शुक्रवार, 16 जून 2017

अब भी अच्छे के लिए खड़े होते हैं लोग

रामू और श्याम काका गांव (कोई भी नाम रख सकते हैं गांव का) में पहुंचे, तो स्कूल पर पहले से लोग जमा थे. सब यह जानने को उत्सुक थे कि आखिर उन्हें क्यों बुलाया गया है. कहीं, सरकार ने दोनों के हाथ से कोई अनुदान तो नहीं भेजा है, जो हम गांव के लोगों के लिए हो. गांव के मुखिया ने सिर्फ इतना कहा था कि विकास के लिए कुछ लोग आयेंगे और बात करेंगे. वह हम लोगों को सुनना है, जैसा कहेंगे, उसके हिसाब से करना है. इससे लोगों को लगा कि जब हमारा विकास होगा, तभी गांव का विकास होगा ना? यही समझ के उन्हें लगा कि जो लोग बाहर से आ रहे हैं. वह कोई ग्रांट लेकर आायेंगे. इसी उम्मीद में बड़ी संख्या में गांव के लोग जमा हुये थे. कुर्सियां लगी थीं. कुछ महिलाएं स्कूल में जमा थीं. कुछ गांव के कई दरवाजों पर झुंड बनाकर आपस में बातें कर रही थीं. सबकी बात के केंद्र में गांव में आनेवाले लोग ही थे.
उम्मीदों के बीच ग्रामीणों के बीच जब रामू और श्याम काका पहुंचे, तो जल्दी से जल्दी बैठक शुरू करने का उतावलापन सबमें दिखने लगा. कुर्सियों पर विराजमान होते ही गांव के मुखिया कहने लगे कि क्या एजेंडा है? हम लोगों को क्या काम करना है? कैसे विकास करना है? क्या प्रोजेक्ट है, आप लोगों का? क्या करना है आप लोगों को? हम सब जानना चाहते हैं. मुखिया का उतावलापन देख कर रामू व श्याम काका को पूरा माजरा समझने में देर नहीं लगी. दोनों पसोपेश में थे, लेकिन जल्दी ही रामू ने तरकीब निकाली. वह नहीं चाहता था कि ग्रामीणों को उसकी बातों से किसी तरह का झटका लगे. उसने नीति व नियम की बातें करनी शुरू कर दीं. त्रेता से लेकर महाभारतकाल और आधुनिककाल तक. सब बताने लगा और कहने लगा कि सब जब मिल कर काम करते हैं, तभी हम सफल होते हैं. आप सफल क्यों नहीं हैं? आपके गांव में सुविधाएं आजादी के इतने सालों के बाद भी क्यों नहीं पहुंची हैं? बिजली नहीं आयी है? रोड पास होने के बाद भी नहीं बन पायी है, क्या कभी इस पर विचार किया है?
रामू की बातों से कुछ ही देर में गांव का माहौल पूरी तरह से बदल गया. सब लोगों को एहसास होने लगा कि हम सब अबतक ऐसे क्यों हैं? क्यों हमने मिल कर प्रयास नहीं किया गांव को बदलने का? चुनाव से लेकर हर समय हम लोग जनप्रतिनिधियों के भरोसे क्यों रहते हैं? जिन जनप्रतिनिधियों (सबको नहीं) को हम कोसते हैं? उन्हीं से विकास की उम्मीद क्यों लगाते हैं? क्यों नहीं हम लोग खुद मिल कर अपने गांव की तस्वीर बदलने की दिशा में काम करें. यह बातें गांव के मुखिया के साथ विभिन्न लोगों के मन में चल रही थीं. इसी बीच रामू का भाषण भी शुरू हुआ और उसने शुरू में ही साफ कर दिया कि हम यहां कोई चमत्कार करने नहीं आये हैं. हम आप लोगों के सहयोग से काम करने के लिए आये हैं. आप जानते हैं कि बनने में समय लगता है, लेकिन बिगाड़ कुछ ही देर में हो जाता है.
रामू जिस तरह से अपनी बातें रख रहा था. गांव वालों को उसकी बात खुद के करीब लग रही थी. वह समझ रहे थे कि गलती कहां हुई है और वह शहर के पास का गांव होने के बाद भी पिछड़े हैं. क्यों उनके गांव में अभी तक बिजली-बत्ती नहीं लग पायी है, जब रामू ने अपनी बात शुरू की थी, तो उस समय लोगों के कई सवाल थे, जो उनसे पूछना चाहते थे. शुरुआत भी हुई, लेकिन रामू ने बड़ी नम्रता से अपनी बात पूरी होने तक इंतजार करने को कहा, जब उसकी बात पूरी हुई, तो किसी के मन में कोई सवाल नहीं था. सवालों की जगह एक संकल्प ने ले ली थी कि अब अपने गांव का विकास किसी भी कीमत पर करना है. इसके लिए हम सबको एक होकर खड़े होना है. आपस का भेद मिटाकर सब एक हो गये हैं. अब रामू और श्याम चाचा के सपने को साकार होने से कोई रोक सकेगा क्या?

शनिवार, 10 जून 2017

मुजफ्फरपुर नगर निगम- जिम्मेवारी निभाने की बारी

मुजफ्फरपुर के नये मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव हो चुका है. पूरी प्रक्रिया के तहत दोनों प्रतिनिधियों को चुनाव हुआ है, जिसमें ये उम्मीद शामिल है कि शहर का विकास होगा. यहां के लोगों की कठिनाइयां कम होंगी. जीवन सरल और सुगम होगा. नगर में सरकार का एहसास होगा, चंद लोगों की मनमानी की जगह सबकी सुनी जायेगी. वक्त भी यही कह रहा है. चुनाव के बाद पहला जिस तरह के बीता है. वह बहुत आशाओं और उमंगों से भरा है शहर के लोगों के लिए. मैं तो शहर से दूर हूं, लेकिन वहां की धड़कनों को महसूस करने की कोशिश कर रहा हूं.
मेरा ये शुरू से मानना रहा है कि आलोचना बहुत आसान काम है. हम लोग जिस पेशे में हैं, अगर उसमें किसी की तारीफ लिखी जाती है, तो आरोपों का दौर शुरू हो जाता है. लोग शंका की निगाह से देखने लगते हैं, लेकिन बात अपने शहर की है, तो लोग चाहे जिस निगाह से देखें, हम उम्मीद तो लगा ही सकते हैं. अच्छा होने का. मैं ये देखता हूं कि पिछले पांच साल के दौरान काम हुये हैं, लेकिन उनमें तालमेल का अभाव रहा है, जैसे शहर में बननेवाले नालों को लेकर, अगर नये बने नालों से शहर के पानी का प्रवाह रुकता है, तो उंगली, तो नगर निगम पर ही उठेगी ना. नालों के स्लैब जिस तरह से बनने के साथ टूटने लगे हैं, वह भी संदेह खड़ा करते हैं. यह शहर के विकास की मुख्य चीजें हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है.
ट्रैफिक सिस्टम में सुधार और पार्किग की व्यवस्था, शहर की मुख्य परेशानियों में हैं. इनको लेकर प्लान की बात सुनते हुये दशकों बीत गये हैं. काम करने की जरूरत है, ताकि पार्किग बन सके और सड़कों के किनारे अतिक्रमण की वजह से लगनेवाले जाम को काबू में किया जा सके. यह काम कठिन है, लेकिन असंभव नहीं. मुङो लगता है कि नगर सरकार इस काम को करेगी. ऐसे ही बदलते समय के साथ तमाम तरह की सुविधाओं का ऑनलाइन होना. यह भी सबसे जरूरी कदमों में एक है, क्योंकि इससे लोगों को घर बैठे सुविधाएं मिलेंगी और निगम की आय में भी इजाफा होगा. स्मार्ट सिटी को लेकर बहुत सी बातें होती रही हैं. इसलिए इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहना, केवल काम हो, यह मेरा मानना है. शहर अपने आप स्मार्ट सिटी में आ जायेगा. केवल स्मार्ट सिटी में शामिल होने के लिए खुद को बदलना हमें संभव नहीं लगता है, लेकिन बदलाव को अगर हम आदत में शुमार कर लेंगे, तो अपने आप चीजें बदल जायेंगी.
उमंगो, आशाएं और उम्मीदों के साथ नयी नगर सरकार इन सब कामों को करेगी. कचड़ा निस्तारण का काम तेजी से होगा, ताकि शहर के आसपास के इलाकों में कूड़ा डंपिंग नहीं करनी पड़े और इससे भी ज्यादा डंप कूड़े को फूंकना नहीं पड़े, तो अच्छा रहेगा. पॉलीथीन मुक्त समाज का निर्माण भी हमारी नयी नगर सरकार की प्राथमिकता में होना चाहिये. इससे पहले की नगर सरकार ने शहर में पॉलीथीन को बैन किया था, लेकिन उसे लागू नहीं कराया जा सका. सिर्फ कागजों तक यह पहल सीमित रह गयी, लेकिन अब इसे सरजमीं पर उतारे जाने की जरूरत है. शहर के अंदर जितने भी तालाब हैं, उनका जीर्णोद्धार हो, जिससे मवेशियों व पक्षियों को पीने का पानी मिल सके.
अंत में एक और उम्मीद. शहर की जान सिंकदरपुर मन का स्वरूप बरकरार रहे. यह भी हम लोगों की प्राथमिकता में होना चाहिये. मैं पिछले पांच साल में लगातार इसका स्वरूप बदलता देख रहा हूं, जिससे दुख होता है. प्रशासनिक अधिकारी कागजों पर योजना बनाते हैं, लेकिन जमीन पर लगातार निर्माण हो रहे हैं, जिससे मन का रूप विद्रूप हो रहा है. इसको देखे जाने की जरूरत है. यह कैसे होगा, यह तो प्रशासन और निगम को तय करना है. मुङो लगता है कि यह सब ऐसे मुद्दे हैं, जिनको हम हल कर सकते हैं. इसके लिए अपने शहर और उसकी चीजों के प्रति लोगों में लगाव का भाव पैदा करना होगा. उन चीजों पर लोगों को गर्व करना सीखाना होगा. जैसे मुजफ्फरपुर का नाम आते ही हम शाही लीची की बात करने लगते हैं. वैसे ही शहर की अन्य प्रमुख चीजों को अपनी पहचान से जोड़ना होगा, तब जाकर शहर का भला हो पायेगा. ऐसा मेरा मानना है. इसके लिए अभियान की जरूरत है, क्योंकि मन बदलेगा, तो सब चीजें बदल जायेंगी.