रामू और श्याम काका गांव (कोई भी नाम रख सकते हैं गांव का) में पहुंचे, तो स्कूल पर पहले से लोग जमा थे. सब यह जानने को उत्सुक थे कि आखिर उन्हें क्यों बुलाया गया है. कहीं, सरकार ने दोनों के हाथ से कोई अनुदान तो नहीं भेजा है, जो हम गांव के लोगों के लिए हो. गांव के मुखिया ने सिर्फ इतना कहा था कि विकास के लिए कुछ लोग आयेंगे और बात करेंगे. वह हम लोगों को सुनना है, जैसा कहेंगे, उसके हिसाब से करना है. इससे लोगों को लगा कि जब हमारा विकास होगा, तभी गांव का विकास होगा ना? यही समझ के उन्हें लगा कि जो लोग बाहर से आ रहे हैं. वह कोई ग्रांट लेकर आायेंगे. इसी उम्मीद में बड़ी संख्या में गांव के लोग जमा हुये थे. कुर्सियां लगी थीं. कुछ महिलाएं स्कूल में जमा थीं. कुछ गांव के कई दरवाजों पर झुंड बनाकर आपस में बातें कर रही थीं. सबकी बात के केंद्र में गांव में आनेवाले लोग ही थे.
उम्मीदों के बीच ग्रामीणों के बीच जब रामू और श्याम काका पहुंचे, तो जल्दी से जल्दी बैठक शुरू करने का उतावलापन सबमें दिखने लगा. कुर्सियों पर विराजमान होते ही गांव के मुखिया कहने लगे कि क्या एजेंडा है? हम लोगों को क्या काम करना है? कैसे विकास करना है? क्या प्रोजेक्ट है, आप लोगों का? क्या करना है आप लोगों को? हम सब जानना चाहते हैं. मुखिया का उतावलापन देख कर रामू व श्याम काका को पूरा माजरा समझने में देर नहीं लगी. दोनों पसोपेश में थे, लेकिन जल्दी ही रामू ने तरकीब निकाली. वह नहीं चाहता था कि ग्रामीणों को उसकी बातों से किसी तरह का झटका लगे. उसने नीति व नियम की बातें करनी शुरू कर दीं. त्रेता से लेकर महाभारतकाल और आधुनिककाल तक. सब बताने लगा और कहने लगा कि सब जब मिल कर काम करते हैं, तभी हम सफल होते हैं. आप सफल क्यों नहीं हैं? आपके गांव में सुविधाएं आजादी के इतने सालों के बाद भी क्यों नहीं पहुंची हैं? बिजली नहीं आयी है? रोड पास होने के बाद भी नहीं बन पायी है, क्या कभी इस पर विचार किया है?
रामू की बातों से कुछ ही देर में गांव का माहौल पूरी तरह से बदल गया. सब लोगों को एहसास होने लगा कि हम सब अबतक ऐसे क्यों हैं? क्यों हमने मिल कर प्रयास नहीं किया गांव को बदलने का? चुनाव से लेकर हर समय हम लोग जनप्रतिनिधियों के भरोसे क्यों रहते हैं? जिन जनप्रतिनिधियों (सबको नहीं) को हम कोसते हैं? उन्हीं से विकास की उम्मीद क्यों लगाते हैं? क्यों नहीं हम लोग खुद मिल कर अपने गांव की तस्वीर बदलने की दिशा में काम करें. यह बातें गांव के मुखिया के साथ विभिन्न लोगों के मन में चल रही थीं. इसी बीच रामू का भाषण भी शुरू हुआ और उसने शुरू में ही साफ कर दिया कि हम यहां कोई चमत्कार करने नहीं आये हैं. हम आप लोगों के सहयोग से काम करने के लिए आये हैं. आप जानते हैं कि बनने में समय लगता है, लेकिन बिगाड़ कुछ ही देर में हो जाता है.
रामू जिस तरह से अपनी बातें रख रहा था. गांव वालों को उसकी बात खुद के करीब लग रही थी. वह समझ रहे थे कि गलती कहां हुई है और वह शहर के पास का गांव होने के बाद भी पिछड़े हैं. क्यों उनके गांव में अभी तक बिजली-बत्ती नहीं लग पायी है, जब रामू ने अपनी बात शुरू की थी, तो उस समय लोगों के कई सवाल थे, जो उनसे पूछना चाहते थे. शुरुआत भी हुई, लेकिन रामू ने बड़ी नम्रता से अपनी बात पूरी होने तक इंतजार करने को कहा, जब उसकी बात पूरी हुई, तो किसी के मन में कोई सवाल नहीं था. सवालों की जगह एक संकल्प ने ले ली थी कि अब अपने गांव का विकास किसी भी कीमत पर करना है. इसके लिए हम सबको एक होकर खड़े होना है. आपस का भेद मिटाकर सब एक हो गये हैं. अब रामू और श्याम चाचा के सपने को साकार होने से कोई रोक सकेगा क्या?
उम्मीदों के बीच ग्रामीणों के बीच जब रामू और श्याम काका पहुंचे, तो जल्दी से जल्दी बैठक शुरू करने का उतावलापन सबमें दिखने लगा. कुर्सियों पर विराजमान होते ही गांव के मुखिया कहने लगे कि क्या एजेंडा है? हम लोगों को क्या काम करना है? कैसे विकास करना है? क्या प्रोजेक्ट है, आप लोगों का? क्या करना है आप लोगों को? हम सब जानना चाहते हैं. मुखिया का उतावलापन देख कर रामू व श्याम काका को पूरा माजरा समझने में देर नहीं लगी. दोनों पसोपेश में थे, लेकिन जल्दी ही रामू ने तरकीब निकाली. वह नहीं चाहता था कि ग्रामीणों को उसकी बातों से किसी तरह का झटका लगे. उसने नीति व नियम की बातें करनी शुरू कर दीं. त्रेता से लेकर महाभारतकाल और आधुनिककाल तक. सब बताने लगा और कहने लगा कि सब जब मिल कर काम करते हैं, तभी हम सफल होते हैं. आप सफल क्यों नहीं हैं? आपके गांव में सुविधाएं आजादी के इतने सालों के बाद भी क्यों नहीं पहुंची हैं? बिजली नहीं आयी है? रोड पास होने के बाद भी नहीं बन पायी है, क्या कभी इस पर विचार किया है?
रामू की बातों से कुछ ही देर में गांव का माहौल पूरी तरह से बदल गया. सब लोगों को एहसास होने लगा कि हम सब अबतक ऐसे क्यों हैं? क्यों हमने मिल कर प्रयास नहीं किया गांव को बदलने का? चुनाव से लेकर हर समय हम लोग जनप्रतिनिधियों के भरोसे क्यों रहते हैं? जिन जनप्रतिनिधियों (सबको नहीं) को हम कोसते हैं? उन्हीं से विकास की उम्मीद क्यों लगाते हैं? क्यों नहीं हम लोग खुद मिल कर अपने गांव की तस्वीर बदलने की दिशा में काम करें. यह बातें गांव के मुखिया के साथ विभिन्न लोगों के मन में चल रही थीं. इसी बीच रामू का भाषण भी शुरू हुआ और उसने शुरू में ही साफ कर दिया कि हम यहां कोई चमत्कार करने नहीं आये हैं. हम आप लोगों के सहयोग से काम करने के लिए आये हैं. आप जानते हैं कि बनने में समय लगता है, लेकिन बिगाड़ कुछ ही देर में हो जाता है.
रामू जिस तरह से अपनी बातें रख रहा था. गांव वालों को उसकी बात खुद के करीब लग रही थी. वह समझ रहे थे कि गलती कहां हुई है और वह शहर के पास का गांव होने के बाद भी पिछड़े हैं. क्यों उनके गांव में अभी तक बिजली-बत्ती नहीं लग पायी है, जब रामू ने अपनी बात शुरू की थी, तो उस समय लोगों के कई सवाल थे, जो उनसे पूछना चाहते थे. शुरुआत भी हुई, लेकिन रामू ने बड़ी नम्रता से अपनी बात पूरी होने तक इंतजार करने को कहा, जब उसकी बात पूरी हुई, तो किसी के मन में कोई सवाल नहीं था. सवालों की जगह एक संकल्प ने ले ली थी कि अब अपने गांव का विकास किसी भी कीमत पर करना है. इसके लिए हम सबको एक होकर खड़े होना है. आपस का भेद मिटाकर सब एक हो गये हैं. अब रामू और श्याम चाचा के सपने को साकार होने से कोई रोक सकेगा क्या?
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