सोमवार, 3 अक्टूबर 2016

कहां ले जायेगा ये विकास?

वार्ड सदस्य के चुनाव से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद तक के चुनाव में विकास का नारा गूंजता है. इनमें खड़े होनेवाले प्रत्याशी विकास की दुहाई देते हैं, लेकिन समाज के सामने सवाल ये है कि मशीनों पर आधारित ये विकास आखिर हमें कहां लेकर जायेगा, क्योंकि जितना विकास हो रहा है. उससे कहीं ज्यादा विनाश की भी जमीन भी तैयार हो रही है. पश्चिम मॉडल के इस विकास को हमारे महापुरुष शैतानी सभ्यता करार चुके हैं, लेकिन सबक लेने के बजाय हम लगातार इसी पर बढ़ते चले जा रहे हैं.
अभी ज्यादातर काम ऊर्जा पर आधारित हो रहे हैं. इसके प्रमुख स्त्रोत तेल व कोयला है, जो हमें धरती के खनन से प्राप्त होते हैं. इस प्रक्रिया में किस तरह से लोगों को विस्थापन आदि होता है और कैसे जंगलों का काटा जाता है. ये अलग बात है, लेकिन इसके जरिये हम जिन चीजों को चलाते हैं और जिस तरह से बड़ा स्क्रैप तैयार हो रहा है, जो सदियों तक असर डालेगा. इसका क्या होगा? ये बड़ा सवाल है.
विज्ञान की तरक्की की बात भी सवालों के घेरे में है. हाल में एक समाजवादी चिंतक से बात हो रही थी, तो उनका कहना था कि अगर हम खाद्य पदार्थो को जलाते हैं, तो वह राख और कोयले में तब्दील हो जाते हैं, जिस दिन राख व कोयले से खाद्य पदार्थ विकसित करने की तकनीकि आ जायेगी. उस दिन हम विज्ञान के तरक्की करने की बात को स्वीकार कर लेंगे. ये बात कहीं तक सही भी लगती है. सवाल ये भी है कि रास्ता क्या हो सकता है, तो इसका उत्तर हमें प्रकृति पर आधारित विकास को अपनाना चाहिये और उसके हिसाब से काम करना चाहिये, ताकि उससे जो कचरा निकले, वो प्रकृति में मिल जाये और फिर से नया रूप धारण कर ले. ये वो रास्ता भी है, जिसमें हम कुछ भी गंवाये बिना आगे बढ़ सकेंगे और अपनी आनेवाली पीढ़ी को अच्छा तोहफा देकर जायेंगे.
समृद्धि से आनेवाली परेशानी की बात
एक शहर में एक समृद्ध परिवार रहता था, जिसके परिवार के हर सदस्य का अलग कमरा था. अगल गाड़ियां थीं. सब अलग-अलग समय पर अपने काम पर जाते और आते थे. किसी से कोई मतलब नहीं होता था. सबका अलग-अलग रुटीन था, जब कभी छुट्टी के दिन परिवार के सदस्य आपस में मिलते, तो उनके बीच आर्थिक बात होती, जो लड़ाई तक पहुंच जाती. इससे उनके घर में शांति नहीं रहती थी. इससे घर का मुखिया अंदर ही अंदर दुखी रहता था. उसके अलीशान घर के पास ही एक झोपड़पट्टी थी, जिसमें एक परिवार रहता था, जिसके सदस्य सुबह खाना बनाने और खाने के बाद काम पर जाते. शाम को लौटते, तो हंसते-खेलते, गाते-बजाते. फिर खाना बनाते, खाते और सो जाते. इसी तरह से उनका रुटीन चल रहा था. समद्ध परिवार का मुखिया एक दिन उन लोगों से मिलने पहुंचा और उसने उनकी खुशी का राज पूछा, तो उन लोगों ने बता दिया. इसके बाद उसने उनकी मदद का फैसला लिया और उस परिवार को थोड़ा सोना दे दिया. घर में सोना आते ही झोपड़पट्टी में रहनेवाले परिवार के सदस्य चौकन्ने हो गये. उन्हें उस सोने की सुरक्षा की चिंता सताने लगी. उनमें से एक व्यक्ति 24 घंटे सोने की रखवाली में रहता और अन्य लोग काम पर जाते. सोना आने के बाद वो लोग उस पर बात करते. उनकी एकता भी खतरे में पड़ने लगी थी, जिस तरह से हंसते-खेलते और गाते-बजाते थे. वो भी धीरे-धीरे बंद हो गया, क्योंकि उनका सारा ध्यान उस सोने पर रहता था.

रविवार, 2 अक्टूबर 2016

हर हाल में रहे शराबबंदी

भारत-पाक के रिश्तों में तनाव के बीच मैं जिस राज्य बिहार में रहता हूं. वहां के लिए कोर्ट के दो महत्वपूर्ण फैसले आये. एक सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया, जिसमें सीवान के साहेब शहाबुद्दीन की जमानत रद्द हो गयी और उन्हें 20 दिन बाद फिर से जेल जाना पड़ा. इससे पहले 12 साल तक शहाबुद्दीन प्रदेश की विभिन्न जेलों में रह चुके थे. दूसरी खबर शराब बंदी कानून को रद्द करने संबंधी थी, जिस पर पटना हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया. इसको लेकर दिन भर उहाफोह की स्थिति रही. दोनों फैसले एक ही दिन 29 सितंबर को आये.
शराबबंदी के फैसले को लेकर तरह-तरह की बातें हुईं, लेकिन वस्तु स्थिति यही थी कि शराबबंदी लागू है. राज्य सरकार हाइकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने जा रही है. शराबबंदी का नया कानून भी लागू गांधी जयंती (दो अक्तूबर) से लागू हो गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी को लेकर संकल्पित दिखते हैं. मैं भी शराबबंदी के पक्ष में हूं. इसको लेकर जब मैंने फेसबुक पर लिखा, तो कई साथियों ने सवाल उठाये. सवाल अपनी जगह हैं, लेकिन शराबबंदी का असर देखना है, तो आपको उन गली मोहल्लों में जाना होगा, जहां जाना हम अपनी शान के खिलाफ समझते हैं, जिसे हम शायद अपने समाज का हिस्सा मानने से हिचकते हैं.
मेरा सामना ऐसे लोगों से होता रहा है. पिछले छह सालों के दौरान मैं ऐसे कई मामले देखे हैं, जिनमें शराब से परिवार तबाह हो गये. पांच अप्रैल को शराबबंदी हुई, तो सबसे ज्यादा खुशी उन महिलाओं को हुई, जो शराबी पतियों की प्रताड़ना का शिकार थीं. उन्हें लगा मानो नया जीवन मिला है. ऐसी महिलाएं कहने लगीं कि अब उनके दिन बदल गये हैं. इसका असर भी उनके जीवन पर दिखने लगा. मैं जिस मोहल्ले में रहता हूं. उसके पास ही ऐसे लोगों की बस्ती हैं, जहां शराब का ज्यादा असर देखने को मिल रहा था. यहां शराबी पतियों की प्रताड़ना का शिकार महिलाएं भी हैं और ऐसी महिलाएं भी जो चोरी-छुपे शराब बेचने का काम करती थीं, लेकिन पांच अप्रैल के बाद यहां शांति दिखती है.
इसी मोहल्ले की रहनेवाली मेहरुन्निशां घरों में काम करके परिवार चालती हैं. उनका पति घरों में पेंट का काम करता है. शराब की लत की वजह से कमाई का ज्यादातर हिस्सा उसी में लगा देता था, जब काम नहीं मिलता, तो पत्नी से शराब के पैसे मांगता, नहीं देने पर मारपीट भी होती. तीन बच्चों की मां मेहरुन्निशां कई बार मायके भाग कर अपने जान बचाती थी, लेकिन उसके पति की आदत में सुधार नहीं हो रहा था. शराबबंदी लागू होने के बाद मेहरुन्निशां के दिन बहुर गये. अब उसका पति जो कमा कर लाता, उसका ज्यादातर हिस्सा उसे देता और दोनों ने मिल कर कुछ महीने में ही जमीन खरीद कर घर बनाने का फैसला कर लिया. जमीन खरीद ली. इसी बीच हाइकोर्ट का फैसला आया, तो मेहरुन्निशां की चिंता बढ़ गयी, उसे लगा कि पुराने दिन फिर लौट आयेंगे, लेकिन जब पूरी जानकारी मिली, तो उसने चैन की सांस ली. कहने लगी कि सरकार को किसी भी सूरत में शराबबंदी को लागू रखना चाहिये, नहीं तो हमारे जैसे लोगों का घर ही उजड़ जायेगा.