मुजफ्फरपुर के नये मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव हो चुका है. पूरी प्रक्रिया के तहत दोनों प्रतिनिधियों को चुनाव हुआ है, जिसमें ये उम्मीद शामिल है कि शहर का विकास होगा. यहां के लोगों की कठिनाइयां कम होंगी. जीवन सरल और सुगम होगा. नगर में सरकार का एहसास होगा, चंद लोगों की मनमानी की जगह सबकी सुनी जायेगी. वक्त भी यही कह रहा है. चुनाव के बाद पहला जिस तरह के बीता है. वह बहुत आशाओं और उमंगों से भरा है शहर के लोगों के लिए. मैं तो शहर से दूर हूं, लेकिन वहां की धड़कनों को महसूस करने की कोशिश कर रहा हूं.
मेरा ये शुरू से मानना रहा है कि आलोचना बहुत आसान काम है. हम लोग जिस पेशे में हैं, अगर उसमें किसी की तारीफ लिखी जाती है, तो आरोपों का दौर शुरू हो जाता है. लोग शंका की निगाह से देखने लगते हैं, लेकिन बात अपने शहर की है, तो लोग चाहे जिस निगाह से देखें, हम उम्मीद तो लगा ही सकते हैं. अच्छा होने का. मैं ये देखता हूं कि पिछले पांच साल के दौरान काम हुये हैं, लेकिन उनमें तालमेल का अभाव रहा है, जैसे शहर में बननेवाले नालों को लेकर, अगर नये बने नालों से शहर के पानी का प्रवाह रुकता है, तो उंगली, तो नगर निगम पर ही उठेगी ना. नालों के स्लैब जिस तरह से बनने के साथ टूटने लगे हैं, वह भी संदेह खड़ा करते हैं. यह शहर के विकास की मुख्य चीजें हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है.
ट्रैफिक सिस्टम में सुधार और पार्किग की व्यवस्था, शहर की मुख्य परेशानियों में हैं. इनको लेकर प्लान की बात सुनते हुये दशकों बीत गये हैं. काम करने की जरूरत है, ताकि पार्किग बन सके और सड़कों के किनारे अतिक्रमण की वजह से लगनेवाले जाम को काबू में किया जा सके. यह काम कठिन है, लेकिन असंभव नहीं. मुङो लगता है कि नगर सरकार इस काम को करेगी. ऐसे ही बदलते समय के साथ तमाम तरह की सुविधाओं का ऑनलाइन होना. यह भी सबसे जरूरी कदमों में एक है, क्योंकि इससे लोगों को घर बैठे सुविधाएं मिलेंगी और निगम की आय में भी इजाफा होगा. स्मार्ट सिटी को लेकर बहुत सी बातें होती रही हैं. इसलिए इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहना, केवल काम हो, यह मेरा मानना है. शहर अपने आप स्मार्ट सिटी में आ जायेगा. केवल स्मार्ट सिटी में शामिल होने के लिए खुद को बदलना हमें संभव नहीं लगता है, लेकिन बदलाव को अगर हम आदत में शुमार कर लेंगे, तो अपने आप चीजें बदल जायेंगी.
उमंगो, आशाएं और उम्मीदों के साथ नयी नगर सरकार इन सब कामों को करेगी. कचड़ा निस्तारण का काम तेजी से होगा, ताकि शहर के आसपास के इलाकों में कूड़ा डंपिंग नहीं करनी पड़े और इससे भी ज्यादा डंप कूड़े को फूंकना नहीं पड़े, तो अच्छा रहेगा. पॉलीथीन मुक्त समाज का निर्माण भी हमारी नयी नगर सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिये. इससे पहले की नगर सरकार ने शहर में पॉलीथीन को बैन किया था, लेकिन उसे लागू नहीं कराया जा सका. सिर्फ कागजों तक यह पहल सीमित रह गयी, लेकिन अब इसे सरजमीं पर उतारे जाने की जरूरत है. शहर के अंदर जितने भी तालाब हैं, उनका जीर्णोद्धार हो, जिससे मवेशियों व पक्षियों को पीने का पानी मिल सके.
अंत में एक और उम्मीद. शहर की जान सिंकदरपुर मन का स्वरूप बरकरार रहे. यह भी हम लोगों की प्राथमिकता में होना चाहिये. मैं पिछले पांच साल में लगातार इसका स्वरूप बदलता देख रहा हूं, जिससे दुख होता है. प्रशासनिक अधिकारी कागजों पर योजना बनाते हैं, लेकिन जमीन पर लगातार निर्माण हो रहे हैं, जिससे मन का रूप विद्रूप हो रहा है. इसको देखे जाने की जरूरत है. यह कैसे होगा, यह तो प्रशासन और निगम को तय करना है. मुङो लगता है कि यह सब ऐसे मुद्दे हैं, जिनको हम हल कर सकते हैं. इसके लिए अपने शहर और उसकी चीजों के प्रति लोगों में लगाव का भाव पैदा करना होगा. उन चीजों पर लोगों को गर्व करना सीखाना होगा. जैसे मुजफ्फरपुर का नाम आते ही हम शाही लीची की बात करने लगते हैं. वैसे ही शहर की अन्य प्रमुख चीजों को अपनी पहचान से जोड़ना होगा, तब जाकर शहर का भला हो पायेगा. ऐसा मेरा मानना है. इसके लिए अभियान की जरूरत है, क्योंकि मन बदलेगा, तो सब चीजें बदल जायेंगी.
मेरा ये शुरू से मानना रहा है कि आलोचना बहुत आसान काम है. हम लोग जिस पेशे में हैं, अगर उसमें किसी की तारीफ लिखी जाती है, तो आरोपों का दौर शुरू हो जाता है. लोग शंका की निगाह से देखने लगते हैं, लेकिन बात अपने शहर की है, तो लोग चाहे जिस निगाह से देखें, हम उम्मीद तो लगा ही सकते हैं. अच्छा होने का. मैं ये देखता हूं कि पिछले पांच साल के दौरान काम हुये हैं, लेकिन उनमें तालमेल का अभाव रहा है, जैसे शहर में बननेवाले नालों को लेकर, अगर नये बने नालों से शहर के पानी का प्रवाह रुकता है, तो उंगली, तो नगर निगम पर ही उठेगी ना. नालों के स्लैब जिस तरह से बनने के साथ टूटने लगे हैं, वह भी संदेह खड़ा करते हैं. यह शहर के विकास की मुख्य चीजें हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है.
ट्रैफिक सिस्टम में सुधार और पार्किग की व्यवस्था, शहर की मुख्य परेशानियों में हैं. इनको लेकर प्लान की बात सुनते हुये दशकों बीत गये हैं. काम करने की जरूरत है, ताकि पार्किग बन सके और सड़कों के किनारे अतिक्रमण की वजह से लगनेवाले जाम को काबू में किया जा सके. यह काम कठिन है, लेकिन असंभव नहीं. मुङो लगता है कि नगर सरकार इस काम को करेगी. ऐसे ही बदलते समय के साथ तमाम तरह की सुविधाओं का ऑनलाइन होना. यह भी सबसे जरूरी कदमों में एक है, क्योंकि इससे लोगों को घर बैठे सुविधाएं मिलेंगी और निगम की आय में भी इजाफा होगा. स्मार्ट सिटी को लेकर बहुत सी बातें होती रही हैं. इसलिए इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहना, केवल काम हो, यह मेरा मानना है. शहर अपने आप स्मार्ट सिटी में आ जायेगा. केवल स्मार्ट सिटी में शामिल होने के लिए खुद को बदलना हमें संभव नहीं लगता है, लेकिन बदलाव को अगर हम आदत में शुमार कर लेंगे, तो अपने आप चीजें बदल जायेंगी.
उमंगो, आशाएं और उम्मीदों के साथ नयी नगर सरकार इन सब कामों को करेगी. कचड़ा निस्तारण का काम तेजी से होगा, ताकि शहर के आसपास के इलाकों में कूड़ा डंपिंग नहीं करनी पड़े और इससे भी ज्यादा डंप कूड़े को फूंकना नहीं पड़े, तो अच्छा रहेगा. पॉलीथीन मुक्त समाज का निर्माण भी हमारी नयी नगर सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिये. इससे पहले की नगर सरकार ने शहर में पॉलीथीन को बैन किया था, लेकिन उसे लागू नहीं कराया जा सका. सिर्फ कागजों तक यह पहल सीमित रह गयी, लेकिन अब इसे सरजमीं पर उतारे जाने की जरूरत है. शहर के अंदर जितने भी तालाब हैं, उनका जीर्णोद्धार हो, जिससे मवेशियों व पक्षियों को पीने का पानी मिल सके.
अंत में एक और उम्मीद. शहर की जान सिंकदरपुर मन का स्वरूप बरकरार रहे. यह भी हम लोगों की प्राथमिकता में होना चाहिये. मैं पिछले पांच साल में लगातार इसका स्वरूप बदलता देख रहा हूं, जिससे दुख होता है. प्रशासनिक अधिकारी कागजों पर योजना बनाते हैं, लेकिन जमीन पर लगातार निर्माण हो रहे हैं, जिससे मन का रूप विद्रूप हो रहा है. इसको देखे जाने की जरूरत है. यह कैसे होगा, यह तो प्रशासन और निगम को तय करना है. मुङो लगता है कि यह सब ऐसे मुद्दे हैं, जिनको हम हल कर सकते हैं. इसके लिए अपने शहर और उसकी चीजों के प्रति लोगों में लगाव का भाव पैदा करना होगा. उन चीजों पर लोगों को गर्व करना सीखाना होगा. जैसे मुजफ्फरपुर का नाम आते ही हम शाही लीची की बात करने लगते हैं. वैसे ही शहर की अन्य प्रमुख चीजों को अपनी पहचान से जोड़ना होगा, तब जाकर शहर का भला हो पायेगा. ऐसा मेरा मानना है. इसके लिए अभियान की जरूरत है, क्योंकि मन बदलेगा, तो सब चीजें बदल जायेंगी.
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