझना चाहिये कि शिव कैसे आपके साथ हो सकते हैं. आप शिव को कैसे अपने साथ होने की बात कर सकते हैं? क्यों जब सत्य की शिव है, तो असत्य का साथ तो शिव देंगे नहीं. यह सामान्य सी बात हमें समझ लेनी चाहिये और लोक जीवन में उसी के मुताबिक काम करना चाहिये. शिव को लेकर लिखना सरल नहीं है, क्योंकि उनका जितना व्यापाक रूप है और वह जितना सरल हैं. उनका विस्तार उनता ही अधिक है. ऐसे में उनके बारे में कुछ कहना या लिखना कम से कम हम जैसे लोगों की बात नहीं है.
इसके बाद भी हम उसी सरलता की बात कर रहे हैं, जो शिव को पसंद है. शिव तत्व में शामिल है. वह है सत्य. सत्य का साथ हमें हमेशा देना चाहिये. उसके साथ खड़े रहना चाहिये, तभी शिव के साथ हम रहेंगे, चाहे हम जो भी काम करते हों, लेकिन सत्य का साथ हमेशा बनाये रखना चाहिये. यही आज के दिन में सबसे जरूरी है. इसका विस्तार अगर आप देखना चाहते हैं, तो सत्य का साथ दीजिये. अपने आप में सब चीजें दिखने लगेंगी और फिर अपने बारे में भी जान जायेंगे. जय शिव.

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

उन घरों में शिक्षा की रोशनी फैला रहे केबीसी विनर सुशील कुमार, जहां अब तक अंधेरा था

कौन बनेगा करोड़पति में पांच करोड़ जीतनेवाले सुशील कुमार को आप देखेंगे, तो प्रभावित हुये बिना  नहीं रह पायेंगे. 2011 में केबीसी जीतने के बाद और अब के सुशील में आपको ज्यादा फर्क महसूस नहीं होगा. वो पहले से ज्यादा सरल हो गये हैं. बड़ी गर्मजोशी के साथ मिलते हैं. केबीसी में जीतने के बाद रातोंरात देश-दुनिया में नाम कमानेवाले सुशील लगातार अपने मिशन पर काम कर रहे हैं. वो जो काम करते हैं, उसके बारे में ज्यादा लोगों को नहीं बताते हैं, लेकिन लगातार उनका काम चलता रहता है. उनके सामाजिक कामों में एक काम यह भी है कि वो मुशहर समाज के एक सौ से ज्यादा बच्चों को पढ़ा रहे हैं. इसके लिए उन्होंने बाकायदा शिक्षक रख रखा है. खुद लगातार बच्चों की प्रगति पर नजर रखते हैं.
यह समाज के उस अंतिम पायदान के बच्चे हैं, जहां सरकारी शिक्षा की रोशनी भी नहीं पहुंची है, लेकिन सुशील के प्रयास से इन बच्चों को न सिर्फ अक्षर ज्ञान हुआ है, बल्कि बच्चे फर्राटे से पढ़ने लगे हैं और बेहतर भविष्य का सपना भी देख रहे हैं. बच्चों को पढ़ाने के अलावा समाज की बेहतरी के लिए कई और काम सुशील कर रहे हैं, लेकिन उनके बारे में ज्यादा शोर नहीं करते हैं कि जब समानता की बात होती है, तो सबको शिक्षा का अधिकार है, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाता है. समाज में एक तबका ऐसा भी है, जहां बच्चे बड़े होने के साथ काम में लगा दिये जाते हैं. वो मजदूरी आदि करके घर को चलाने में सहयोग करने लगते हैं. कई जगहों पर पढ़ाई का माहौल नहीं होने की वजह से भी बच्चे पढ़ने नहीं जाते हैं.
हाल में सुशील जी से मिलना हुआ, तो भविष्य की योजनाओं के बारे में चर्चा हुई, तो कहने लगे कि एक और बस्ती के बच्चों को हम पढ़ाना चाहते हैं. इसके लिए काम कर रहे हैं. साथ ही वह मुंबई में रह कर भी काम कर रहे हैं. उनकी भावी योजनाओं में कई चीजें हैं, जिनका खुलासा वो नहीं करते हैं, लेकिन कहते हैं कि जब कुछ हो जायेगा, तो बताना ज्यादा अच्छा रहेगा. अभी हम केवल तैयारी में जुटे हैं.

अंधकार है प्रकाश के अहमियत की वजह

हमारा जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है. जैसे दिन और रात. अगर दिन में सूरज की चमक से हम प्रकाशित रहते हैं, तो रात में चंद्रमा प्रकाश के साथ शीतलता भी प्रदान करता है, लेकिन रात में अमाश्वया की रात ऐसी होती है, जब घुप्प अंधेरा रहता है. कहीं कुछ सूझता नहीं है, लेकिन इसी अंधकार में अगर दूर भी कहीं रोशनी टिमटिमा रही होती है, तो वह दिख जाती है. हम सब जानते हैं, रात के समय आकाश में तारे हमें कितनी दूर होने के बाद भी कितना स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ते हैं. कई बार लगता है कि हम उनसे संवाद कर रहे हैं यानि अंधकार ही वह वजह है, जिससे हमें प्रकाश की अहमियत का पता चलता है.
ऐसे ही हमारा जीवन भी है. अगर हम अपने जीवन में देखें, तो जब भी कठिन समय आया है. उसी समय किसी न किसी बड़े काम की नीव पड़ी होती है, जो आपको जीवनभर का आनंद देता है. ऐसी  घटनाएं सबके साथ होती है, लेकिन हमें इन्हें समझना और महसूस करना चाहिये. हमें जीवन के अंधकार यानि खराब समय का भी वैसे ही स्वागत करना चाहिये, जैसे हम प्रकाश के आने का करते हैं. अगर हम इसे समझ ले जाते हैं और इस सिद्धांत पर काम करते हैं, तो कोई वजह नहीं है, जो हमें परेशान कर सकती है. 
जारी

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

आंदोलन की राह पर यजुआर के युवा

यजुआर के युवा फिर आंदोलन की राह पर हैं. वजह है, उनके गांव में बिजली जैसी मूलभूत सुविधा का नहीं होना. गांव में बिजली आये, इसके लिए यहां के युवा सालों से अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं. मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है, लेकिन क्या इस पर काम होगा, ये बड़ा सवाल अभी बना हुआ है, क्योंकि सालों पहले गांव में विकास की पहल हुई थी, मुजफ्फरपुर से अधिकारियों का अमला यजुआर गांव पहुंचा था. तब भी बिजली का सवाल था, लेकिन उस पर कोई काम नहीं हुआ.
गौरवशाली अतीत वाले यजुआर गांव में 40 साल पहले पोल-तार लगे थे. शायद वही, इस गांव के वर्तमान के लिए अभिशाप बन गया. तार खिचे, ट्रांसफारमर लगे, तो सरकारी फाइलों में चढ़ गया कि गांव में बिजली है, लेकिन बिजली का दर्शन गांव के लोगों को हुआ नहीं. पोल-तार और ट्रांसफारमर अब भी लगा है, लेकिन किस काम का. ये बात नेता से लेकर अधिकारी तक सब मानते हैं. इसके बाद भी फाइल में चढ़ी बात कैसे नहीं बदली जा रही है. ये बड़ा सवाल है?
यह शायद उस कहावत का जीता-जागता उदाहरण है, जो जंगल में रहनेवाले जानवरों से जुड़ी हैं. जिसमें कहा जाता है कि जंगल में एक दिन जानवर तेजी से भाग रहे थे. उनके साथ ऊंट भी भागा चला जा रहा था. रास्ते में किसी ने पूछ लिया कि ऊंट भाई आप क्यों भाग रहे हैं, तो उसने कहा कि सरकारी कर्मचारियों की टोली जंगल में बिल्लियों को पकड़ने आयी है. हम इसलिए भाग रहे हैं. कहीं, बिल्ली समझ कर हमें भी पकड़ लिया, तो हमें दशकों ये साबित करने में लग जायेंगे कि मैं बिल्ली नहीं ऊंट हूं.
लगभग आठ माह पहले मेरा भी यजुआर जाना हुआ था. आने-जाने के दौरान चचरी पुल के साथ जिस तरह का सफर रहा, उससे पता चल गया कि कैसे वहां के लोग रह रहे हैं. प्रखंड कार्यालय जाने के लिए उन्हें किस तरह से जद्दोजहद करनी पड़ती है. गांव में टंकी बनी है. कर्मचारी की नियुक्ति है, लेकि बिजली के बिना पानी सप्लाई नहीं होती है. चालीस साल पहले जो पाइप लगी थी, उससे पानी सप्लाई हुये बिना ही जंग खा गया है. पहले गांव में अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र था, जहां पर डॉक्टर रहते थे, लेकिन अब यह भी खंडहर हो गया है. 40 हजार से ज्यादा की आबादी वाले यजुआर की हालत सुनने और देखने के बाद सहसा विश्वास नहीं होता है, लेकिन हकीकत यही है.
एक क्लिक पर देश-दुनिया तक समाचार पहुंचने के जमाने में यजुआर जैसे जागरूक गांव की ऐसी स्थिति परेशान करती है. ये परेशानी नाहक नहीं है. यजुआर गांव से ही औराई के विधायक की जीत और हार का रास्ता निकलता है. जिसके पक्ष में यहां वोट पड़ता है, उसका विधानसभा पहुंचना तय माना जाता है. ऐसे ही लोकसभा चुनाव में भी यहां के वोटर अच्छा-खासा अंतर पैदा करते हैं. यही वजह है कि सांसद अजय निषाद ने यहां की एक पंचायत को गोद लिया है, लेकिन पंचायत के लोग कहते हैं कि जब घोषणा हुई थी, तब उम्मीद जगी थी, लेकिन अब हमारी उम्मीद टूट चुकी है.
पूर्व विधायक रामसूरत राय, जो इस समय भाजपा के जिलाध्यक्ष भी हैं. कहते हैं कि हमने गांव में बिजली लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सका. ऐसे ही अन्य जन प्रतिनिधि भी दुहाई देते हैं, लेकिन इस सबका खामियाजा गांव के लोगों को ही भुगतना पड़ रहा है.



 

बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

गंगेया के लोगों ने बागमती पर खुद बना लिया पीपा पुल

लगभग साल भर पहले गंगेया जाना हुआ था, तब बांस के पुल था, जिससे गुजरते समय अच्छे-अच्छे लोग हनुमान चलीसा का पाठ करने लग रहे थे. हम भी उन्हीं में शामिल थे. उस समय गांव में एक कार्यक्रम था. मुंबई से अभिभावक समान अनुराग चतुव्रेदी सर आये थे. उन्हीं के साथ गांव देखने का मौका मिला. आधा गांव बागमती इस पार और आधा, उस पार. बड़ी विकट स्थिति में रह रहे थे गांववाले.
चर्चा चली, तो वहां के लोगों ने बताया कि वर्तमान सांसद से लेकर अधिकारियों व विधायकों से हम लोगों ने कई बार गुहार लगायी, लेकिन आश्वासन ही देते रहे हैं. बाढ़ के समय पुल बह जाता है, तो गांव के लोगों की परेशानियां और बढ़ जाती हैं. गंगेया के लोग किस स्थिति भयावह हालत में रह रहे थे. ये वहां जाने के बाद ही महसूस होता है. बांस के चचरी पुल को पार करना किसी बड़ी जंग को जीतने जैसा लगता था. ऐसे में सोच सकते हैं, जो ग्रामीण रोज कई बार इस पुल से आते-जाते होंगे, उनका क्या होता होगा, जब हम पुल पार कर रहे थे, उसी दौरान एक मां अपने बच्चे के साथ जा रही थी, जो खुद से ज्यादा बच्चे को लेकर परेशान थी, क्योंकि बच्च छोटा था और मां के हाथ में राशन का झोला था, जिससे वह बच्चे को उठा नहीं सकती थी. ऐसे में वह लोगों से मिन्नतें कर रही थी कि किसी तरह उसके बच्चे को पार करवा दें.
खैर, गंगेया गांव के वापस आया, तो कई दिन तक वहां खास कर पुल से गुजरने की स्मृति कौंधती रही. लगा कि जब इतनी परेशानी है, तो इसका समाधान क्यों नहीं होता. कई लोगों से बात की, लेकिन किसी ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया. इसी बीच गंगेया के रहनेवाले क्रांति प्रकाश जी का न्योता मिला. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 1977 के चुनाव में हरानेवाले राजनारायण की जयंती मना रहे थे. मुलाकात हुई, तो गांव के चचरी पुल की चर्चा की. कहने लगे, जल्दी ही दुख दूर होनेवाला है. गांव के लोग ही आपस में मिल कर पीपा पुल बना रहे हैं. इसके लिए बैठक हो चुकी है और कुछ लाख रुपये भी एकत्र हो चुके हैं. सुन कर बड़ा सुकून मिला.
बीती 24 जनवरी को जानकारी मिली कि पुल तैयार है और लोगों का आवागमन शुरू हो गया है. गांव के लोगों ने 12 लाख रुपये इकट्ठा करके पुल का निर्माण कराया है, जब पुल से गुजरते लोगों की तस्वीरें देखीं, तो काफी सुकून मिला. अब गंगेया के लोगों को हिचकोले नहीं खाने होंगे. साथ ही गांव में आनेवाले लोगों को पहले जैसी त्रसदी नहीं ङोलनी पड़ेगी. गंगेया के लोगों को इस साहसपूर्ण काम के लिए बहुत बधाई!

इस बार फिर चौकायेगा उत्तर प्रदेश ?

यूपी समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की धूम है. प्रचार चरम पर है. पहले चरण का चुनाव चार फरवरी को होना है, जिसके लिए दो फरवरी को चुनाव प्रचार बंद हो जायेगा. इससे पहले लंबे राजनीतिक ड्रामे से गुजरे यूपी के वोटर इस बार क्या करेंगे, ये सवाल सबके जेहन में घूम रहा है. प्रदेश में घूम-घूम कर सव्रेक्षण कर रहे विभिन्न मीडिया हाउस अलग-अलग तरह की हवा बना रहे हैं. कोई भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बना रहा है, तो कोई अखिलेश की फिर से ताजपोशी कर रहा है. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि वोटर का मत क्या इस मीडिया हाउस के सव्रेक्षणों से मेल खाता है या फिर नहीं, क्योंकि इससे पहले 2007 व 2012 के यूपी चुनावों में ऐसे सव्रेक्षण करनेवालों को बुरी तरह से मुंह की खानी पड़ी थी. इस बार जो हालात दिख रहे हैं, वो तो कुछ और कहानी कह रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि जमीनी हकीकत को हम देखना नहीं चाहते हैं.
गठबंधन के शोर में भले ही किसी की आवाज कम सुनायी दे रही हो, लेकिन वोटर सब देख रहे हैं और उन्हें किधर जाना है. शायद उन्होंने मन बना लिया है और वो उस दिशा में आगे बढ़ चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सव्रेक्षण करनेवालों के सामने ये हकीकत नहीं है. साल से कुछ ज्यादा पहले बिहार चुनाव हुये थे. उस दौरान किस तरह का शोर था, लेकिन नतीजे कैसे आये, ये सबको पता है. यही नहीं मतगणनावाले दिन किस तरह से भाजपा के लोगों ने सुबह जश्न मनाना शुरू कर दिया था, लेकिन चंद मिनट में ही इनके पांवों की थिरकन रुक गयी थी, जो दावे कर रहे थे, उनके मुंह पर सील लग गयी और वह छुपते फिरने लगे.
अगर राजनीतिक हालात की बात करें, तो यूपी-बिहार बहुत ज्यादा अलग नहीं हैं. हां, वोटरों की संख्या के आधार पर भले ही कुछ भेद-विभेद किया जा सकता है, लेकिन ताशीर एक जैसी ही है. अब ऐसे में चुनाव बहुत रोचक बन गया है.