शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

300 सौ बीमारियों को रोकता है सहजन

बचपन में घर में सहजन की सब्जी बनती, तो मैं खाने से मना कर देता था. लोगों को खाते देख अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि उसका रेसा अच्छा नहीं लगता था. घर के लोग कहते बहुत फायदा करता है, तो लगता कि ऐसे ही कह रहे होंगे. इसके बाद जब पढ़ाई के दौरान कभी ऐेसा मौका नहीं आया. चूंकि सहजन अच्छा नहीं लगता था, इसलिए बाद के दिनों में भी मैंने इसे अपनी सब्जी में शामिल नहीं किया, लेकिन कुछ साल पहले बंदरा में पूसा विवि के पूर्व कुलपति डॉ गोपाल जी त्रिवेदी के यहां जाना हुआ. बिहार सरकार के कृषि सलाहकार डॉ मंगला राय का दौरा था. ाह बंदरा में डॉ त्रिवेदी के निर्देशन में बने मछली तालाबों को देखने आये थे. साथ ही उन्हें धान की पैदावार देखने भी जाना था.
इस दौरान सैकड़ों किसानों से उन्हें रू-ब-रू होते देखा. वह किसानों के सवालों का जवाब बहुत सहज होकर दे रहे थे. इसी दौरान उन्होंने कहा, हमने बिहार सरकार को दो प्रस्ताव दिये हैं. पहला, जहां सालों भर पानी भरा रहता है. वहां मछली का जीरा डाला जाये. दूसरा, सरकारी जमीन और सड़कों के किनारे सहजन के पौधे लगाये जायें. इन्हें किसी के हाथों नीलाम नहीं किया जाये. आसपास जो लोग रहते हैं. वह इनका उपयोग करें. इससे कुपोषण की समस्या तेजी से दूर होगी. इसी दौरान मैंने उनसे सहजन के फायदों के बारे में जानना चाहा, तो उन्होंने कहा कि कोई एक फायदा हो, तो बतायें. सहजन तो हम लोगों के लिए भगवान का वरदान है.
डॉ मंगला राय की बातों का सिलसिला लगातार चलता रहा. इसी दौरान सहजन के पत्ताें की पकौड़ी खाने को मिली. बाद के दिनों में डॉ त्रिवेदी ने सहजन के गुणों के संबंधित बिहार सरकार की पुस्तिका भी पढ़ने के लिए दी, जिससे सहजन के गुणों की चर्चा की गयी थी. पुस्तिका पढ़ कर लगा कि हम सहजन के बारे में कुछ नहीं जानते थे. इसके बाद इंटरनेट व अन्य माध्यमों से सहजन के गुणों के बारे में पढ़ा, तो लगा कि सचमुच यह हम लोगों के लिए भगवान का वरदान है. हाल में फिर डॉ त्रिवेदी से मुलाकात हुई, तो उन्होंने सहजन के फायदों की बात बतायी. हालांकि अभी तक मेरी आदत नहीं बदल पायी है. मेरे सब्जी के थैले में सहजन अभी तक कम ही जगह बना पाया है, लेकिन इसके जो फायदे हैं. उससे लगता है कि इसे अपने खाने में शामिल करना जरूरी है, ताकि कई तरह के रोगों से बचा जा सके.
बिहार और उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक स्थानों पर बड़ी संख्या में सहजन के पेड़ लगे मिल जाते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश में सरकार इसकी खेती को बढ़ावा दे रही है. वहां के किसान सहजन की खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं. एक एकड़ में सालाना एक लाख तक का फायदा होता है. एक बार खेती के बाद चार साल तक इसकी फसल होती है. सहजन के अंगरेजी में ड्रमस्टिक कहते हैं. अपने यहां इसे मुनगा, सेंजन आदि नामों से जाना जाता है.
सहजन में 92 तरह के मल्टीविटामिन, 46 तरह के एंटी ऑक्सीडेंट, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड होते हैं, जो कुपोषण से लड़ने में सबसे ज्यादा कारगर होते हैं. इसके फल के साथ फूल, पत्तियां, छाल व जड़ में भी औषधीय गुण होते हैं. इसके नियमित सेवन से दिल, लीवर, ट्यूमर, डायबिटीज जैसी बीमारियों में फायदा होता है. गर्भवती महिलाओं को सहजन के प्रयोग की सलाह दी जाती है. इससे प्रसव के दौरान होनेवाली परेशानियां कम होती हैं.
सहिजन के नियमित इस्तेमाल से विटामिन-सी की कमी नहीं होती है. तमाम तरह की छोटी-मोटी बीमारियों से बचाव होता है. इसका सूप बना कर भी पिया जाता है. पत्ताें को उबाल कर उसका पानी भी पी सकते हैं. जुकाम होने पर इसके पत्ताें को पानी में उबाल कर भाप लेने से फायदा मिलता है. इसमें जिंक, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीसिमय व सीलियम होता है. दक्षिण भारत के व्यंजनों में इसका खूब इस्तेमाल होता है. साथ ही आयुव्रेदिक दवाइयां भी बनती हैं.