मंगलवार, 20 नवंबर 2018

सर्दी से बचने का देसी और घरेलू नुस्खा

सर्दियों की शुरुआत हो गयी है. ऐसे में बहुत सारे लोगों को सर्दी की समस्या हो जाती है. नाक जाम हो जाती है. नाक जाम ही नहीं हो, इसके लिए सीधा और सरल इलाज है, जो हमारे गांव में अाजमाया जाता था और हमने भी आजमाया है. शुद्ध सरसों का तेल लें और सुबह उठने के बाद हथेली में सरसों (कड़ुआ तेल) तेल लेकर नाक में एक तरफ उंगली से बंद करें और दूसरी ओर से तेज सांस लेकर तेल नाक में सुड़क लें और ऐसा ही दूसरी तरफ से करें. इसे गांव की भाषा में नाक में तेल डालना कहते हैं. इससे किसी भी तरह की सर्दी होगी. कितनी भी नाक जमी होगी, तुरंत राहत मिलेगी. ऐसा आप दो-तीन दिन तक कर लेते हैं, तो आपको सर्दी से पूरी तरह से राहत मिल जायेगी. इससे होठों और चेहरे का रुखापन भी दूर होता है. बिना सर्दी के भी ये नुस्खा आप आजमा सकते हैं. इससे आपको सर्दी नहीं होगी.


शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

धन-मन का करीब का रिश्ता होता है

जैसा अन्न...वैसा मन...ये कहावत भारतीय समाज में आम है, ये पढ़ने और समझने में जितनी सरल है. इसके अर्थ उतने ही व्यापक हैं. इसे समझने के लिए एक उदाहरण महाभारत काल से....महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था...पितामह भीष्म वाणों की शैय्या पर लेटे हुये थे...वो सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे, ताकि अपने प्राण त्याग सकें. इस दौरान रोज पांडव उनके पास जाते थे और पितामह उन्हें नीति की बातें बताते थे, लेकिन इस दौरान द्रौपदी पितामह के नीति वचन सुनने के लिए नहीं जाती थीं. इससे श्रीकृष्ण को चिंता हुई, तो उन्होंने एक दिन द्रौपदी से कहा कि पितामह के पास वो भी चलें. द्रौपदी श्रीकृष्ण की बात कैसे काट सकती थीं, वो तैयार हो गयीं. पांडवों के साथ द्रौपदी पितामह भीष्म के पास पहुंच गयीं.
पितामह ने उस दिन पांडवों को राज्य चलाने की नियम और नीतियां बता रहे थे. इसी दौरान उन्होंने कहा कि जो राजा अपने राज्य में अन्याय होता देखता है, उसका पौरुष क्षीर्ण हो जाता है. इसलिए राजा को अन्याय न करना चाहिये और न होते हुये देखना चाहिये. इस पर द्रौपदी ने पितामह से सवाल किया. कहा- पितामह जिस दिन मेरा चीर हरण हो रहा था, उस दिन आपने क्या किया था? विशेष बात ये थी कि पितामह से कोई सवाल नहीं करता था, वो जो कहते थे, पांडव उसे चुपचाप सुनते थे, लेकिन द्रौपदी का सवाल सुनकर सब लोग सन्न रह गये, लेकिन पितामह ने उन्हें जो उत्तर दिया, वो अपने आप में गौर करनेवाला है. पितामह भीष्म ने कहा कि बेटी द्रौपदी उस समय मैं पाप का अन्य खाता था, इस वजह से मेरा मन भी गंदा हो गया था...इससे साफ है कि जो इंसान गलत तरीके से कमाये धन का उपयोग खुद पर और अपने बच्चों के लिए करता है. उसका गलत असर उसके और उसके बच्चों पर पड़ता है. ऐसे उदाहरण अगर आप अपने आसपास देखेंगे, तो जरूर मिल जायेंगे. इसलिए धन और मन का बहुत करीब का रिश्ता होता है. खुद के श्रम से कमाये हुए धन पर ही विश्वास करें, गलत तरीके से अगर आप धन कमायेंगे और उसे अपने और परिवार के प्रयोग में लायेंगे, तो उसका नतीजा भी वैसा ही होगा और इसके लिए पूरे तौर पर उत्तरदायी आप ही होंगे.

शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

अब बड़ा भाई भी नहीं !

राजनीति भी बहुत अजीब है, समझने की कोशिश करो, तो उलझन बढ़ती जाती है. अगर उलझनों को सुलझाने की कोशिश करो, तो सिरा मिलता ही नहीं है. कुछ चीजों के मकसद और मायने बहुत साफ होते हैं और दिखते हैं, लेकिन जो होता है, कहते वो दिखता है और जो दिखता है. वो होता नहीं है. शायद यही राजनीति है. राजनीति में कब कौन सा दल, कौन सा दांव चलेगा, जिससे कितने लोग चित होंगे. इस सबका अंदाजा लगाकर ही दांव चला जाता है, लेकिन कुछ लोग समझ पाते हैं, ज्यादा लोग समझने में अनाड़ी ही साबित होते हैं. अगर अपनी बात करूं, तो अनाड़ी कह सकते हैं.
बात ज्यादा पुरानी नहीं है...बिहार में जदयू के नेताओं में 2019 के सीट बंटवारे को लेकर अजीब सी बेचैनी थी. लगता है कि अब फैसला हो ही जाना है. धमकी से लेकर क्या-क्या हो रहा था. भाजपा के नेता बचाव की मुद्रा में थे और कह रहे थे कि समय आने पर सब तय हो जायेगा. जदयू के साथ रिश्ता पुराना है, लेकिन जदयू के नेता मानने को तैयार नहीं. कभी कहें कि बड़े भाई तो हमी हैं. हमारी ही चलेगी, यह दुहाई चल ही थी. इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का बिहार दौरा हुआ और सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात हुई.
बाद में पता चला कि एक महीने में सबकुछ फाइनल हो जायेगा. इसके बाच नेताओं की बयान रूपी तलवारें फिर से म्यान में वापस चली गयीं. अब महीना बीत गया है. दूसरा महीना भी आधा बीत चुका है, लेकिन अभी तक स्थिति साफ नहीं हुई है. ऐसे में सीटों को लेकर बेचैनी बढ़ी है, लेकिन इस बार जाहिर करने का इरादा नहीं है. अब तो जदयू के नेता खुद को बड़ा भाई मानने को भी तैयार नहीं है. कहते हैं कि इन बातों का कोई मायने नहीं है. सीट का बंटवारा समय पर हो जायेगा. अभी बहुत समय है. आखिर इसका क्या मतलब निकाला जाना चाहिये. कौन दल क्या दांव चल रहा है. भाजपा नेता अब भी पुराना बयान ही दुहरा रहे हैं. क्या अब जल्दी नहीं है.

मंगलवार, 1 मई 2018

लहसुलन खाएं, खुद को सेहतमंद बनाएं

लहसुन का प्रयोग अमूमन हर रसोईघर में होता है. छौक लगाने और ग्रेवी बनाने में अक्सर इसका इस्तेमाल होता है, तेल और मसाले में जब लहसुन पकता है, तो अपने कई मूल गुण खो देता है, लेकिन लहसुन का प्रयोग अगर खाली पेट किया जाये, तो हमारे शरीर के लिए इसके फायदे ही फायदे हैं. नुकसान कुछ भी नहीं. इसलिए, ये सलाह है कि कई बीमारियों से बचने या फिर उनके असर को कम करने के लिए लहसुन का प्रयोग करें.
लहसुन औषधीय और पोषक तत्वों से भरपूर है. इसमें बिटामिन बी 1, बी 6 और सी होती है. साथ ही मैगनीसिय और कैल्शियम जैसे कई खनिज भी पाये जाते हैं, जो हमारे शरीर के लिए फायदेमंद हैं. अगर आप सुबह खाली पेट लहसुन का खाते हैं, तो यह आपकी सेहत के लिए रामबाण जैसा है. आपको लहसुन के कुछ ऐसे फायदों के बारे में बताते हैं, जो कॉमन हैं, लेकिन लगातार इनके बारे में जानते रहना चाहिये और खाली पेट लहसुन का इस्तेमाल करते रहना चाहिये.

लहसुन हमारे दिल की रक्षा के लिए एक अच्छा आहार है, जो स्ट्रोक की संभावनाओं को कम करता है. धमनियों में रक्त जमा होने को रोकने में मददगार होता है. खून को पतला करना है, जिससे उसका सर्कुलेशन अच्छा बना रहता है. कोलेस्ट्राल को कंट्रोल करता है. साथ ही दिल की बीमारियों से भी हम लोगों को बचाता है.

लहसुन खाने से उच्च रक्तचाप नियंत्रण में रहता है. इसीलिए जो लोग उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं. उनको रोज सुबह खाली पेट लहसुन खाने की सलाह दी जाती है. इसकी वजह यह है कि लहसुन ब्लड सर्कुलेशन को सही रखने में काफी मददगार होता है.

पानी उबालकर उसमें कुछ लहसुन की कलियां डाल दें. गुनगुना रहने पर ये पानी पीयें, काफी फायदा होगा. कब्ज और डायरिया से आराम मिलेगा. साथ ही इससे अापके शरीर में जहरीले तत्व भी निकल जायेंगे.

खाली पेट लहसुन खाने से हाजमा भी ठीक रहता है. इससे भूख भी खुलकर लगती है. ये गठिया और उसके लक्षणवाले लोगों को भी फायदा करता है. इसलिए अगर आपको जोड़ों का दर्द है, तो खाली पेट नियमित रूप से लहसुन खाने की आदत डालिये. ये आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा.

खाली पेट लहसुन खाने से टेंशन भी दूर रहता है. ऐसा माना जाता है कि जिस तरह का जीवन हम लोग जी रहे हैं. उसमें व्यक्ति अक्सर मानसिक टेंशन से गुजरता है, जिससे हमारे पेट में ऐसे कुछ एसिड बनने लगते हैं, जिनसे हमें घबराहट होने लगती है, जिसे लहसुन दूर कर देता है.

लहसुन एंटीबैक्टीरियल और दर्द निवारक भी माना जाता है. अगर किसी के दांत में दर्द है, तो उसमें एक दो कली लहसुन को पीस कर उसी दांत पर रखना चाहिये, जो दर्द हो रहा है. इससे राहत मिलेगी. खाली पेट लहसुन खाने से नसों की झनझनाहट में भी आराम मिलता है.

लहसुन श्वांस संबंधी बीमारियों में फायदा करता है. यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है. लहसुन में एंटी फंगल तत्व पाये जाते हैं, जो हमें फायदा करते हैं. इसके अलावा और भी तमाम फायदे सुबह के समय लहसुन खाने से होते हैं. मैं, तो यही कहूंगा पर व्यक्ति अपने किचेन में रहनेवाले लहसुन के बारे में जाने और निरोग रहे.


गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

डिजिटल इंडिया की महाबस यात्रा

इंडिया में जब सब कुछ डिजिटल हुआ जा रहा है। सरकार से लेकर आम आदमी तक। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। 12 करोड़ आबादी में 6.50 करोड़ मोबाइल। दुहाई पर दुहाई। बलिहारी पर बलिहारी। मोबाइल से पंखा, बिजली और एसी चलाने और बुझाने की तकनीकि का गुणगान। बलिहारी जा रहे हैं। तरक्की हो रही है। पकौड़ा छानने की तकनीकि पर भी बहस जारी है। ई पकौड़ा वाले कभी पटना से मुजफ्फरपुर तक बिहार सरकार की बस का सफर कर लें। सब भूत उतर जायेगा। सड़क फोर लेन और बस बिना लेनवाली। चढ़ते ही लगेगा कहां आ गये। डिजिटल का भूत, स्वच्छता की सौगंध, न्यू इंडिया का सपना बसवा की हालत तोड़ के रख देती है। धूल में सनी फ़टी हुई गद्दी। खिड़कियों को मात देते शीशे। ठंडी में शीशों के बीच बदन को चीरनेवाली हवा। सबका आंनद मन को मदमस्त कर देता है। टिकट का नंबर आयेगा, तो सुविधा के मुताबिक रिचार्ज करनेवाला मामला आ जाता है। 70 रुपये सरकारी किराया है। सो बात उससे शुरू हो और जितने में पट जाये। रोज जानेवालों का काम 30 में भी चल जाता है। कोई 50, कोई 40 और कोई 60 देकर इस बात में मगन रहता है कि हमने 30, हमने 40 रुपये बचा लिये। प्राइवेट में जाते तो 90 रुपये लग जाते। कुछ लोग ऐसे भी रहते हैं, जो पूरा टिकट का दाम इस आशा में देते हैं कि सरकार के पास पैसा जायेगा, तो बस का दिन सुधरेगा, वो रास्ते भर टिकट मांगते रह जाते हैं। जैसे पैसा लेनेवाला दिखता है टिकट की गुहार लगाते है। वो आश्वासन देकर ओझल हो जाता है। कहता है कि पैसा लिये हैं, तो टिकट जरूर देंगे। ओरिजनल टिकट मिलेगा। बस कुछ देर इंतजार करिये। यह इंतजार यात्रा खत्म होने तक का होता है, जो लोग जिद करके टिकट मांगते हैं, उनको उतरते समय पुरानी तारीख का टिकट पकड़ा कर जल्दी उतरने को कह दिया जाता है। ऐसा डिजिटल प्रयोग कि आप दिनभर सोचते रहिये। यह आज से नहीं सालों से जारी है।
एक सच्ची घटना बताते हैं। 2013 की बात है। रांची से एक गुरु जी आये और अपनी बहन से मिलने सीतामढ़ी चले गये। लौटने लगे, यो सरकारी बस दिखी। उसी में बैठ लिये। वामपंथी गुरु जी ने सोचा कि सरकार का कुछ फायदा करा देते हैं। पैसा दिया और टिकट की जिद पर अड़ गये। बार-बार टिकट की जिद, लेकिन टिकट नहीं मिला। मुजफ्फरपुर में उतरे, तो वही पुरानी डेटवाला टिकट थमा दिया गया। कहा गया ले लीजिये टिकट, रास्ते भर जान खा लिया। गुरुजी भी ज़िद्दी, तारीख पढ़ते ही फिर पलट कर लौटे शिकायत करने लगे, पुराना डेट है। सरकार को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। नया टिकट दो, लेकिन इस बार गुरुजी को सरिया के उत्तर मिल गया, तो वह तिलमिला गये। इसी बीच मे अगवानी के लिए हम बस स्टैंड पहुंचे, तो गुरुजी ने बड़े कूल अंदाज में कहा कि एरिया मैनेजर का ऑफिस जानते हो। मैंने कहा कि हां। कहने लगे, चलो मिलना है, जरूरी बात करनी है। मुझको लगा कि गुरुजी के पुराने परिचित होंगे, लेकिन एरिया मैनेजर के सामने जाते ही गुरुजी फट पड़े। मैनेजर साहब हंस रहे थे, लेकिन गुरुजी का दर्द सुनकर सीरियस होने का नाटक करने लगे। घंटी बजी, आदेशपाल आया। कुछ देर बस का स्टॉप सामने था। देखते ही गुरुजी ने पहचान लिया। गुरुजी कुछ कहते, उससे पहले ही वो दुखड़ा रोने लगा। मौका ही नहीं मिलता टिकट काटने का। बस चलायें की टिकट काटें। मैनेजर साहब ने बात सुनी और सजा के रूप में एक के बदले पांच टिकट गुरुजी को खुश करने के लिए कटवा दिये। हम चुपचाप पूरी कहानी देख रहे थे। टिकट काटने के बाद स्टाप ने कहा कि अब तो ठीक है, हम जाएं। वो फ़टे हुए टिकट लेकर वापस जाने लगा, तो गुरुजी जोर से चिल्लाये, अरे ये फिर यही टिकट सवारियों को दे देगा। एरिया मैनेजर ने टिकट लेकर फाड़ दिया, तो बस कर्मचारी पूरे फार्म में आ गया। चाबी फेंक दी और चिल्लाते हुए बाहर निकल गया। मैनेजर साहब मनाने की मुद्रा में आ गये, लेकिन सामने गुरुजी थे, सो कहने लगे कि गलती पर मैं किसी को माफ नहीं करता। मुझे लगा कि एपिसोड पूरा हो चुका है अब चलना चाहिए। गुरुजी को लेकर वहां से डिजिटल सोच की तरह आगे बढ़ गया।