मंगलवार, 12 नवंबर 2019

हे मुरलीधर, छलिया मोहन....हमतो तुमको दिल दे बैठे

हे मुरलीधर, छलिया मोहन.... हम भी तुमको दिल दे बैठे।
 गम पहले से ही कम तो न थे, इक और मुसीबत ले बैठे।।
 दिल कहता है तुम सुंदर हो, आंखें कहतीं है दिखलाओ।
 तुम मिलते नहीं हो आकर के, हम कैसे कहें देखो ये बैठे।।
हे मुरलीधर, छलिया मोहन, हम तुमको दिल दे बैठे।।

 महिमा सुन के हैरान हैं हम, तुम मिल जाओ तो चैन मिले।

मन खोजके भी तुम्हे पाता नहीं, तुम हो की उसी मन में बैठे।।
राजेश्वर राजा राम तुम्ही,  प्रभु योगेश्वर घनश्याम तुम्ही।
 धनुधारी बने कभी मुरली बजा, जमुना तट निर्जन में बैठे।।
 गम पहले ही क्या कम थे, इक और मुसीबत ले बैठे।
हे मुरलीधर छलिया मोहन, हम भी तुमको दिल दे बैठे।।

रविवार, 27 अक्टूबर 2019

भूख के खिलाफ रिषिकेश का जंग

अगर मन में विश्वास हो और काम करने का हौसला हो, तो मुश्किलें भी रास्ता छोड़ देती हैं. कुछ ऐसा ही हुआ है पटना के युवा रिषेकेश कुमार सिंह के साथ, जो कम उम्र में ही समाज सेवा में लग गये हैं. ज्ञानशाला के नाम से ऐसे बच्चों का स्कूल चलाते हैं, जिनका कोई सहारा नहीं है. साथ ही रोटी बैंक, जिसके सहारे हर रात राजधानी पटना की सड़कों पर उतरते हैं और उन लोगों को भोजन पहुंचाते हैं, जिन्हें रिषिकेश और उनकी टीम खाना नहीं पहुंचाये, तो उन्हें भूखे ही रात काटनी पड़े. ये सिलसिला लगभग दो साल से ज्यादा से बदस्तूर जारी है.
रिषिकेश लोगों के बीच जाते हैं और उन्हें अपने अभियान के बारे में बताते हैं, तो लोग खुशी-खुशी उससे जुड़ जाते हैं. कुछ लोग ऐसे हैं, जो नियमित रिषिकेश की मदद करते हैं. घर में खाना बनवाते हैं और उन्हें देते हैं, जबकि कुछ ऐसे हैं, जो पैसे देकर होटल से खाना पैक करवा कर रिषिकेश को देते हैं, जबकि कई ऐसे लोग हैं, जो अपने जन्मदिन या किसी परिजन के जन्मदिन पर रोटी बैंक को खाना देते हैं. ऐसे लोग भी हैं, जो अपने पूर्वजों की की जयंती और पुण्यतिथि पर भूखों का खाना खिलाते हैं. रिषिकेश को जैसे ही फोन आता है, वो और उनकी टीम खाना कलेक्ट करने पहुंच जाते हैं. पटना के मोस्ट वीआईपी इलाके गांधी मैदान और इसके आसपास के इलाके में जाते हैं, जहां ऐसे लोगों की खोज करते हैं, जो बेसहारा सड़क पर रात बिताते हैं. ऐसे लोगों को चिह्नित करने के बाद रिषिकेश और उनकी टीम उन्हें खाना देती है.
ठंडक हो या बारिश. गर्मी हो या तूफान...रिषिकेश और उनके साथियों का अभियान नहीं रुकता है. हाल में जब पटना में जल जमाव हुआ, तब भी पानी जमा होने के बाद भी रिषिकेश अपनी टीम के सदस्यों के साथ बेसहारा लोगों का पेट भरते रहे. बारिश के बीच निकलते और खुद की परवाह किये बिना ऐसे लोगों को खाना पहुंचाते. रिषिकेश के पास पटना के बेसहारा लोगों के बारे में पूरी जानकारी है. कौन और कहां रहता है. कैसे चलता है. उसके साथ किस तरह की समस्या है. वो सब रिषिकेश जानते हैं. ऐसे लोग रात के समय रिषिकेश का इंतजार करते रहते हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास है, कुछ भी हो जाये, उनके लिए खाना लानेवाला नहीं रुकेगा. वो उनके लिए खाना लेकर किसी भी हालत में पहुंचेगा.
 

शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

आओ मिलकर रोशन करें सबकी जिंदगी

सदियों से या यूं कहें पीढ़ी दर पीढ़ी, ये जद्दोजहद चल रही है, सब सुखी हों, संपन्न हों, ताकि सामाज रामराज्य की परिकल्पना की ओर आगे बढ़े, लेकिन जैसे हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती हैं, वैसे ही समाज में सबकी स्थिति एक जैसी नहीं रहती है. कभी कोई अभाव में, तो कोई प्रभाव में, तो कभी इसका उल्टा दिखता है. मुझे लगता है कि ये सिलसिला चलता जा रहा है और पीढ़ियां खपती जा रही हैं. रोशनी का महापर्व दीपावली में फिर से सारा जग रोशन है, लेकिन मुझे याद उस वृद्ध की आ रही है, जिनसे दो दिन पहले एक चौराहे पर भेंट हुई थी. अपने एक साथी के साथ पार्क में शाम की सैर करने के बाद लौट रहा था, तभी डिवाइटर पार करते समय एक आवाज आयी. प्लीज, इनकी मदद करिये, ताकि इनको सड़के के पार ले जाया जा सके.
नजरें, जैसे ही आवाज की ओर गयीं. पूरी शरीर सिहरन से कांप उठा. एक व्यक्ति पटना की व्यस्ततम सड़क पर घिसटता हुआ, चल रहा था. दो लोग उठाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. इसके बीच मोटर-गाड़ियों के गुजरने का सिलसिला बदरस्तूर जारी था, लेकिन किसी के पास इतना वक्त नहीं, जो ऐसे व्यक्ति के बारे में जाने, जो खुद चल नहीं सकता, लेकिन हांड़-मांस का बना, हम लोगों जैसा ही है. लगभग 5 मिनट की जद्दोजहद के बाद घिटते हुये वो व्यक्ति सड़क के किनारे आये, तो एक जिस युवती ने मदद की आवाज लगायी थी, उसने कुछ कहा और हाथ में कुछ दिया, जिसके बाद वो निकल गयी. इसके बाद उस व्यक्ति ने अपनी जेब से सुर्ती का पैकेट निकाला और मुंह में सुर्ती रखते हुये बगल में रखे बैग से प्लास्टिक का बोरा निकाला और उसे पैर से ओढ़ लिया और सिर के नीचे झोला रख कर लेट गये.
ये पूरी स्थिति देख कर मैं हथप्रभ था. मन में तरह-तरह के सवाल चल रहे थे. हमारे साथी का कहना था कि हम लोग आगे बढ़ते हैं, लेकिन हमारे कदम एक कदम आगे और दो कदम पीछे हो रहे थे. मैं समझ नहीं पा रहा था कि कैसे सड़क के किनारे इनकी रात कटेगी. इसी उधेड़ बुन में लगा हुआ था. तभी देवदूत की तरह एक युवक आया, जिसके हाथ में खाने के पैकेट और पानी की बोतल थी, जिसमें उस व्यक्ति को खाने का पैकेज पकड़ाया और पानी की बोतल थमा दी. मैं खुद को नहीं रोक पाया और उससे पूछ लिया, कैसे आपको इनके बारे में जानकारी है, तो उसने बताया, हम लंबे समय में इनके लिए रात का खाना लेकर आते हैं और ये घिसट कर चलते हैं. जिस स्थान पर हैं, इसी के आसपास ही रहते हैं.
युवक कहने लगा कि मरता, क्या न करता वाली स्थिति है. अगर कुछ व्यवस्था होती, तो ये ऐसे थोड़े ही रहते. सड़क के किनारे, अब तो दिनोंदिन इनकी स्थिति खराब हो रही है, लेकिन सबका मालिक एक ही है, भगवान, जिनकी कृपा बनी रहे. मुझे युवक की बातें देवदूत की तरह लग रही थीं. इसके साथ थोड़ा ढांढस भी मिला. कोई तो देखनेवाला है. अब जब दिवाली की तैयारी चल रही है, तो हमारे दिमाग में उस व्यक्ति की तस्वीर ही लगातार घूम रही है, उसका आज का दिन कैसे कट रहा होगा. रोशनी से नहाई सड़क के किनारे किस तरह से उसकी आवाज कोई सुन रहा होगा, या फिर वही फरिस्ता युवक उनके लिए रात का खाना लेकर आया होगा और पानी की बोतल- खाने का डिब्बा पकड़ा कर गया होगा. ये सब ऐसे सवाल हैं, जो दिमाग से निकल नहीं रहे हैं. मन बार-बार यही कह रहा है कि काश किसी के साथ ऐसा नहीं होता या फिर हम ऐसी स्थिति में पहुंच जाते, तो ऐसे लोगों के लिए कुछ कर सकते. ईश्वर ऐसा दिन लाये, जब इन जैसे लाचारों को सोचने की जरूरत नहीं पड़े. इनकी जिंदगी में रंग खुद- ब- खुद घुल जाएं. जिंदगी बदरंग नहीं रहे. अपनी बात मशहूर शायर मुनव्वर राना के एक शेर से खत्म करना चाहूंगा.

दुनिया तेरी रौनक से मैं ऊब रहा हूं.
तू चांद मुझे कहती थीं, मैं डूब रहा हूं.