मधुबनी के झंझारपुर अनुमंडल के रैयाम गांव के रहनेवाले विकास कुमार मिश्र की चर्चा आज हर जुबान पर है. मिथिलांचल के साथ पूरा देश उन पर गर्व कर रहा है. बीएसएफ में जवान विकास जब अक्तूबर महीने में दशहरा के समय में गांव आये थे, तब परिजनों समेत किसी ग्रामीण को इस बात का आभास तक नहीं था कि यह उनकी अंतिम छुट्टी साबित होगी. दिल्ली में रहनेवाले तीन भाइयों से मिले, तो चार भाइयों की सर्किल पूरी हो गयी. सभी ने साथ बैठ कर खाना खाया.
विकास अपने परिवार में सबसे छोटे थे. उनसे बड़ी दो बहने और तीन भाई थे. सबकी शादी हो चुकी है और सब अपने परिवार के साथ सेटल हैं. भाई दिल्ली में रह कर निजी कंपनियों में काम करते हैं, जबकि बहनें अपनी ससुराल में. पिता का स्वर्गवास हो चुका है, सो घर में केवल मां रहती हैं, जिनकी देखभाल के लिए अभी विकास की बहन आयी हुई थी, क्योंकि मां इंद्रा देवी को हृदय की बीमारी है. इसी की चिंता विकास को सबसे ज्यादा थी. अपनी अंतिम छुट्टी में वो मां को लेकर काफी चिंतित थे. वह छुट्टी से वापस जाने से पहले मां की दवाइयां ला कर गये थे और वादा किया था कि इस बार जब घर आऊंगा, तो घर का काम पूरा करा दूंगा, क्योंकि फूस का घर अच्छा नहीं लगता.
जम्मू-कश्मीर के पुंछ में पोस्टिंग के बाद भी रोज मां को फोन करते थे और उनका हाल लेते थे. बस एक ही ताकीद करते थे कि मां समय से खाना और दवाई खाना, ताकि ठीक रहे. बहन से भी कुछ दिन और घर में रहने की गुजारिश की थी, जिस पर बहन मान गयी थी. बीते बुधवार को सुबह मां का हाल लिया और बहन से बात की, तब भी घर बनाने की बात दोहरायी. बताया, कैसे सीमा पर तनाव ज्यादा और लगातार पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी की जाती है, जिसका वो लोग माकूल जवाब देते हैं. ये बात हुये कुछ घंटे ही बीते थे कि दिन में लगभग चार बजे उनके जख्मी होने की खबर घर में आयी और थोड़ी देर बाद ही उनकी शहादत की बात भी कही गयी. सहसा किसी को विश्वास नहीं हो रहा था.
शाम तक ये बात झंझारपुर समेत पूरे जिले व देश में फैल चुकी थी. विकास के घर पर सैकड़ों लोग जमा थे. मां-बहन को विश्वास नहीं हो रहा था, जिस बेटे व भाई से कुछ घंटे पहले ही बात हुई थी. इतनी अच्छी बातें कर रहा था. वह अब इस दुनिया में नहीं है. दिल्ली में विकास के भाई ने कहा कि मेरा भाई इस दुनिया से नहीं जा सकता. छठ के दिन ही पांच बार उससे बात हुई थी. ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन ऐसा हो चुका था. विकास ने देश की रक्षा करते हुये शहादत दे दी थी. शनिवार की सुबह जब विकास का पार्थिव शरीर पहुंचा, तो हजारों की संख्या में आसपास के लोग जुटे. उन्हें राजकीय सम्मान से अंतिम विदाई दी गयी. रैय्याम गांव के मध्य विद्यालय के पास ही उनका अंतिम संस्कार हुआ, जिस जगह पर अंतिम संस्कार हुआ. वहां ख़ड़े होने तक की जगह नहीं थी. सब लोग विकास को याद कर रहे थे. उनकी बहादुरी की बाद कर रहे थे.
विकास के सम्मान में नारे लगा रहे थे. पाकिस्तान को कायराना हरकत पर लागत दे रहे थे. इन सबके बीच मां इंद्रा देवी की चीख सबको परेशान कर रही थी. बहनें भाई को याद कर रही थीं. बड़े भाइयों को अपने छोटे भाई की शहादत पर गम था, साथ में गर्व भी, क्योंकि विकास देश की सरहदों की रक्षा करते हुये शहीद हुये हैं. यही चर्चा गांव के हर बच्चे-बच्चे में है. रैयाम गांव पहले से भी सैनिकों का गांव रहा है. यहां के लगभग पचास परिवारों के लाल देश की सेवा कर रहे हैं. विकास हमें भी आपकी शहादत पर गर्व है. आपकी शहादत को देश हमेशा याद रखेगा.
विकास अपने परिवार में सबसे छोटे थे. उनसे बड़ी दो बहने और तीन भाई थे. सबकी शादी हो चुकी है और सब अपने परिवार के साथ सेटल हैं. भाई दिल्ली में रह कर निजी कंपनियों में काम करते हैं, जबकि बहनें अपनी ससुराल में. पिता का स्वर्गवास हो चुका है, सो घर में केवल मां रहती हैं, जिनकी देखभाल के लिए अभी विकास की बहन आयी हुई थी, क्योंकि मां इंद्रा देवी को हृदय की बीमारी है. इसी की चिंता विकास को सबसे ज्यादा थी. अपनी अंतिम छुट्टी में वो मां को लेकर काफी चिंतित थे. वह छुट्टी से वापस जाने से पहले मां की दवाइयां ला कर गये थे और वादा किया था कि इस बार जब घर आऊंगा, तो घर का काम पूरा करा दूंगा, क्योंकि फूस का घर अच्छा नहीं लगता.
जम्मू-कश्मीर के पुंछ में पोस्टिंग के बाद भी रोज मां को फोन करते थे और उनका हाल लेते थे. बस एक ही ताकीद करते थे कि मां समय से खाना और दवाई खाना, ताकि ठीक रहे. बहन से भी कुछ दिन और घर में रहने की गुजारिश की थी, जिस पर बहन मान गयी थी. बीते बुधवार को सुबह मां का हाल लिया और बहन से बात की, तब भी घर बनाने की बात दोहरायी. बताया, कैसे सीमा पर तनाव ज्यादा और लगातार पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी की जाती है, जिसका वो लोग माकूल जवाब देते हैं. ये बात हुये कुछ घंटे ही बीते थे कि दिन में लगभग चार बजे उनके जख्मी होने की खबर घर में आयी और थोड़ी देर बाद ही उनकी शहादत की बात भी कही गयी. सहसा किसी को विश्वास नहीं हो रहा था.
शाम तक ये बात झंझारपुर समेत पूरे जिले व देश में फैल चुकी थी. विकास के घर पर सैकड़ों लोग जमा थे. मां-बहन को विश्वास नहीं हो रहा था, जिस बेटे व भाई से कुछ घंटे पहले ही बात हुई थी. इतनी अच्छी बातें कर रहा था. वह अब इस दुनिया में नहीं है. दिल्ली में विकास के भाई ने कहा कि मेरा भाई इस दुनिया से नहीं जा सकता. छठ के दिन ही पांच बार उससे बात हुई थी. ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन ऐसा हो चुका था. विकास ने देश की रक्षा करते हुये शहादत दे दी थी. शनिवार की सुबह जब विकास का पार्थिव शरीर पहुंचा, तो हजारों की संख्या में आसपास के लोग जुटे. उन्हें राजकीय सम्मान से अंतिम विदाई दी गयी. रैय्याम गांव के मध्य विद्यालय के पास ही उनका अंतिम संस्कार हुआ, जिस जगह पर अंतिम संस्कार हुआ. वहां ख़ड़े होने तक की जगह नहीं थी. सब लोग विकास को याद कर रहे थे. उनकी बहादुरी की बाद कर रहे थे.
विकास के सम्मान में नारे लगा रहे थे. पाकिस्तान को कायराना हरकत पर लागत दे रहे थे. इन सबके बीच मां इंद्रा देवी की चीख सबको परेशान कर रही थी. बहनें भाई को याद कर रही थीं. बड़े भाइयों को अपने छोटे भाई की शहादत पर गम था, साथ में गर्व भी, क्योंकि विकास देश की सरहदों की रक्षा करते हुये शहीद हुये हैं. यही चर्चा गांव के हर बच्चे-बच्चे में है. रैयाम गांव पहले से भी सैनिकों का गांव रहा है. यहां के लगभग पचास परिवारों के लाल देश की सेवा कर रहे हैं. विकास हमें भी आपकी शहादत पर गर्व है. आपकी शहादत को देश हमेशा याद रखेगा.