वार्ड सदस्य के चुनाव से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद तक के चुनाव में विकास का नारा गूंजता है. इनमें खड़े होनेवाले प्रत्याशी विकास की दुहाई देते हैं, लेकिन समाज के सामने सवाल ये है कि मशीनों पर आधारित ये विकास आखिर हमें कहां लेकर जायेगा, क्योंकि जितना विकास हो रहा है. उससे कहीं ज्यादा विनाश की भी जमीन भी तैयार हो रही है. पश्चिम मॉडल के इस विकास को हमारे महापुरुष शैतानी सभ्यता करार चुके हैं, लेकिन सबक लेने के बजाय हम लगातार इसी पर बढ़ते चले जा रहे हैं.
अभी ज्यादातर काम ऊर्जा पर आधारित हो रहे हैं. इसके प्रमुख स्त्रोत तेल व कोयला है, जो हमें धरती के खनन से प्राप्त होते हैं. इस प्रक्रिया में किस तरह से लोगों को विस्थापन आदि होता है और कैसे जंगलों का काटा जाता है. ये अलग बात है, लेकिन इसके जरिये हम जिन चीजों को चलाते हैं और जिस तरह से बड़ा स्क्रैप तैयार हो रहा है, जो सदियों तक असर डालेगा. इसका क्या होगा? ये बड़ा सवाल है.
विज्ञान की तरक्की की बात भी सवालों के घेरे में है. हाल में एक समाजवादी चिंतक से बात हो रही थी, तो उनका कहना था कि अगर हम खाद्य पदार्थो को जलाते हैं, तो वह राख और कोयले में तब्दील हो जाते हैं, जिस दिन राख व कोयले से खाद्य पदार्थ विकसित करने की तकनीकि आ जायेगी. उस दिन हम विज्ञान के तरक्की करने की बात को स्वीकार कर लेंगे. ये बात कहीं तक सही भी लगती है. सवाल ये भी है कि रास्ता क्या हो सकता है, तो इसका उत्तर हमें प्रकृति पर आधारित विकास को अपनाना चाहिये और उसके हिसाब से काम करना चाहिये, ताकि उससे जो कचरा निकले, वो प्रकृति में मिल जाये और फिर से नया रूप धारण कर ले. ये वो रास्ता भी है, जिसमें हम कुछ भी गंवाये बिना आगे बढ़ सकेंगे और अपनी आनेवाली पीढ़ी को अच्छा तोहफा देकर जायेंगे.
समृद्धि से आनेवाली परेशानी की बात
एक शहर में एक समृद्ध परिवार रहता था, जिसके परिवार के हर सदस्य का अलग कमरा था. अगल गाड़ियां थीं. सब अलग-अलग समय पर अपने काम पर जाते और आते थे. किसी से कोई मतलब नहीं होता था. सबका अलग-अलग रुटीन था, जब कभी छुट्टी के दिन परिवार के सदस्य आपस में मिलते, तो उनके बीच आर्थिक बात होती, जो लड़ाई तक पहुंच जाती. इससे उनके घर में शांति नहीं रहती थी. इससे घर का मुखिया अंदर ही अंदर दुखी रहता था. उसके अलीशान घर के पास ही एक झोपड़पट्टी थी, जिसमें एक परिवार रहता था, जिसके सदस्य सुबह खाना बनाने और खाने के बाद काम पर जाते. शाम को लौटते, तो हंसते-खेलते, गाते-बजाते. फिर खाना बनाते, खाते और सो जाते. इसी तरह से उनका रुटीन चल रहा था. समद्ध परिवार का मुखिया एक दिन उन लोगों से मिलने पहुंचा और उसने उनकी खुशी का राज पूछा, तो उन लोगों ने बता दिया. इसके बाद उसने उनकी मदद का फैसला लिया और उस परिवार को थोड़ा सोना दे दिया. घर में सोना आते ही झोपड़पट्टी में रहनेवाले परिवार के सदस्य चौकन्ने हो गये. उन्हें उस सोने की सुरक्षा की चिंता सताने लगी. उनमें से एक व्यक्ति 24 घंटे सोने की रखवाली में रहता और अन्य लोग काम पर जाते. सोना आने के बाद वो लोग उस पर बात करते. उनकी एकता भी खतरे में पड़ने लगी थी, जिस तरह से हंसते-खेलते और गाते-बजाते थे. वो भी धीरे-धीरे बंद हो गया, क्योंकि उनका सारा ध्यान उस सोने पर रहता था.
अभी ज्यादातर काम ऊर्जा पर आधारित हो रहे हैं. इसके प्रमुख स्त्रोत तेल व कोयला है, जो हमें धरती के खनन से प्राप्त होते हैं. इस प्रक्रिया में किस तरह से लोगों को विस्थापन आदि होता है और कैसे जंगलों का काटा जाता है. ये अलग बात है, लेकिन इसके जरिये हम जिन चीजों को चलाते हैं और जिस तरह से बड़ा स्क्रैप तैयार हो रहा है, जो सदियों तक असर डालेगा. इसका क्या होगा? ये बड़ा सवाल है.
विज्ञान की तरक्की की बात भी सवालों के घेरे में है. हाल में एक समाजवादी चिंतक से बात हो रही थी, तो उनका कहना था कि अगर हम खाद्य पदार्थो को जलाते हैं, तो वह राख और कोयले में तब्दील हो जाते हैं, जिस दिन राख व कोयले से खाद्य पदार्थ विकसित करने की तकनीकि आ जायेगी. उस दिन हम विज्ञान के तरक्की करने की बात को स्वीकार कर लेंगे. ये बात कहीं तक सही भी लगती है. सवाल ये भी है कि रास्ता क्या हो सकता है, तो इसका उत्तर हमें प्रकृति पर आधारित विकास को अपनाना चाहिये और उसके हिसाब से काम करना चाहिये, ताकि उससे जो कचरा निकले, वो प्रकृति में मिल जाये और फिर से नया रूप धारण कर ले. ये वो रास्ता भी है, जिसमें हम कुछ भी गंवाये बिना आगे बढ़ सकेंगे और अपनी आनेवाली पीढ़ी को अच्छा तोहफा देकर जायेंगे.
समृद्धि से आनेवाली परेशानी की बात
एक शहर में एक समृद्ध परिवार रहता था, जिसके परिवार के हर सदस्य का अलग कमरा था. अगल गाड़ियां थीं. सब अलग-अलग समय पर अपने काम पर जाते और आते थे. किसी से कोई मतलब नहीं होता था. सबका अलग-अलग रुटीन था, जब कभी छुट्टी के दिन परिवार के सदस्य आपस में मिलते, तो उनके बीच आर्थिक बात होती, जो लड़ाई तक पहुंच जाती. इससे उनके घर में शांति नहीं रहती थी. इससे घर का मुखिया अंदर ही अंदर दुखी रहता था. उसके अलीशान घर के पास ही एक झोपड़पट्टी थी, जिसमें एक परिवार रहता था, जिसके सदस्य सुबह खाना बनाने और खाने के बाद काम पर जाते. शाम को लौटते, तो हंसते-खेलते, गाते-बजाते. फिर खाना बनाते, खाते और सो जाते. इसी तरह से उनका रुटीन चल रहा था. समद्ध परिवार का मुखिया एक दिन उन लोगों से मिलने पहुंचा और उसने उनकी खुशी का राज पूछा, तो उन लोगों ने बता दिया. इसके बाद उसने उनकी मदद का फैसला लिया और उस परिवार को थोड़ा सोना दे दिया. घर में सोना आते ही झोपड़पट्टी में रहनेवाले परिवार के सदस्य चौकन्ने हो गये. उन्हें उस सोने की सुरक्षा की चिंता सताने लगी. उनमें से एक व्यक्ति 24 घंटे सोने की रखवाली में रहता और अन्य लोग काम पर जाते. सोना आने के बाद वो लोग उस पर बात करते. उनकी एकता भी खतरे में पड़ने लगी थी, जिस तरह से हंसते-खेलते और गाते-बजाते थे. वो भी धीरे-धीरे बंद हो गया, क्योंकि उनका सारा ध्यान उस सोने पर रहता था.